बुंदेलखंड संस्कृति

खजुराहों मंदिर की विशेषताएँ

सांस्कृतिक धरोहर के रुप में विद्यमान खजुराहो के मंदिर अपनी विशेषताओं के कारण न केवल भारत वर्ष, बल्कि संसार में विख्यात है। खजुराहो की शिल्प का विकास मूर्तियों के स्वरुप में किया गया है। मंदिरों की दीवारों के अंदर और बाहर, मूर्तियाँ इस तरह बनायी गई है कि ये आँखों का पेय बन गई है। कुछ मंदिरों में मूर्तिकारों ने मूर्तियों में भव्यता और विशालता भर दी है।

विश्वनाथ मंदिर में ६७४ मूर्तियाँ हैं, जबकि कदंरिया महादेव में ८७२ मूर्तियाँ है। वराह मंदिर में बराहदेव की मूर्ति पर हिंदू देवी- देवताओं की ६७२ मूर्तियाँ अंकित की गई है। कुछ मंदिर ऐसा है, जिसकी दीवारों पर कोई भी स्थान ऐसा नहीं है, जहाँ मूर्तियाँ न अंकित की गई है। यहाँ देवी- देवताओं, नाग- नागिनियों, नायिकाओं, अप्सराओं, पशुओं तथा मिथुन युग्मों का अनेक मुद्राओं में अंकन किया गया है। एक लय, एक गति, एक शोभा से भरी हुई, यह प्रतिमाएँ मन को मोह लेने वाली है। कहीं- कहीं देवी- देवताओं की मूर्तियों ९', लंबी और १४' ऊँची बनायी गई हैं। प्रत्येक मूर्ति का अपना सौंदर्य है। देवता, देवियाँ, अप्सराएँ, पुरुष और नारियाँ सौंदर्य के संसार में गतिमान हैं। प्रतिमाओं के शरीर की शिथिलता या यौवन के उभार पत्थरों से छलकते हुए बाहर आते दिखाई देते हैं। धर्म, संस्कृति, समाज, अर्थ और राजनीति से जुड़ी, यह प्रतिमाएँ अपने निर्माता की कहानी कहती दिखाई देती है। नारी के आभूषण हमारे कल का का आभास करते हैं। बालों के गुंथने या उनके पहरावे में कहीं मानिनी नायिका, कहीं मुग्धा, तो कहीं परकीया के मनभावन क्रिया- कलापों के दर्शन कराते हैं, तो कहीं स्नानागार से निकलकर श्रृंगार करती हुई तरुणी का आभास कराते हैं।

खजुराहो मानव संग्राहालय है या इसे स्री पुरुष प्रधान एक संस्था कहा जा सकता है। कलाकारों ने प्रकृति की छटा में सौंदर्य के साथ- साथ, उस समय के मनोरंजन और क्रीड़ाओं की ओर ध्यान दिया है। यहाँ की कलाकृतियाँ प्रत्येक वर्ग, प्रत्येक आयु के व्यक्ति से संबंध जोड़ती दिखाई देती है।

खजुराहो के मंदिर धार्मिक सहिष्णुता के जीवंत प्रमाण है।

 

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र

Content prepared by Mr. Ajay Kumar

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