ब्रज-वैभव

ब्रज का स्वरुप एवं सीमा

ब्रज का प्राचीन गौरव


        यमुना नदी की पावन धारा के तट का यह भू-भाग, जिसे आजकल ब्रजमंडल या मथुरामंडल कहते हैं और जो पहिले मध्य देश अथवा ब्रम्हर्षि देश के अन्तर्गत शूरसेन जनपद के नाम से प्रसिद्ध था, भारतवर्ष का अत्यन्त प्राचीन और महत्वपूर्ण प्रदेश माना गया है, अत्यन्त प्राचीन काल से ही इसी गौरव-गाथा के सूत्र मिलते हैं। हिन्दू, जैन, और बौद्धों की धार्मिक अनुश्रुतियों तथा संस्कृत, पालि, प्रकृत के प्राचीन ग्रन्थों में इस पवित्र भू-खण्ड का विशद वर्णन वर्णित है।

हिन्दू उल्लेख और अनुश्रुतियाँ

        संसार के सर्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ ॠगवेद में यमुना तट की इस मनोरम भूमि और इस पर विचरण करने वाली लम्बे सीगों से सम्पन्न सुन्दर गायों के उल्लेख के साथ ही साथ, कटिपथ भाष्यकारों के मतानुसार, कुछ ब्रज लीलाओं का भी संकेत मिलता है। १   अथर्ववेद शतपथ ब्रहम्मण, रामायण, महाभारत और हरिवंश पुराण आदि में इस भू-भाग का विविध प्रकार से वर्णन प्रस्तुत किया गया है। २

        आर्य ग्रन्थों के अनुसार मानवजाति के आदि पिता स्वायम्भुव मनु थे, जो मनुओं की परम्परा में प्रथम माने जाते है। उनके समय में यमुना तट का यह प्रदेश विशाल सधन वनों से अच्छादित था। कालान्तर में यह बन्य प्रदेश ॠषि-मुनियों की तपो-भूमि के रुप में परिणित हो गया, जहां अनेक सिद्ध रुप यमुना के तट के आश्रमों में तपस्या करते हुए ब्रम्ह का चिन्तन मनन करते थे। उस बन को 'मधुबन' कहा गया है। वेदों में ब्रम्हविद्या अथवा अत्मविद्या की संज्ञा 'मधुविद्या' है। कदाचित इसीलिये उस सिद्ध बन को 'मधुबन' का नाम प्राप्त हुआ था।

        मधुबन के महत्व की प्राचीनतम स्वीकृति उस पौराणिक उल्लेख में है, जिस में कहा गया हैं कि स्वायंभुव मनु के पुत्र ध्रुव ने नारद मुनि के उपदेश से उसी बन में तपस्या की थी। नारद जी ने ध्रूव को वतलाया था कि मधुबन की पुण्य भूमि को भगवान श्री हरि: का नित्य सानिध्य प्राप्त है। ३ अतः यहां पर तप आराधना करने से इच्छित फल की सीध्र उपलब्धि होती है। राजा अंबरीष को भी विष्णु के चक्र के द्वारा इसी भूमि पर अभय प्रदान करने की अनुश्रति प्रलित है। पौराणिक जगत् के उन प्राचीन भक्तों की स्मृति रक्षार्थ ब्रज के वर्तमान मधुबन ग्राम में ध्रुव आश्रम और ध्रुव गुफा तथा मथुरा नगर में ध्रुव टीला, अंबरीष टीला, और चक्र तीर्थ जैसे पुण्य स्थल विधमान हैं, जो ब्रज की प्राचीनता और पवित्रता के साक्षी हैं।

        मथुरा गोवर्धन मार्ग पर शांतनुकुण्ड नामक एक प्राचीन सरोवर है, जो पौख वंश के प्रतापी महाराज शांतनु का स्मृति स्थल माना जाता है। शांतनु के पुत्र भीष्म थे, जो श्री कृष्ण के सम्बधी और कृपापात्र पाण्डवों के पितामह थे। शांतनु ने अपनी बृद्धावस्था में एक केवट कन्या सत्यवती से विवाह किया था। शांतनु कुंड के समीप का सतोहा ग्राम उक्त सत्यवती के नाम पर ही प्रसिद्ध हुआ कहा जाता है।

        मथुरा में यमुना नदी के जो प्राचीन धाट हैं, उनमें सोम (वर्तमान गोधाट) वैकुंठ धाट, और कृष्ण गंगा नामक धाट उल्लेखनीय हैं। वाराह पुराण में कृष्ण गंगा धाट की स्थिति सोमधाट और वैकुंठ धाट के मध्य में वर्णित की गयी है, और उसे महार्षि व्यास का तपस्थल कहा गया है। ४ उक्त स्थल पर किसी काम में कृष्ण गंगा नामक एक नदी यमुना में मिलती थी। व्यास जी का नाम द्वेैपाथन कृष्ण था। उनके नाम पर कृष्ण गंगा और यमुना के संगम का वह धाट कृष्ण गंगा धाट कहा जाने लगा था। ब्रज में यह अनुश्रुति प्रसिद्ध है कि व्यास जी ने इसी स्थल पर पुराणों की रचना की थी। वर्तमान काल में कृष्ण गंगा नदी तो नहीं है, किन्तु इस नाम का धाट अब भी विधमान है।

        प्रागैतिहासिक कालिन मधुबन के विशिष्ट भाग में यमुना नदी के तट पर एक सुन्दर नगरी का निर्माण किया गया। वह नगरी पहिले मधुपुरी अथवा मधुरा और बाद में मथुरा के नाम से विख्यात हुई। उसके एक ओर यमुना पुलिन और उसके तट की सधन कूंजों का मनोरम दृष्य था तथा तीन ओर बन-उपबन, लता और गुल्मों का प्राकृतिक वैभव था। उसके पश्चिम में कुछ दूर गोवर्धन पहाड़ी का नैसंगिक सौन्दर्य था। इस प्रकार यमुना नदी और गोवर्धन पहाड़ी से परिवेष्ठत वह रमणीक पुरी 'मथुरा' के नाम से लोक में प्रसिद्ध हुई। ५ इसके निर्माण और विकास के लिये मधु और उसके पुत्र लवण, रामानुज, शत्रुधन और उसके पुत्र सवाहु-शूरसेन तथा सत्वत से लेकर उग्रसेन और उनके पुत्र कंस तक क्रमशः दैत्यवंशी, सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी कई राजा-महाराजाओं के नाम पुराणों में प्रसिद्ध सहित वर्णित हैं।


१. वेदों में ब्रज लीला, (पोददार अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ. ६४५)

२. पोददार अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ. ६४१, ८४७

३. पुण्यं मधुवनं यत्र साधिहयं नित्यदा हरे:। (भागवत, ४-८)

४. सोमवैकुंठयोर्मध्ये कृष्ण गंगोति कथ्थते।

   तत्रा तत्यन्तपो वयासो मथुरायां स्थितोऽमलः।। (वाराह)

५. गोवर्धनो गिरिवरो यमना च महानदी।

   तयोर्मध्यो पुरी रम्या मथुरा लोक विक्षुता।।, वराह पुराण

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