देवनारायण फड़ परम्परा  Devnarayan Phad Tradition

खैड़ा चौसला में भूणाजी की वापसी

भूणाजी को मरवाने के लिए रावजी के षडयन्त्र


भूणाजी रानी सांखली के महलों से सीधे बादल महल में जाते हैं वहां बहन तारादे के साथ बैठकर खाना खाते हैं और तारादे को सारी बात बताते हैं। तारादे कहती भाईसा आप सावधान रहना। आपको मारने की कई कोशिशे हो रही हैं। दादा भाई आप मेरे महल में ही ठहरो। यहां से कहीं भी जाओ तो मुझे बता कर ही बाहर जाओ।

इधर रानी सांखली वचन लेती है जब तक भूणा मर नहीं जाये तब तक अन्न जल ग्रहण नहीं कर्रूंगी। रावजी और रानी मिलकर भूणाजी को मारने की साजिश करते हैं। उन्हें पता था कि भूणाजी शिवजी का भक्त है और भोलेनाथ शिवजी की पूजा करने प्रतिदिन मन्दिर जाते हैं। वहां ध्यान करते हैं। उस समय उनके पास शस्र भी नहीं होते हैं। वहीं उन्हें जंजीरों में जकड़ कर कैद किया जाए।

रानीजी कीरों को बुलवाती है और उन्हें भूणा को कैद करने पर बहुत धन देने का लालच देती हैं। कीरो का मुखिया कालिया पीर भूणाजी को कैद करने का वचन देता है।

राजकुमारी तारादे को इस षडयंत्र का पता चल जाता है। वो भूणाजी को मन्दिर जाने के लिये मना करती है, कहती है दादा भाई आज आप मत जाओ। आपको कीर लोग वहां जंजीरों में जकड़ लेगें। भूणाजी कहते है, बहना भोले नाथ की भक्ति करते ंगा ११ वर्ष हो गये है। आज नहीं जा तो व्रत खण्डित हो जायेगा। जैसे भोलेनाथ शिवजी को मंजूर होगा वही होगा। उनकी इच्छा के सामने किसी की नहीं चलती है।

भूणाजी महादेव जी की सेवा करने मन्दिर में आते हैं। शिवजी की आरती करते हैं और जल चढ़ाते है, बेल पत्र चढ़ाते हैं, भांग, धतुरा चढ़ाते हैं और पूजा पाठ करके शिवजी का ध्यान करने बैठ जाते हैं। जब भूणाजी ध्यान कर रहे होते हैं तब कालीया कीर और उनके साथी भूणाजी को जंजीरों में जकड़ लेते हैं और पींजरे में बंद करके दरबार में लाकर पेश करते हैं। उस समय भी भूणाजी शिवजी के ध्यान में लीन होते हैं।

रावजी कीरों से कहते हैं कि इसे चोर बरड़िया में (जहां कातिलाना सजा दी जाती है) ले जाओ। और इसका सिर काटकर इसकी आंखे निकाल कर ले आना और इसके सिर को पेड़ पर लटका देना। ये बात तारादे को

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पता चलती है कि भूणाजी को शिव मन्दिर से कीरों ने जंजीरों में जकड़ कर पिंजरे में बंद कर सजा देने के लिये चोर बरड़िया ले गये हैं। तारादे हाथ में कटार और भाला लेकर रावजी के दरबार में पहुंचती है और कहती है कि मेरे भाई को छोड़ दो नहीं तो मैं खुद मरती हूं। उसके बाद राजकुमारी तारादे मर्दाना भेष धारण कर चोर बरड़िया पहुंच जाती है और भूणाजी को आवाज लगाती है भूणाजी का ध्यान टूटता है तो अपने को जंजीरो में जकड़ा हुआ पाते हैं और तारादे को आते हुए देखते हैं। भूणाजी वहां से तारादे को वापस जाने को कहते हैं लेकिन तारादे उनको छुड़ाये बगैर जाने को तैयार नहीं होती। वहां तारादे देवनारायण भगवान का ध्यान करती है कि नारायण आपके भाई पर विपदा आ पड़ी है। देवनारायण काला गोरा भैरु को भूणाजी को छुड़ाने भेजते हैं। काला गोरा भैरु भूणाजी की दोनों बाजुओं में समा जाते हैं और भूणा जी जोर लगाकर जंजीर तोड़ देते हैं। ये देख कर कीर वहां से भाग कर झाड़ियों में छिप जाते हैं। तारादे और भूणाजी दोनों आकर गले मिलते हैं और तारादे कहती दादा भाई आप यहीं से अपने भाईयों के पास खेड़ा चौसला चले जाओ। यहां सब आपके दुश्मन हो गये हैं। आपको कभी भी मार सकते हैं। भूणाजी कहते है बहना बिना बाबाजी से विदाई लिये नहीं जा सकता हूं। उनसे आखरी बार मिलकर मैं लौट जा

तारादे के साथ बादल महल में आकर दोनों भाई-बहन साथ भोजन करते हैं। भूणाजी बाजार में जाकर चीर (कपड़ा साड़ी) खरीदकर लाते हैं और अपनी धर्म बहन तारादे को ओढ़ा कर जाने की आज्ञा लेते हैं। वहां दोनों भाई-बहन खूब रोतें हैं। दोनों के कपड़े आंसुओं से भीग जाते हैं।

भूणाजी को मारने की एक और साजिश रावजी अपने दरबार में दियाजी, मीरजी और सोलंकी जी के साथ मिलकर करते हैं कि भूणाजी अपने भाईयों के पास जा रहे हैं। इनको छोड़ने तीनो मीर, उमराव साथ जायेगें और रास्ते में मटियानी की बावड़ी पर भूणाजी पर वार करेगें। ये बात तारादे को पता चल जाती है। और तारादे भूणाजी को जाते वक्त सावधान कर देती है कि मटियानी बावड़ी पर आप सावधान रहना।

भूणाजी अपनी बोर घोड़ी पर सवार होकर रानी जी से विदाई लेकर सीधे घोड़े सहित ही रावजी के दरबार में आ जाते हैं और रावजी से कहते हैं बाबासा मैं अपने भाइयों के पास जा रहा हूं। मुझे इजाजत दीजिए। भूणाजी रावजी के यहां से निकलते हैं और दियाजी और मीरजी और टोड़ा का सोलंकी रावजी के जंवाई भूणाजी को पहुंचाने के लिये साथ जाते हैं। वहां साथ में रावजी का गांगा भाट भी साथ हो जाता है।

दियाजी भूणाजी से कहते है कुंवर सा आज हम लोगो के साथ आखरी बार शिकार खेल लीजिए। सुवर का शिकार। भूणाजी कहते हैं कि सरदारों आप की ये इच्छा भी पूरी कर देते हैं। और पूछते हैं कि शिकार खेलने के बाद सारे कहां इकट्ठे होगें। दियाजी कहते है मटियानी बावड़ी पर इकट्ठे होगें। वहां पानी पीयेगें और वहां से भूणाजी को विदा कर हम वापस लौट आयेगें।

चारों जने अलग-अलग शिकार पर निकल जाते हैं। भूणाजी सीधे मटियानी बावड़ी पर पहुंच जाते हैं और बावड़ी में उतर कर अपनी घोड़ी को भी पानी पिलाते हैं और खुद भी पानी पीकर वहां जोर से किलकारी मारते है तो आसपास के परिन्दे इकट्ठे हो जाते हैं। भूणाजी उन सब को मारकर उनके कान, नाक काट लेते हैं और बावड़ी के बाहर आकर बैठ जाते हैं। वहां थोड़ी देर में तीनों उमराव पहुंच जाते हैं। उनके साथ भाट भी होता है। बावड़ी पर आकर वो भूणाजी से कहते है कुंवर सा आज तो थक गये शिकार के पीछे दौड़ते दौड़ते। शिकार ही हाथ नहीं लगा। भूणाजी से कहते हैं आओ बावड़ी में से पानी पीलो। भूणाजी कहते हैं मैनें तो पानी पी लिया और घोड़े को भी पिला दिया। अब आप जाकर पी लो। मगर अस्र-शस्र बाहर ही रख कर जाना बावड़ी में नहीं ले जाना।

तीनों मीर और उमराव और भाट चारों जने अपने अस्र-शस्र बाहर ही रख कर बावड़ी में पानी पीने उतरते हैं और पीछे से भूणाजी बावड़ी का दरवाजा बंद कर देते हैं और पास ही खड़े बावड़ी के रखवाले को कहते हैं आसपास खेत में क्या बो रखा है लाकर दो। रखवाला खेत से ककड़ी और तरबूज तोड़कर ढेर लगा देता हैं। भूणाजी बाहर से बावड़ी में तरबूज और काकड़ी से सभी को जोर जोर से मारते हैं और एक-एक को बाहर आने के लिये कहते है। सबसे पहले दियाजी की एक मूंछ और एक तरफ की कलम का लेते हैं। और फिर मीर जी का एक कान काट लेते हैं। और सोलंकी के कटार से निशान कर देते हैं और भाट को छोड़ देते हैं और उनके घोड़े घेरकर अपने साथ ले आते हैं। और चारों जनों से कहते हैं कि घोड़ी के काठियां अपने सर पर रख कर पैदल-पैदल जाओ।

वहां से चारों जने अपनी-अपनी घोड़ी के काठियां जींण अपने-अपने सिरों पर लादकर राण में लौटते हैं।

 

 
 

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