छत्तीसगढ़

Chhattisgarh


आदि काल : गाथायुग (सन् 1000 से 1500 ई. तक)

इतिहास की दृष्टि से छत्तीसगढ़ी का गाथायुग को स्वर्ण युग कहा जाता है। गाथायुग के सामाजिक स्थिति तथा राजनीतिक स्थिति दोनों ही आदर्श मानी जा सकती है।

छत्तीसगढ़ बौद्ध-धर्म का एक महान केन्द्र माना जाता था। इसीलिये गाथा युग के पहले यहाँ पाली भाषा का प्रचार हुआ था।

गाथायुग में अनेक गाथाओं की रचना हुई छत्तीसगढ़ी भाषा में। ये गाथायें प्रेम प्रधान तथा वीरता प्रधान गाथायें है। ये गाथायें मौखिक रुप से चली आ रही है। उनकी लिपिबद्ध परम्परा नहीं थी।

गाथायुग के प्रेम प्रधान गाथाएँ

गाथायुग के प्रेम प्रधान गाथाओं में प्रमुख है :

अहिमन रानी की गाथा

केवला रानी की गाथा

रेवा रानी की गाथा

ये सभी गाथाएँ नारी प्रधान है। नारी जीवन के असहायता को दर्शाया है। इन गाथाओं में मंत्र तंत्र और पारलौकिक शक्तियों को भी दर्शाया है।

इन गाथाओं का आकार काफी दीर्ध है। लोक गाथाकार, जिसे देवार कहते है, जब सुनाने लगाते है, तब चार पाँच दिनों तक सुनाते रहते है।

श्री प्यारे लाल गुप्त का कहना है कि " ये गाथाएँ " बैलेडस" या चारण काव्य की परम्परा को धोतन करती है।"

अहिमन रानी की कथा इस प्रकार है - अहिमन रानी की साँस उसे सरोवर में जाने से मना करती है पर वह विनती करती है बार बार और फिर जाती है। अहिमन रानी सखियों के साथ जब सरोवर में नहाने जाती है, उनकी मुलाकत एक व्यापारी से होता है जो घोड़ा चुरा लेता है और अहिमन रानी को पासा खेलने के लिए बुलाता है। पासा खेलते समय वह व्यापारी अहिमन रानी के सभी गहने जीत लेता है। अहिमन रानी बड़ी चिन्तित हो उठती है और कहती है कि राजा को वह कैसे मुंह दिखाएगी । वह व्यापारी रानी अहिमन को नये गहने और वस्र देता है और एक घोड़ा देता है। जब अहिमन रानी राजमहल में वापस आती है, राजा उसे देखकर चिन्तित हो जाते है। और उसे मायके जाने के लिए कहता है। जैसे ही दोनों राज्य के बाहर पहुँचते है, राजा उसके बाल घोड़े के पूँछ से बांध देता है और खींचने लगता है। अहिमन रानी की मृत्यु हो जाती है। उसका व्यापारी भाई जब उसे मृत पाता है तो बहुत शोकग्रस्त हो जाता है। उसी समय महादेव और पार्वती अहिमन को जीवित कर देते है और अहिमन अपने ससुराल वापस जाती है। उसकी सास उसे पहचान नहीं पाती, न तो पति पहचान पाता है। अहिमन भी उन दोनों को कुछ नहीं बताती। जब उसका पति व्यापारी से अहिमन की शादी की बात करता, तब व्यापारी कहता है कि तुम अपनी पत्नी को नहीं पहचान पा रहे हो। और इसी तरह अहिमन रानी अपने पति के साथ सुख से दिन व्यतीत करने लगती है।

कथा का रुप इस प्रकार है :

सासे के बोलेव सास डोकरिया

कि सुनव सासे बिनती हमार

मोला आज्ञा देते सास

कि जातेव सगरी नहाय

घर हिन कुंवना कि

घर हीन बावलि

कि घर हीन करो असनांद

अहिमन झन जा सगरी नहाय ला

केवला रानी की गाथा में भी यह घटना है जहाँ राजा उसे घोड़े के पूँछ से बांध देता है। केवला रानी हरदी के राजा मदनसिंह की पत्नी थी। तोते से वह अपने पति के पास संदेश भेजती है। राजा जल्दि गौना कराने का आग्रह करते हैं। उसके बाद परिजनों को आगे चलने आदेश देकर मदनसिंह केवला रानी को अपने घोड़े के पूँछ से बांध देता है। रानी मर जाने के बाद जब स्वर्ग पहुँचती है, पार्वती उसे फिर से जीवित कर देती है वह फिर से अपने पति के पास पहुँच जाती है। जब अपनी पत्नी पुर्नजीवित होने की कथा राजा को सुनाती है, राजा बहुत पश्चताप करते है। इसके बाद दोनों आनन्दमय जीवन बिताते है।

रेवा रानी की गाथा - रेवा रानी सखियो के साथ तालाब में नहाने जाना चाहति, राजा उग्रसेन उसे सखियों के साथ तालाब जाने देता। रेवा रानी  नहाने जाती है। सात सखियाँ आगे आगे और सात सखियाँ पीछे पीछे जाती है। तालाब के पास एक बगीचे में रानी थोड़ी देर के लिए रुकती है। सभी सखियाँ तभी पीछे रह गई थी। उस बगीचे में दुमदुमी निशाचर राजा उग्रसेन का रुप धारन कर रानी के पास आता है  और अपना काम इच्छा व्यक्त करता है। रानी रेवा को बहुत ही गुस्सा आता है और वह राजा को वापस जाने के लिए कहती है। दुमदुमी निशाचर पेड़ उखाड़कर फेंकने लगता है। ये देखकर रेवा रानी समझ जाती है कि वह कौन है। अचानक चारों ओर अंधेरा हो जाता है। और वह निशाचर अपनी इच्छापूर्ति करता है। अब रानी उसे शाप देने लगती है। तब निशाचर कहता है कि तेरा पुत्र अपनी शक्ति से दुनिया को हिला देगा। और वह निशाचर अदृश्य हो जाता है। रानी की सखियाँ उस वक्त उनके पास आती है तो रानी कहती है कि बन्दरों ने उसकी ये हालात की।  बाद में रानी एक पुत्र को जन्म देती है जिसका नाम केशराज रक्खा जाता।

इस कहानी में नारी को असहाय दिखाया गया है।

जब मुख बोले पवन रेवा रानी

सुन राजा मोर बात हो लाल

बड़ दिन होइगे मोला सगरी देखे बेर

सगरी नहाय के मोला साध होगे हो ला

फुलहा तो देखत बिधुन भइगे रानी

चिरई अऊ चिरगुन पग पंछी देखथे

पांवे पड़थो मोला छोड़ो महाराज

गाथायुग के धार्मिक एवं पौरानिक गाथाएँ

गाथायुग के धार्मिक एवं पौरानिक गाथाओं में प्रमुख है " फुलवासन" और " पंडवानी"

" फुलवासन" है सीता और लक्ष्मण की कथा। इस गाथा में सीता लक्ष्मण से कहती है कि रात को उसने अपने स्वप्न में एक फूल को देखे है। वह फूल का नाम है फुलवासन। सीता लक्ष्मण से अनुरोध करती है कि वे उसे फुलवासन फूल ला दे। लक्षमण जी चल पड़ते है वह फुल लाने और रास्ते की कठिनाइयों का सामना करते हुये पहुँचते है उस जगह जहाँ फुलवासन खिले हुये थे। अन्त में उस फूल को लेकर लक्ष्मण सीता के पास वापस आते है। ड़. सत्यभामा आड़िल अपनी पुस्तक " छत्तीसगढ़ी भाषा और साहित्य" में लिखती है कि भ्रमणशील जोगी फुलवासन के बारे में एक कहानी सुनाते है जिसमें फुलवासन थी राजा सालकेवरा की सबसे छोटी बेटी। राजा सालकेवरा थे भांवरागढ़ के राजा। उनकी सात बेटिया एक बार सरोवर में नहाने जाती है। सभी बेटिया किनारे में खड़ी नहाती है पर फुलवासन सरोवर के बीच जाना चाहती थी। आधी रात को फुलवासन सरोवर में जाती है और फिर फूल बन जाती है।

जोगी इस प्रकार गाते है :

बड़ सैइता धारी लक्ष्मण जती जोगी

बारा बरस जोग करेरे भाई

सात दोहरा के भोजन पका के

बिना जोते के जमीन के चाऊर

हरी मुंगन के दार पकाई

बिगन सिकुन के पतरी बना के

माछी के दूध अउ भरवा के लासा

बीच तरिया में जाके फुलवासन

फूल हो फुलथे वाही हा बाबू

पंडवानी है महाभारत के बारे में। लोकजीवन के साथ जुड़ी हुई है यह पंडावनी। इसमें पांडवो की कथा है पर लोकजीवन के साथ इतने सुन्दरता और स्वच्छन्दता के साथ ये जुड़ी हुई है कि हमें ऐसा ऐहसास होता है कि पान्डवों की कथा इसी कोसल में से निकली है। यहां कि रीती रिवाज़ की झलके हमें पंडवानी में दिखती है। जैसे इसमें द्रौपदी मायके जाना चाहती है तीजा के अवसर पर, हरतालिका व्रत के अवसर पर। पहली बात है नारी की जो मनोकामना है - मायके जाने की मनोकामना उसे दर्शाया गया है। दुसरी बात है कि यहाँ कि मिट्टी से जुड़ी हुई तीजा के बारे में उल्लेख किया गया है। द्रौपदी जब अर्जुन से अनुरोध करती है कि वे उसे मायके छोड़ आये, अर्जुन तैयार हो जाते है। पर रास्ते में उन्हें बन्दी बना लिया जाता है। पंडवानी में बहुत से धटनाओं की विवरन इसी प्रकार का है जो उसे स्वच्छन्दता प्रदान करती है।

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Content Prepared by Ms. Indira Mukherjee 

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