छत्तीसगढ़

Chhattisgarh


छत्तीसगढ़, ये नाम क्यों?

   

मेरा नाम ज़ाफर है। मैं ज्यादा बोल नहीं पाता लेकिन कुछ बोलूँगा।

एक तो ये है कि जब भी छत्तीसगढ़ की बात आती है तो कई किसम के, दिमाग में, स्मृतियाँ घोलती है। हम भी सोचते है कि इस नाम के पीछे क्या तर्क है। कभी कहते है यहाँ कभी छत्तीस किले थे। फिर कहते है कि यहाँ छत्तीस भागों से बटा हुआ कुछ इलाका था जहाँ पर जाति आधार पर लोग रहते रहे। फिर कहते है कि यहाँ छत्तीस किसम के भाषा, बोली को बोलने वाले लोग रहते है तो इस तरीके से जब छत्तीसगढ़ का बात आता है तो यहाँ विविध संस्कृतियाँ वह काउन्ट होता, एक जो सरगुजा के क्षेत्र का बात हो या बस्तर क्षेत्र का बात हो। या फिर हम ये कहे कि जल, जंगल और जमीन, और दो नाम आ गये है वह है जन और जानवर, ये पाँच नाम बहुत प्रचलित है। पर आज के दृष्टि से भी हम पुराने बातों को किसी बड़े बुजुर्ग के माध्यम से सुनते रहे, रुपान्तर का एक सोच बिल्कुल स्पष्ट रहा है कि हम जब तिबाहा जिले में काम करते थे, आज से दस वर्ष पहले, वहाँ पर सप्तॠषि का नाम जरुर था। त्रंगी ॠषि का नाम वहाँ जानते थे। लेकिन उसके पीछे तर्क का, किवदन्ती का भी बात होता था हम लोगों ने एक बात को ध्यान रक्खा कि हम इस अंचल का पहले शुरुआद करे - हमने जब पता लगाया कि वे सात ॠषि कौन थे - उस समय लिखित में कोई बात नहीं होती थी - लेकिन एक व्यक्ति अगर सौ साल तक जिन्दा है - लोगों के पास ।

करमा गीत (ज़ाफर)

ये करमा का गीत है, छत्तीसगढ़ में ये कहा जाता है कि हर सौ किलोमीटर के अन्तराल में भाषा का जो लय है, वह थोड़ा-थोड़ा बदलता है - छत्तीसगढ़ में चालीस बियालिस प्रकार के जो आदिवासि रहते है, थोड़ा सा लय का परिवर्तन होता है।

ये जो गीत, करमा जब आया, उसमें एक जोड़ा भी है - जोड़ा ये है कि एक प्रेमी एक प्रेमिका से, एक नायक, नायिका से कुछ अपनी बातें कहना चाहता है, अपनी मया के बारे में पहले बोलता है - जैसे कहता है मेरे प्यार में कुछ कड़वा हो गया है क्या - ये जो शब्द है - जैसे सननन - सननन कोई नाम नहीं है, एक प्रतीक है जैसे चाँद का टुकड़ा, मेरी जान, इस तरह से - ऐ सननन करेला जैसा कडू हो गया है क्या मेरा माया - मेरा प्रेम -

- करमा गीत -

ऐ सननन

करेला या सूंकर हो गया

काय मोर मया -

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इलिना सेन - बालगीत

मैं एक बच्चों का गीत सुना रही हूँ। बच्चे अलग अलग मौसम में, अलग अलग समय पे क्या क्या खेल खेलते है -

गीत

मोयी खेलबो

(१) मितानीन (पंडवानी व अन्य लोक शैली में)

इलिना सेन (रुपान्तर) -

मितानीन - रुपान्तर संस्था पिछले कई साल से गांव गांव में लोगो के साथ मिलकर सामुदायिक स्वास्थ कार्य चलावे रहे। आज शासन जो है, उन्ही बात को लेके आज शासन इन्दिर स्वास्थ मितानिन का कार्य रचना कर रही है -

आपन के सामने पण्डवानी शैली मा प्रस्तुत है स्वास्थ मितानिन - मितानिन का सोच, गांव मा का का जिम्मेदारी लेहिन - पूरा बात समझाये गये है - आपन मन कैसेट का मजा लो-(चन्द्रिका जी)

ओरे वृन्दावन की जय -

तोला बन्धा तोला बन्धा.........

(२) इलिना सेन (रुपान्तर)

परमाणु निरशस्रीकरम और शांतिके लिये रुपान्तर लोककला कलामंच के कलाकारों ने महाभारत के स्री पर और शान्ति पद पर आधारित पण्डवानी प्रस्तुत किया है - हम सभी जानते है कि लड़ाई और जंग का सबसे बुड़ा असर महिलाओं के जीवन पर होता है। पण्डवाणी में इसी बात को समझाया गया कि महाभारत लड़ाई के बाद में, जब सब सत्यनाश हो गया, चारों तरफ हाहाकार तबाही को समझती है और शान्ति के लिये सशक्त आवाज़ उठाती है। तो प्रस्तुत है महाभारत के स्री पर शान्तिपद -

- ओ वृन्दावन .......

तोला बन्धा

इलिना सेन

रुपन्तर लोककला मन्च की प्रस्तुति है खाद्य सुरक्षा, भोजन सुरक्षा - हम सभी जानते है कि गांव में, जंगल में हमारे आदिवासी भाई बहन केवल मात्र खेती के माध्यम से अपना भोजन सुरक्षा प्राप्त नहीं करते है। साथ-साथ जंगल से बहुत सारे चीज उनको मिलता है। ये सारी जानकारी आजकल लुप्त प्राय होती चली है।

महाभारत में पाण्डवों ने जिस समय वनवास, अज्ञातवास पे प्रस्थान किया, पाण्डवों ने भी हमारे आदिवासी भाई बहन की तरह जंगल में घूम घूमकर कन्द मूल ऐसा बहुत सारे चीजों से अपना भोन सरुक्षा प्राप्त किया। और सही भोजन सुरक्षा के बारे में बहुत सारी जानकारी उपलब्ध किया। यही सारी बाते पण्डवानी शैली के माध्यम से भोजन सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा नाम के इस कैसेट में प्रस्तुत है - जो कि रुपान्तर लोक कला मंच के हमारे साथियों ने प्रस्तुत किया -

बोल वृन्दवण .....

तोला सुमराव ....

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Content Prepared by Ms. Indira Mukherjee 

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