देवनारायण फड़ परम्परा  Devnarayan Phad Tradition

देवनारायण के कारनामें

देवनारायण के हाथों राजा बिसलदेव द्वारा भेजे गए भैंसा सुरों का अन्त 


इधर अजमेर में जब राजा बिसलदेव जी को पता चलता है कि देवनारायण ने मालवा से वापस आकर खेड़ा चौसला नामक गांव बसा लिया है तब वह बहुत ही नाराज होते हैं और सांड़ीवान के हाथ देवनारायण के नाम संदेश भेजते हैं कि मेरी आंखों के सामने पले बड़े बालक-टाबर ने गांव बसा लिया और हमको खबर भी नहीं करी। अब आकर इसकी करनी भरो और साथ ही यह भी लिखते हैं कि मेहन्दू जी को हमने छोटे से बड़ा किया था और इसको बटूर के थानेदार बनाया था, इसके पीछे जो खर्चा हुआ था वो भी हमें लौटाओ।

देवनारायण बिसलदःेव जी का संदेश पढ़कर छोछू भाट को लेकर अजमेर की ओर रवाना होते हैं। जैसे ही देवनारायण के घोड़े नीलागर के पांव की टांपे अजमेर शहर में पड़ती हैं वैसे ही बिसलदेव जी का राज धूजने (हिलने) लग जाता है। देवनारायण बाहर ही रुक जाते हैं और छोछू भाट अजमेर की कचहरी में जाकर बिसलदेव को बताता है कि देवनारायण पधारे हैं।

देवनारायण फिर अजमेर के महल का कांगड़ा तोड़ते हैं। बिसलदेवजी देखते हैं कि देवनारायण तो बहुत बलवान हैं, कहीं ये महलों में आ गये तो महल टूट जायेगा। वो अपने दानव भैंसा सुर को बुलाते हैं और कहते हैं कि भैसा सुर एक ग्यारह वर्ष का टाबर नीलागर घोड़े पर सवार अजमेर में आया है, जाकर उसे खा जाओं।

भैंसा सुर दानव जाकर देवनारायण को ललकारता है। देवनारायण अपनी तलवार से भैंसा सुर का वध कर देते हैं। लेकिन भैंसा सुर दानव के रक्त की बूंदे जमीन पर गिरते ही और कई दानव पैदा हो जाते हैं। यह देख देवनारायण अपने बायें पांव को झटकते हैं, उसमें से ६४ जोगणियां और ५२ भैरु निकलते हैं।   देवनारायण उन्हें आदेश देते हैं कि मैं दानवो को मार्रूंगा और तुम उनके खून की एक भी बूंद जमीन पर गिरने मत देना। सभी जोगणियां और भैरु अपना खप्पर लेकर तैयार हो जाते हैं, और देवनारायण एक-एक दानव का संहार करते जाते हैं।

भैंसा सुर दानव व अनेक दानवों के मारे जाने की खबर बिसलदेव जी को लगती है तब बिसलदेव जी देवनारायण को गरड़ा घोड़ा देते हैं जो अपने ऊपर किसी को भी सवारी नहीं करने देता था और आदमियों को खा जाता था। देवनारायण उस घोड़े पर बैठकर वहीं एक पत्थर के खम्बे को तलवार से काट कर दो टुकड़े कर देते हैं। देवनारायण का बल देखकर बिसलदेव जी घबरा जाते हैं और दौड़ते हुए देवनारायण के पास आकर कहते हैं भगवान मुझसे गलती हुई, क्षमा करें। और बहुत सा धन देकर देवनारायण को वापस खेड़ा चौसला रवाना करते हैं।

 

 
 

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