ब्रज-वैभव

ब्रज का स्वरुप एवं सीमा

ब्रज आध्यात्मिकता के सूत्र


 

भगवान् श्रीकृष्ण की चिदानंदमयी लीला ब्रज की आध्यात्मिकता की आधार है, जिसके रहस्यात्मक पाँच सूत्र हैं - गोष्ठ (ब्रज) गो, गोपाल, गोप और गोपी। उपनिषदों तथा अन्य आध्यात्मिक ग्रन्थों में इनके रहस्यत्मक अर्थ वतलाये गये हैं। डा. वासुदेवशरण अग्रवाल ने इनके सम्बंध में निम्न विवरण प्रस्तुत किया है -

यह शरीर ब्रज-बूमि है, इन्द्रियाँ गौऐं हैं, निर्लेप आत्मा गोपाल है। जीव गोप और गौपी वृत्तियाँ हैं। वैदिक साहित्य में भी सहस्रों स्थानों पर इन्द्रियों को गो की संज्ञा दी गयी है। ये गौऐं जहाँ अमृतमय दुग्ध का प्रस्त्रवण कर गोपाल को अपंण करती हैं, वह ब्रज-भूमि धन्य है। १

गोपों के पुरोहित शांडिल्य ॠषि ने ब्रज्नाम को ब्रज का महत्व वतलाते हुए इसे साक्षात् व्रम्हा का स्वरुप कहा है। उन्होने वतलाया कि ब्रज शब्द का अर्थ व्याप्ति है। व्यापक होने के कारण ही इसका नाम ब्रज है। सत्व, रज, तम गुणों से अतीत होने के कारण ही परम ब्रम्ह ही व्यापक है, अत ब्रज परम व्रम्ह स्वरुप है। वह सदानन्द और परम ज्योतिर्मय है। २ ब्रज के महत्व की इससे बढ़ कर व्याख्या नहीं हो सकती है।   

 

 


१. ब्रज का आध्यात्मिक रहस्या (पोददार अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ. ६४०)

२. भागवत माहात्म्य, (१-१९, २०)

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