देवनारायण फड़ परम्परा  Devnarayan Phad Tradition

खैड़ा चौसला में भूणाजी की वापसी

खैड़ा चौसला में जय मंगला हाथी की वापसी


भूणाजी पिलोदा जाकर जय मंगला-गज मंगला हाथी और बगड़ावतों से लूटा हुआ सामान हांसिल कर राण वापस आते हैं। अब भूणाजी छोछू भाट को सौ घुड़ सवारों के साथ जय मंगला हाथी, गज मंगला हाथी और सारा सामान इकट्ठा कर गोठां वापस भिजवा देते हैं और नारायण के नाम पत्र लिखकर भेजते हैं।

जब जय मंगला हाथी गोठां पहुंचता हैं तब सा माता उसकी आरती उतारती है क्योंकि ११ वर्षो बाद बगड़ावतों का हाथी वापस आया है।

 

देवनारायण और पिलोदा ठाकुर का युद्ध

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छोछू भाट देवनारायण के पास आकर भूणाजी का लिखा पत्र देता है और सारी बात बताता है। देवनारायण पत्र पढ़ते है कि नारायण पहले आप पीलोदा के ऊपर चढ़ाई करो। यह गढ़ फतेह करने के बाद राण पर चढ़ाई करना आसान हो जायेगा। तब तक मैं आपके पास आ जा मुझे अभी वहां राण का थोड़ा हिसाब बराबर करना है, वो पूरा करके मैं लौट आ देवनारायण भूणाजी का संदेश पढकर छोछू भाट से पूछते हैं कि बाबा भाट ये पीलोदा कहां है और वहां के ठाकुर कौन है। छोछू भाट कहता है दरबार पीलोदा के राजा रतन सिंह बड़े वीर और बहादुर है। वो ही अपने हाथी गज मंगला और जय मंगला लूट कर ले गये थे। पीलोदा राण का सबसे मजबूत गढ़ है। इसको फतेह करना जरुरी है। देवनारायण का हुकम हुआ और मेदूजी, मदन सिंहजी, भांगीजी को बुलाया और पीलोदा पर चढ़ाई करने की बात कही और चारों भाई अपने-अपने घोड़े पर सवार होकर अपनी सेना लेकर निकल पड़े।

देवनारायण को ध्यान आया की हम चारों भाई लड़ने चले गये पीछे से गोठां का रखवाला कौन है ? अपने घर बार गांव की रखवाली करने के लिये भांगी जी को छोड़ कर जाते हैं। भांगीजी कहते है कि मेरे बाप का बैर लेने तो मैं भी चलूंगा। लेकिन देवनारायण के समझाने पर भांगीजी मान जाते है और वहीं रुक जाते हैं।

रास्तें में पीलोदा गांव के बाहर ग्वाले गायें लेकर आ रहे थे उन्हें भाट ने पूछा कि भाई ग्वालों कहां के हो ? ग्वालों ने   कहा पीलोदा के। तुम्हारे राजाजी अभी इस समय क्या कर रहे हैं ? ग्वाल बोले तलवारे बो रहे हैं और देव मेदू को मारकर उनकी गायें हमें दे देगें। वो भी हम चरायेगें। ये बात सुनकर देवनारायण, मदनोजी और मेदूजी ने ग्वालों को मारना शुरु किया। कुछ तो मारे गये और बाकि जो बचे वहां से भाग गये।

ग्वाले सीधे दरबार में जाकर राजा रतन सिंह से जाकर दुहाई करते हैं कि महाराज देवनारायण ने हमसे सारी गायें छीन ली और उसके भाई ने हमारे भाई ग्वालों को मार डाला। हम भाग कर आपके पास आये हैं। पीलोदा के राजा रतन सिंह जी अपनी सेना को तैयार कर सत्तर हजार फौज लेकर युद्ध के लिये तैयार हो जाते हैं। और देवनारायण के सामने आकर कहते है कि ए बालक तू यहां से वापस चला जा। तेरी अभी युद्ध करने की उम्र नहीं है। तू हमसे क्या लड़ाई करेगा ? हमने तेरे बाप दादा को रण में मारा है, जो बड़े वीर योद्धा थे।

ये बात सुनकर देवनारायण कहते है कि रे कुम्हार तुम राजपूत कबसे हो गये हो ? काम तो तुम्हार मिट्टी का है और तलवारो की बातें करते हो। कुम्हारों का काम करो और हार मान लो। रतन सिंह अपने को कुम्हार कहते ही उखड़ जाते हैं और हमला शुरु कर देते हैं। देवनारायण मेदूजी और मदन सिहं जी को कहते हैं जाओे चढ़ाई करो। मेंदूजी लड़ाई में कूद पड़ते हैं और पीलोदा के चारों ओर आग लगा देते हैं।

ये सब देख रतन सिंह दुगने जोश से देवनारायण पर टूट पड़ते हैं। देवनारायण रतन सिंह की सारी सेना का सफाया कर देते हैं और रतन सिंह को कुम्हार बना देते हैं। उसे मारते नहीं है और उसे मिट्टी के घड़े और घोड़े की जगह एक गधा दे देते हैं, और मटके बनाने का एक चाक भी देते हैं और कहते हैं कि तेरा जो पुस्तेनी काम है तू वहीं करेगा आज से।

जब देवनारायण पीलोदा जीतकर आते हैं तो पीपलदे जी उनकी आरती उतारती है और माता साडू बाकी सब भाईयों की आरती उतारती हैं। माता साडू छत पर चढ़कर देखती है, पीलोदा की ओर धुंआ ही धुंआ दिखाई देता है। पीलोदा जल कर राख हो जाता है।

पीलोदा से उठता हुआ धुंआ राण के रावजी को भी दिखाई देता है, रावजी भूणाजी से पूछते हैं कि भूणा पिलोदा में इतना धुंआ क्यों हो रहा है ? भूणाजी समझ जाते हैं जरुर देवनारायण ने पीलोदा पर चढ़ाई कर दी है। लेकिन रावजी से कहते हैं वहां सत्तर हजार राणियों का ब्याह है, तो खाना पक रहा होगा। रावजी कहते हैं हमारे बराबर के वहां के सरदार है। हमें तो न्यौता नहीं आया। भूणाजी कहते हैं दरबार मुझे तो तीन दिन पहले ही न्यौता आ गया है। आपके पास भी आ रहा होगा।

भूणाजी के इतना कहते ही सांडीवान संदेश लेकर आ जाता है। रावजी सोचते हैं कि न्यौता आया है लेकिन सांडीवान कहता है पीलोदा खत्म हो गया। सब कुछ जलकर राख हो गया है। देव, मेदू ने पीलोदा पर चढ़ाई कर दी। भांगीजी ने पीलोदा को आग लगा दी है। रावजी देखकर सोचते हैं भूणाजी को सब पता था इसने हमें बताया नहीं और वो भूणाजी से कहते हैं बेटा भूणा इसका न्याय अब तेरे को ही करना है। भूणाजी कहते है बाबासा मैं तो इस भाले की अणी से न्याय कर्रूंगा, आ जाओ सामने। इतनी बात सुनकर रावजी घबरा जाते हैं और महलों की ओर भाग जाते हैं।

 

 
 

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