बुंदेलखंड संस्कृति

बुन्देलखण्ड की वास्तुकला

बुन्देलखण्ड में वास्तुकला का विकास दुर्गवास्तु तथा मन्दिरवास्तु के रुप में हुआ। कालीं तथा एरण दुर्ग का निर्माण ईसा की प्रथम शती में अनुमानतः प्रारम्भ हुआ। गुप्त युग में अनेक मन्दिरों का निर्माण हुआ। पन्ना जिले के नचना ग्राम में स्थित पार्वती मन्दिर का निर्माण पांचवी शती में हुआ। यह एक उच्च जगती पर स्थित है तथा इसके गर्भ गृह का द्वार पश्चिम की ओर है इसके द्वार में अलंकरणों के अतिरिक्त गंगा और यमुना की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। गर्भ गृह की छत सपाट है। द्वार के सम्मुख वर्गाकार खुला हुआ स्थान है। गर्भ गृह में प्रकाश तथा वायु के प्रवेश के लिए उत्तरी तथा दक्षिणी दीवालों में जालीदार गवाक्ष हैं। गर्भ गृह की ऊपरी मंजिल सादी है। सागर जिले के ऐरण नामक स्थान में वाराह, विष्णु तथा नरसिंह मन्दिर स्थित हुए। भू विन्यास में वाराह मन्दिर का गर्भ गृह एक मण्डप से युक्त था। छत सपाट रही होगी। विष्णु मन्दिर चार ऊँचे स्तम्भों पर आश्रित है, इसमें गंगा और यमुना को गर्भगृह द्वार में दिखाया गया है। नरसिंह मन्दिर भी भग्नावस्था में है। ललितपुर जनपद के देवगढ़ में दो गुप्तयुगीन मन्दिर हैं। प्रथम वाराह को समर्पित है। इसके गर्भगृह में नृवाराह की मूर्ति प्रतिष्ठित है। इसका निर्माण दशावतार मन्दिर से पूर्व अनुमानित है। दूसरा मन्दिर विष्णु को समर्पित है, यह विस्तृत जगती पर निर्मित है। गर्भ गृह वर्गाकार ९'९'' है। छत सपाट शिखर से मण्डित हैं, गर्भगृह द्वार में प्रतिहारी मिथुनाकृतियां गण आदि उत्कीर्ण हैं। ऊपर गंगा तथा यमुना प्रतिष्ठित है। ललाट बिन्दु पर विष्णु की मूर्ति है। यह मन्दिर गुप्तकालीन वास्तुकला की परिपक्वता का प्रतीक है। इसका निर्माणकाल छठी शती ईसा है। पन्ना जिले में चतुर्मुख का मन्दिर गुप्तोत्तर युगीन - सातवीं शती का है। इसका गर्भगृह साढ़े तेरह फीट वर्गाकार है। गर्भ गृह में चतुर्मुखी शिवलिंग प्रतिष्ठित है, इसके ऊपर ऊँचा शिखर है।

बुन्देलखण्ड में दशार्ण शैली का विकास हुआ। ऐरण की गुप्तयुगीन विष्णु प्रतिमा में गोलाकार प्रभा मण्डल, शैल के विकसित स्वरुप का प्रतीक है। बुन्देलखण्ड में गुर्जर प्रतिहार युगीन अनेक मन्दिर हैं। प्रारम्भ के मन्दिरों में अन्तराल के साथ मुख मण्डप भी सम्बद्ध हैं। मण्डप में वातायन भी हैं। प्रारम्भिक मन्दिर सपाट थे किन्तु उत्तरकालीन मन्दिरों में क्षिप्तवितान बनाये गये। छत भी शिखराकार उठती हुई अलंकृत है, शिखर के शीर्ष पर चन्द्रिका कलश है। ललितपुर जिले में कुरईया वीर का मन्दिर प्राचीनतम है। वर्तमान में यहाँ कोई मूर्ति प्रतिष्ठित नहीं है। गर्भ गृह के पश्चिमी दीवार में मयूर पर विराजमान कार्तिकेय की मूर्ति लगी है। इस काल का भव्य मन्दिर वरुवासागर के समीप देवी को समर्पित है। मन्दिर में वर्गाकार गर्भगृह अन्तराल तथा मण्डप से विनिर्मित है, गर्भगृह पंचरथ है। मन्दिर पंचायतन शैली का था। गर्भगृह की छत क्षिप्तवितान प्रकार की है। गर्भगृह द्वार अलंकरणों से सुसज्जित है। मन्दिर का द्वार नवीं शती में बना हुआ है। प्रतिहार युगीन मन्दिर टीकमगढ़ जनपद के मड़खेरा में प्राप्त है। मन्दिर सूर्य को समर्पित है। भू विन्यास में गर्भगृह अन्तराल तथा मण्डप से विनिर्मित हैं, इसका मुख पूर्व की ओर है। शिखर के ऊपर आमलक है। जगती के ऊपर इसकी ऊँचाई ७० फीट है। इसी प्रकार का मन्दिर उमरई में भी प्राप्त है। ललितपुर के निकट देवगढ़ में दो मन्दिर प्रतिहार युगीन हैं। गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। गर्भगृह द्वारा देवों तथा देवियों से अलंकृत है। मन्दिर की ऊँचाई ६० फीट है। दूसरा मन्दिर अपेक्षाकृत छोटा है। गर्भगृह में खडगासन तथा कायोत्सर्ग मुद्रा में तीर्थकर प्रतिमा प्रतिष्ठित है। ११वीं शदी मे कक्षपघातों ने मन्दिरों का निर्माण कराया।
एरक्ष की मस्जिद इस्लामी कला का सुन्दर नमूना है। इसके बीच के बड़े गुम्बद के चारों ओर छोटे गुम्बद है, बड़ा गुम्द स्तम्भों पर आधारित है। मस्जिद पर अभिलेख के अनुसार इसकी नींव ७११ हिजरी में पड़ी थी। चन्देरी का बादल महल, मदरसा तथा शहजादी का रोजा भी इस्लामी वास्तुकला की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।

बुन्देली स्थापत्य शैली का प्रारम्भ महाराज वीरसिंह देव ने किया उन्होंने ओरछा तथा दतिया में राजमहलों का निर्माण कराया। उनकी परम्परा को महाराज क्षत्रसाल ने आगे बढ़ाया। बुन्देलील स्थापत्य शैली में हिन्दू एवं मुस्लिम कला का सुन्दर सम्मिश्रण है। (जहांगीर) महल ओरछा, दतिया का महल, धुवेला में महाराज छत्रसाल तथा महारानी कमलावती की समाधि। पन्ना में छात्रसाल उद्यान के पीछे बुन्देली राजाओं की समाधियां आदि बुन्देलखण्ड की मौलिक कला के प्रतिरुप हैं। महामति प्राणनाथ के मन्दिर भी इसी शैली को अपनाया गया। शिखर, कोनों में सहायक गुम्बद तथा गुम्बदों के नीचे पालकी के आकार का तोरण विशुद्ध रुप से बुन्देली शैली का प्रस्तुतीकरण है। गुम्बदों के किनारे चारों ओर से मेहराबदार सज्जा गुम्बदों, के सौंदर्य को द्विगुणित करती है। तल के मुख्य द्वार पर ज्यामितीय आकृतियां फूल पत्ते बेलें आदि निर्मित हैं। दतिया स्थापत्य कला की निम्न विशेषताएं हैं। १. वर्गाकार भवन, २. सिंहपौर - कई मंजिला भवन, ३. बड़े प्रकोष्ठ, खुली दालान, ४. सिंहपौर, ५. चौकोर आंगन, ६. धनुषाकार कंगूरे, ७. जालीदार झिंझरी।
गोविन्द मन्दिर दतिया --नरसिंहदेव महल-- सतमंजिला है। ८४ गज लम्बा उतना ही चौड़ा है। इसमें २६ प्रवेश द्वार, १६ आंगन तथा ४४० कमरे हैं। दो मंजिलें जमीन के नीचे है। दक्षिण में विशाल कर्णसागर झील है। जहाँगीर महल --ओरझा-- तीन मंजिला है। इसमें अष्टकोणीय आठ स्तूप हैं।

--संकलित- 

Top

::  अनुक्रम   ::

© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र

Content prepared by Mr. Ajay Kumar

All rights reserved. No part of this text may be reproduced or transmitted in any form or by any means, electronic or mechanical, including photocopy, recording or by any information storage and retrieval system, without prior permission in writing.