बुंदेलखंड संस्कृति

मंदिरों के नाम

वैष्णव मंदिरों के नाम

 

लक्ष्मण मंदिर ( तीन गौण मंदिरों समेत )

पंचायतन शैली का यह सांघार प्रसाद, विष्णु को समर्पित है। बलुवे पत्थर से निर्मित, भव्य: मनोहारी और पूर्ण विकसित खजुराहो शैली के मंदिरों में यह प्राचीनतम है। ९८' लंबे और ४५' चौड़े मंदिर के अधिष्ठान की जगती के चारों कोनों पर चार खूंटरा मंदिर बने हुए हैं। इसके ठीक सामने विष्णु के वाहन गरुड़ के लिए एक मंदिर था। गरुड़ की प्रतिमा अब लुप्त हो गयी है। वर्तमान में इस छोटे से मंदिर को देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है।

लक्ष्मण मंदिर से ही प्राप्त एक अभिलेख से पता चलता है कि चंदेल वंश की सातवीं पीढ़ी में हुए यशोवर्मण ( लक्षवर्मा ) ने अपनी मृत्यु से पहले खजुराहो में बैकुंठ विष्णु का एक भव्य मंदिर बनवाया था। इससे यह पता चलता है कि यह मंदिर ९३०- ९५० के मध्य बना होगा, क्योंकि राजा लक्षवर्मा ने ९५४ में मृत्यु पायी थी। इसके शिल्प और वास्तु की विलक्षणताओं से भी यही तिथि उपयुक्त प्रतीत होती है। यह अलग बात है कि यह मंदिर विष्णु के बैकुंठ रुप को समर्पित है, लेकिन नामांकरण मंदिर निर्माता यशोवर्मा के उपनाम लक्षवर्मा के आधार पर हुआ है।

शिल्प और वास्तु की दृष्टि से लक्ष्मण मंदिर खजुराहो के परिष्कृत मंदिरों में सर्वोत्कृष्ट है। इसके अर्द्धमंडप, मंडप और महामंडप की छतें स्तुपाकार हैं, जिसमें शिखरों का अभाव है। इस मंदिर- छतों की विशेषताएँ सबसे अलग है। कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :-

१. इसके मंडप और महामंडप की छतों के पीढ़े खपरों की छाजन के समान है,
२. महामंडप की छत के पीढ़ो के सिरों का अलंकरण अंजलिबद्ध नागों की लघु आकृतियों से किया गया है। 
३. मंडप की छत पर लटकी हुई पत्रावली के साथ कलश का किरिट है।
४. इस मंदिर के मंडप और महामंडप की छतें स्तूपाकार है।
५. मंदिर के महामंडप में स्तंभों के ऊपर अलंवन बाहुओं के रुप में अप्सराएँ शिल्प कला की अनुपम कृतियाँ हैं।

इस मंदिर की मूर्तियों की तरंगायित शोभा गुप्ताशैली से प्रभावित है। मंदिर के कुछ स्तंभों पर बेलबूटों का उत्कृष्ट अलंकन है। मंदिर के मकर तोरण में योद्धाओं को बड़ी कुशलता से अंकित किया गया है। खजुराहो के मंदिरों से अलग, इस देव प्रासाद की कुछ दिग्पाल प्रतिमाएँ द्विभुजी है और गर्भगृह के द्वार उत्तीर्ण कमलपात्रों से अलंकृत किया गया है।

  • इस मंदिर के प्रवेश द्वार के सिरदल एक दूसरे के ऊपर दो स्थूल सज्जापट्टियाँ हैं।

  • निचली सज्जापट्टी के केन्द्र में लक्ष्मी की प्रतिमा है।

  • इसके दोनों सिरों के एक ओर ब्राह्मण तथा दूसरी ओर शिव की प्रतिमा अंकित की गयी है।

  • इसमें राहू की बड़ी- बड़ी मूर्तियाँ स्थापित हैं।

  • द्वार शाखाओं पर विष्णु के विभिन्न अवतारों का अंकन हुआ है।

  • गर्भगृह में विष्णु की त्रिमुख मूर्ति प्रतिष्ठित है।

मंदिर के जंघा में अन्य मंदिरों की तरह एक- दूसरे के समानांतर मूर्तियों दो बंध है। इनमें देवी- देवताओं, शार्दूल और सुर- सुंदरियों की चित्ताकर्षक तथा लुभावनी मूर्तियाँ हैं। मंदिर की जगती पर मनोरंजक और गतिशील दृश्य अंकित किया है। इन दृश्यों में आखेट, युद्ध के दृश्य, हाथी, घोड़ा और पैदल सैनिकों के जुलूस, अनेक परिवारिक दृश्यों का अंकन मिलता है।

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लक्ष्मी मंदिर

इस मंदिर का निर्माणकाल सन् ९५०- १००२ ई. के मध्य माना जाता है। कभी देवी के नाम प्रख्यात वर्तमान में यहाँ ब्रह्मणी की प्रतिमा आसीन है। इसकी जगती पूर्णतया पुननिर्मित है। यह मंदिर पंचरथ प्रकृति का है। इस मंदिर को भग्न मंदिरों के कुछ पत्थरों से बहुत बाद में बनाया गया है। इसका अर्द्धमंडप प्रग्रीवा रुप में है, जिसकी भरणी सुसज्जित है। इसका त्रिशाला पद्धति का द्वार है, जिसके नीचे चंद्रशिलाएँ हैं। इनकी शाखाएँ पुष्पचक्र, कमलपत्र इत्यादि से सजायी गई है। इसके भीतरी भाग में ब्रह्मा, विष्णु, गरुड़, शिव, गंगा- यमुना की प्रतिमाएँ अंकित की गई है। बाहरी शाखा पर द्वारपाल बने हुए हैं। गर्भगृह का अलंकरण सादा है। चतुर्भुज त्रिमुखी ब्रह्मणी की प्रतिमा गर्भगृह में आसीन हैं।

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ब्रह्मा मंदिर

ब्रह्मा का मंदिर खजुराहो के सागर के किनारे तथा चौसठयोगिनी से पूर्व की ओर स्थित है। यह मंदिर वैष्णव धर्म से संबंधित है। इसका दृश्य अपने आप में बेमिसाल है। उसे देखकर ऐसा लगता है कि कोई कलाकार सागर के किनारे बैठा- बैठा लहरों के कखटों के साथ ही सागर की गहराई में डूब जाना चाहता है। मंदिर में विष्णु मूर्ति स्थापित है, इसे श्रद्धालुओं ने बह्मा समझकर, इनका ही मंदिर कहना प्रारंभ कर दिया है। वर्तमान में इस मंदिर में चतुर्मुख शिवालिंग विराजमान है। मंदिर के शिखर, बलुवे पत्थर के और शेष भाग कणाश्म से निम्रित किया गया है। यह मंदिर आकार में छोटे और अलंकरण में सादे दिखाई देते हैं। मंदिर का अधिष्टान चौसठयोगिनी मंदिर के
समान सादा और सुंदर है। मंदिर तलविन्यास में अलग प्रकार की है, परंतु उर्ध्वच्छंद में समरुपता ही दिखाई देती है। इसकी जंघा दो बंधोंवाली तथा सादी है और उसके उपर छत स्तूपाकार है, जो क्रमशः अपसरण करती हुई दिखती है। ब्रह्मा का बाहरी भाग स्वास्तिक के आकार का है, जिसके प्रत्येक ओर प्रक्षेपन है। मंदिर का अंतर्भाग वर्गाकार है, जिसमें कणाश्म से निर्मित बारह प्रकार के सादे कुडय- स्तंभ हैं। इन्हीं स्तंभों पर वितान पूर्वी प्रक्षेपन में प्रवेश द्वार है और पश्चिम की ओर एक अन्य छोटा द्वार है। पार्श्व के अन्य दो प्रक्षेपणों में पत्थर की मोटी और अनलंकृत जालीदार वतायन हैं। प्रवेशद्वार के सिरदल में त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु, महेश की स्थूल मूर्तियाँ हैं और द्वार- स्तंभ में एक अनुचर सहित गंगा और यमुना के अंकन के अतिरिक्त प्रवेशद्वार सादा बना हुआ है। इन प्रवेशद्वार में न तो प्रतिमाएँ हैं और न ही किसी अन्य प्रकार का अलंकरण दिखता है। ब्रह्मा मंदिर का निर्माणकाल लालगुआं महादेव मंदिर के साथ- साथ बताया जाता है, क्योंकि यह उस संक्रमण काल की मंदिर है, जब बलुवे पत्थर का प्रयोग प्रारंभ हो गया था, किंतु कणाश्म का प्रयोग पूर्णतया समाप्त नहीं हुआ था।

चर्तुभुज मंदिर

यह मंदिर जटकारा ग्राम से लगभग आधा किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। यह विष्णु मंदिर निरधार प्रकार का है। इसमें अर्धमंडप, मंडप, संकीर्ण अंतराल के साथ- साथ गर्भगृह है। इस मंदिर की योजना सप्ररथ है। इस मंदिर का निर्माणकाल जवारी तथा दुलादेव मंदिर के निर्माणकाल के मध्य माना जाता है। बलुवे पत्थर से निर्मित खजुराहो का यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें मिथुन प्रतिमाओं का सर्वथा अभाव दिखाई देता है। सामान्य रुप से इस मंदिर की शिल्प- कला अवनति का संकेत करती है। मूर्तियों के आभूषण के रेखाकन मात्र हुआ है और इनका सूक्ष्म अंकन अपूर्ण छोड़ दिया है। यहाँ की पशु की प्रतिमाएँ एवं आकृतियाँ अपरिष्कृत तथा अरुचिकर है। अप्सराओं सहित अन्य शिल्प विधान रुढिगत हैं, जिसमें सजीवता और भावाभिव्यक्ति का अभाव माना जाता है। फिर भी, विद्याधरों का अंकन आकर्षक और मन को लुभाने वाली मुद्राओं में किया गया है। इस तरह यह मंदिर अपने शिल्प, सौंदर्य तथा शैलीगत विशेषताओं के आधार पर सबसे बाद में निर्मित दुलादेव के निकट बना माना जाता है।

चतुर्भुज मंदिर के द्वार के शार्दूल सर्पिल प्रकार के हैं। इसमें कुछ सुर सुंदरियाँ अधबनी ही छोड़ दी गयी हैं। मंदिर की अधिकांश अप्सराएँ और कुछ देव दोहरी मेखला धारण किए हुए अंकित किए गए हैं तथा मंदिर की रथिकाओं के अर्धस्तंभ बर्तुलाकार बनाए गए हैं। ये सारी विशेषताएँ मंदिर के परवर्ती निर्माण सूचक हैं।

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जवारी मंदिर

कंदरिया महादेव मंदिर के बाद बनने वाले जवारी मंदिर में शिल्प की उत्कृष्टता है। यह मंदिर ३९' लंबा और २१' चौड़ा, यह निंधारप्रासाद, अर्द्धमंडप, मंडप, अंतराल और गर्भगृह से युक्त है। वास्तु और शिल्प के आधार पर इस मंदिर का निर्माणकाल आदिनाथ तथा चतुर्भुज मंदिरों के मध्य ( ९५०- ९७५ ई.) निर्धारित किया जा सकता है। इसका अलंकृत मकरतोरण और पतला तथा उसुंग मनोरम शिखर इसको वास्तु रत्न बनाया है। इसकी सामान्य योजना तथा रचना शैली दूसरे मंदिरों से इसको अलग करती है। इसके अतिरिक्त दो विलक्षण वास्तु विशेषताओं के कारण यह खजुराहो समूह के मंदिरों में अपना विशिष्ट स्थान रखता है।

  • पहला, इस मंदिर की जंघा की उष्णीयसज्जा में कूट- छाद्य शीर्षयुक्त भरणियों और कपोतों का प्रयोग हुआ है, जो गुजरात के मध्यकालीन मंदिरों का एक विशिष्ट लक्षण है।
  • दूसरा, जंघा की निचली पंक्ति की देव- प्रतिमाएँ, ऐसी रथिकाओं में विराजमान है, जिनके वृताकार अर्द्धस्तंभों के किरीटों पर हीरक है और तोरण मेहराबों से अच्छादित है। इस मंदिर की सुर- सुंदरियों का केश विन्यास धम्मिल प्रकार का नहीं है और उनमें से अधिकांश दो लड़ोंवाली मेखलाएँ पहने हैं। इसके शिखर की गवाक्षनुमा चैत्य मेहराबें भारी तथा पेचिदा है। अंत में इसके द्वार की देहली पर निर्मित सरितदेवियाँ गंगा- यमुना नृत्य मुद्रा में प्रतीत होती हैं।

मंदिर के गर्भगृह में विष्णु एक पद्यपीठ पर समभंग खड़े हैं। उनका मस्तक तथा चारों हाथ खंडित हैं। वे सामान्य खजुराहो अलंकारों से अलंकृत है। उनकी प्रभाववली के ऊपर ब्रह्मा, विष्णु और शिव की छोटी- छोटी प्रतिमाएँ अंकित की गई है। छत के उद्गमों की रथिकाएँ प्रतिमा विहीन है। पार्श्व रथिकाओं पर युग्म प्रतिमाएँ एवं नारी प्रतिमाएँ हैं। उत्तरी मंडप के उद्गम पर शिव- पार्वती प्रतिमा, अनेक देव तथा गणेश इस रथिका के मुत्तार्ंकण का भाग है। गर्भगृह की छत की रथिका का पूर्वीचंद्र देव युग्म, एक नारी तथा युग्म प्रतिमाओं का अलंकरण किया गया है। चतुर्भुज देवी कुबेर पत्नी के रुप में अंकित है।

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वराह मंदिर

यह विष्णु के अवतार वराह का एक छोटा मंदिर है तथा इसका निर्माणकाल सन् ९५०- १००२ ई. के मध्य में है। २०',६' लंबा और १६' चौड़ा यह मंदिर आयताकार है, जिसकी स्तूपाकार छत बारह स्तंभों पर टिकी हुई है तथा प्रवेश चतुष्कि के लिए दो अतिरिक्त स्तंभ भी बनाये गए हैं। छत के नीचे का भाग एक के ऊपर एक रखे गए सादे पत्थरों से बनाया गया और छत को दो शिलाओं से ढ़क दिया गया है। इस शिलारुपी वितान पर कमल का अंकन पूर्ण रुप से किया गया है।

मंदिर के मध्य भाग में ८'९'' लंबी तथा ५' १०'' ऊँची वराह की एक एकाश्म भीमकाय मूर्ति रखी गयी है। वराह के शरीर पर ६७२ देव प्रतिमाएँ खुदी हुई हैं, जिनमें ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सरस्वती, गंगा, वीरभद्र और गणेश सहित सप्त्मातृका, नवगृह, अष्टदिकपाल, अष्टबसु, नाग, गण आदि देवी- देवताओं की सैकड़ों मूर्तियाँ उत्कीर्ण की गयी है। भीमकाय वराह मूर्ति एक ११ ऊँचे पटल पर आरोहित है। एक ही पत्थर से आधार पटल और प्रतिमा का निर्माण किया गया है। पूरी प्रतिमा सुसज्जित है, केवल जंघा भाग की भीतरी ओर प्रतिमाएँ नहीं हैं।

पीढ़े प्रायः उद्गमों से जुड़े हैं। चैत्य- महराबें और चंचक भी पीढ़ों से जुड़े हुए हैं। यह प्रतिमा दर्शनीय हैं।

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देवी जगदंबी मंदिर

गंगा माँ का यह मंदिर आकार में ७७' लंबा और ९४' तथा ६'' चौड़ा है। इसका निर्माणकाल सन ९७५ ई. है। गर्भगृह के द्वार ललाटबिंब पर लगभग ५' ऊँची देवी पार्वती की चतुर्भुज मूर्ति आसीन है, जिसे स्थानीय लोग काली या जगदंबा कहते हैं और इससे इसका नाम देवी जगदंबा है। निरंधार प्रकृति का यह मंदिर तलच्छंद में साधारण क्रूश के आकार का है। पूर्व की ओर से सीढियाँ अर्द्धमंडप तक जाकर पुनः मंडप तक जाती हे। मंडप ही सभागृह रहा है। एकाकी पार्श्वालिंद मंडप के दोनों ओर है। मंदिर का स्तंभक और वितान प्रभावशाली है तथा मंदिर का भीतरी भाग अत्यंत आकर्षक है। प्रमुख वितान चौरस आकृति का है। भीतरीशाला का वितान वृत्ताकार है। शाला आठ स्तंभों पर बनाया गया है। अर्द्धमंडप तथा मंडप में वतायन है। महामंडप का वितान सादा उलटे कमल के समान है। गर्भगृह का द्वार शाखा अलंकृत है तथा दोनों ओर मिथुन प्रतिमाएँ अंकित की गयी है। मंदिर के मूर्ति सौंदर्य बाहर और भीतर दोनों ओर से अत्यंत प्रभावोत्पादक एवं मिथुन प्रतिमाएँ उत्तेजक हैं। 

अधिष्टान की कई पंक्तियाँ हैं, इनमें एक पंक्ति रत्नपट्टयुक्त है, जिसे सादे जाइया कुंभ, कर्णक, सजीले पत्थर, ग्रापट्टिका, अंतरप कपोत से सजाया गया है। नींव स्तर से प्रमुख राधिकाएँ मंडप क्षेत्र में शुरु हो जाती है। गर्भगृह के बाहर ऊपरी ओर खुर और कुंभ सजावट का प्रयोग किया गया लगता है। मंदिर की जंघा पर तीन पंक्तियों में प्रतिमाएँ सजी है। छत और मूर्तियों की ऊपरी पंक्ति के बीच ब्रंदिकाएँ तीन धाराओं में अंकित की गयी है। भद्र के चारों ओर रथ है। अनुरथों पर दोनों ओर प्रतिमाएँ हैं। करणरथ पर दिगपाल हैं। भद्र पर युग्म, मिथुन प्रतिमाएँ हैं। रथों के बीच के खाली स्थान में व्याल हैं।

भीतरी छत पिरामिड प्रकृति की है, जो चार पीठ से बनी है। इसके एक आम्लक पर चैत्य महराब हैं। जोड़ों पर कीर्तिमुख है। असान्नप को पुष्पों से सजाया गया है। कक्षासन्न पुष्प तथा प्रस्तर से सजाया गया है। उपश्रंग न होते हुए भी शिखर दो उरु:, श्रंग, तीन करण श्रंग एक नष्ट श्रंग से सजा है। मुलमंजरी सप्तरथ प्रकृति की है, जिसके कारण यह आठ भुमियाँ दर्शाती है। बाहरी करण श्रंगों के ऊपर की रधिकाएँ शिव, ब्रह्मा, भैरव की मूर्तियों से सजाया गया है। मंदिर की प्रमुख चोटी दो पीठों से बनी है। मंडप ही महामंडप के रुप में निर्मित किया गया है। मंदिर का छत समवर्ण है। अर्द्धमंडप के भीतर के स्तंभ भद्रक प्रकृति के हैं। मंदिर को वृताकार बनाया गया है।

मंदिर के अंतराल में द्वारपाल, देव- प्रतिमाएँ तथा प्रस्तर सज्जा ही गर्भगृह की द्वार चंद्रशिला से होकर भीतर जाता है। प्रथम शाला पर उड़ते हुए विद्याधर, द्वितीय शाखा पर नृत्य करते गण, तृतीय एवं पाँचवी पर व्याल तथा चतुर्थ पर मिथुन अंकित हुए हैं। शेष पर नाग, द्वारपाल, रागारक, अम्लक और साधारण प्रस्तर से सजाया गया है। मंदिर के मुख्य भाग पर नदियों की प्रतिमाएँ अंकित की गई है। मंदिर के मुख्य रधिका पर लक्ष्मी और सरस्वती की प्रतिमाएँ अंकित की हुई है।

गर्भगृह का ऊपरी भाग साधारण है। इसकी पट्टियों पर पुष्प सज्जा और प्रस्तर सज्जा की गयी है। देवी प्रतिमाओं के पीछे तीन रथिकाएँ हैं। केंद्रीय रथिका पर विष्णु, ब्रह्मा तथा शिव की प्रतिमाएँ अंकित की गई है। इसके अतिरिक्त वराह, वामन, नरसिंह तथा बलराम की प्रतिमाएँ उल्लेखनीय है। यहाँ पर सेविकाओं के अतिरिक्त परशुराम प्रतिमा भी है।

नीचे की तीसरी रथिका पर लक्ष्मी- नारायण की प्रतिमा अंकित की हुई है। चतुर्भुज प्रतिमाओं में विष्णु, शंख, चक्र, गदा धारण किये हुए हैं। पश्चिम मुख पर एक प्रतिमा महेश्वरी की अंकित है। भीतरी भाग की रथिकाओं में पार्वती की भग्न प्रतिमा है। यहाँ प्रतिमाओं के साथ- साथ सेवक- सेविकाओं की प्रतिमा भी उत्कीर्ण की गयी है।

इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ गंगा के छत्र पर पक्षी युग्म हैं तथा यमुना के छत्र पर कछुआ युग्म है।

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वामन मंदिर

विष्णु के अवतार वामन का यह मंदिर ब्रह्मा मंदिर के उत्तर पूर्व में अवस्थित है। इसकी लंबाई ६२' और चौड़ाई ४५' है। यह मंदिर अपेक्षाकृत अधिक ऊँचे अधिष्ठान पर निर्मित हैं। इसके तलच्छंद के अंतः भागों की सामान्य योजना और निर्माणशैली देवी जगदंबी मंदिर से मिलती- जुलती है, किंतु इसका भवन दोनों की अपेक्षा अधिक भारी व सुदृढ़ है। गर्भगृह का शिखर समान आकार का है, किंतु इसकी मंजरी प्रतिकृतियों का अभाव है। निरंतर धारप्रासाद में अर्धमंडप, महामंडप, अंतराल और गर्भगृह हैं। इस मंदिर में मिथुन मूर्तियों का अंकन अत्यंत विरल है। शिखर की छोटी रथिकाओं में ही ये दिखाई देती हैं। मंदिर की जंघा में मूर्तियों की केवल दो पंक्तियाँ ही है। यह मंदिर इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है कि इसके महामंडप के ऊपर सवरण छत हैं और महामंडप के वातायनों के वितान में तोरण शलभंजिकाओं का अलंकरण किया गया है। गर्भगृह में विष्णु के अवतार वामन की लगभग ५' ऊँची एक मूर्ति प्रतिष्ठित है। गर्भगृह के चारों ओर बनी निचली पंक्ति की रथिकाओं में वराह, नृसिंह, वामन आदि अवतार आसीन हैं। ऊपरी पंक्ति की रथिकाओं में ब्रह्मणी सहित ब्रह्मा, शिव की कल्याणसुंदर मूर्तियाँ और विष्णु की मूर्ति उल्लेखनीय हैं।

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हनुमान मंदिर

यह मंदिर हनुमान को समर्पित है। इसमें हनुमान जी की ७' ऊँची प्रतिमा विद्यमान है। इसका निर्माण काल ९२२ ई. सन् है। इस मंदिर का सारा भाग बाद का बना हुआ है, जो उन्नीसवीं शदी ई. का मालूम होता है।

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खाकरा मंदिर

धारशिला तथा बलुआ पत्थरों से निर्मित, यह मंदिर खजुराहो गाँव से तीन किलोमीटर पूर्व की ओर स्थित है। इस मंदिर के आस- पास पुराने खंडरों के टीले हैं। यह मंदिर भी एक टीले पर ही बनाई गई है। लगभग साढ़े ग्यारह फुट उँची जगती वाली यह मंदिर परंपरागत स्वरुप की दिखाई देती है। यह मंदिर मूलतः वैष्णव मंदिर है। मंदिर का निर्माण काल सन् ९५० से १०५० के बीच है।

मंदिर का जंघा भाग प्रस्तर सज्जा युक्त है। महामंडप के स्तंभ छोटी ऊँचाई के लगते हैं। इसका महामंडप भाग वैष्णव द्वारपाल, नाग गजतालु तथा कीर्कित्तमुख प्रतिमाओं से सजाया गया है। पार्श्वालिंद को छोटे- छोटे स्तंभों पर टिकाया गया है। यह स्तंभ चौको आकृति में निर्मित किये गए हैं। मंदिर के पूर्वी द्वार के दक्षिण भाग में द्विभुजा युक्त देव प्रतिमा है, जो त्रिभंगी मुद्रा में है। यह प्रतिमाएँ देवोचित आभुषणों से विभूषित किया गया है। इसी प्रकार उत्तरी ओर भी एक द्विबाहु देव प्रतिमा है।

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::  अनुक्रम   ::

© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र

Content prepared by Mr. Ajay Kumar

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