देवनारायण फड़ परम्परा  Devnarayan Phad Tradition

पाँचों भाईयों की फौज और रावजी से बदला

कपूरी धोबन और देवनारायण के ग्वाले


 

कपूरी धोबन सारे धोबियों की फौज को अपने साथ लेकर गुदलिया तालाब पर आती है और सबको कहती है कि अगर देव की गायें पानी पीने के लिये आये तो उन्हें पानी पीने मत देना और ग्वालों को पकड़ कर मेरे सामने लेकर आना। ये कहकर कपूरी धोबन अपने तम्बू में विश्राम करने चली जाती है।

इधर ग्वाले शिखराणी के जंगल में गायें चराने आते हैं, वहां डूंगर पर से देखते हैं कि आज गुदलिया तालाब पर इतनी भीड़ भाड़ और कपड़े धोने की आवाजें आ रही है, क्या बात है ? पदमा पोसवाल और कुछ ग्वालों को भेजकर नापाजी पता करवाते हैं और कहते हैं कि कोई खतरे की बात हो तो लकड़ी पर कपड़ा बांध कर फहरा देना। हम सब दौड़ कर आ जायेगें। पदमा पोसवाल और ६-७ ग्वाले गुदलिया तालाब पर आते हैं तो देखते हैं कि धोबियों की भीड़ लगी हुई है। चारों तरफ कपड़े सुखा रखे हैं और सारे तालाब का पानी खराब कर दिया है। पदमा पोसवाल कहता है, ऐ धोबियों ये सब अपने कपड़े लत्ते समेटो और यहां से भाग जाओ। अभी देवनारायण की गायें आयेगीं तो सारे कपड़े खराब कर देंगी। ये बात सुनकर एक धोबी कहता हैं कि तम्बू में हमारी काकीजी बैठी हुई हैं। ये बात उनको जाकर कहो। गरड़ डांग नाम का ग्वाला जाकर सीधा तम्बू में जा घुसता है और कपूरी धोबन से जाकर कहता है कि अपने सारे कपड़े समेट ले, नहीं तो हमारी गायें सारे कपड़े खराब कर देगीं।

कपूरी धोबन तम्बू से बाहर आकर धोबियों से कहती है कि इन ग्वालों को पकड़ कर बान्ध दो। सारे धोबी मिलकर ग्वालों के पीछे दौड़तें हैं। एक ग्वाला लकड़ी के कपड़ा बांध कर हवा में फहरा देता हैं सारे ग्वाले दौड़ते हुए वहां पहुंच जाते हैं और एक-एक धोबी पर दो-दो ग्वाले टूट पड़ते हैं। धोबी तो सारे वहां से भाग जाते हैं और ग्वाले कपूरी धोबन को पकड़ कर पीटने लगते हैं। गेंद्या धोबी वहीं पेड़ पर चढ़ कर छुप जाता है, बाकि सारे धोबी भाग जाते हैं।

 

सारे ग्वाले मिलकर कपूरी धोबन को पीटते हैं और उसके बाल पकड़ कर उसे तालाब में डुबोते हैं और वापस बाहर निकालते हैं। कपूरी धोबन के सारे बाल काट देते हैं और उसे पानी में डुबो-डूबो कर पीटते हैं जिससे कपूरी धोबन अचेत हो जाती है।

ग्वाले समझते हैं कि मर गयी है, इसका यही पर दाह संस्कार कर दो और आस-पास के काटें और लकड़ियां इकट्ठी कर ढेर लगा देते हैं। इतनी बात सुनकर कपूरी धोबन उठकर खड़ी हो जाती हैं। सब ग्वाले समझते हैं कि भूतनी कहां से आ गयी और सब उसको मारने लगते हैं।

नापाजी सब ग्वालो को रोकते हैं और मना करते हैं इसको अब छोड़ दो इसके पीड़ा हो रही है। इसको अब ठण्डा करने के लिये माथे में दही लगाओ इसके सारे बाल काट लेने से माथे में जलन हो रही है। एक ग्वाला कहता है कि आकड़े का दूध लगाओ उससे सारी पीड़ा दूर हो जायेगी।

ग्वाले पास में लगे आंकड़े के पेड़ के पत्ते तोड़ कर उसका दूध इकट्ठा कर धोबन के माथे में लगा देते हैं। जिससे उसके और जोरों से जलन होने लग जाती हैं और वो उछलने लगती है। सारे ग्वाले हंसते हैं और नापा ग्वाल कहता है कि अपनी एक-एक अंगुठी खोलकर इसे देते जाओ और इसके माथे में मारते जाओ। सारे ग्वाले कपूरी धोबन को एक-एक अंगुठी देते जाते हैं और उसके माथे में मारते जाते हैं।

कपूरी धोबन के पास अंगुठियों का ढेर लग जाता है। उसे वो अपनी सभी अंगुलियों में पहन कर वापस गांव की ओर आती हैं। और रानीजी के महल मे जाने से पहले एक पड़ोसन के बच्चे को अपनी गोद में उठाकर साथ लाती हैं। रानीजी कहती हैं काकी जी राम-राम। कपूरी धोबन कहती है जीवती रहो, मेरे साथ हुआ वो सब के साथ होए। रानीजी पूछती है काकीजी आपसे साथ क्या हुआ। धोबन कहती है रानीसा गुदलिया तालाब पर छप्पनीयां भैरु प्रकट हुए है। उन्होनें मुझे बच्चा दिया है, मैं वहां पर जाकर लकड़ी लेकर बैठती हूं। देवनारायण के ग्वाले आते हैं, उनको पीटती हूं। मुझे सब एक-एक अंगुठी देते हैं। इसलिए मेरे पास इतनी सारी अंगूठियां हैं।

रानी को विश्वास आ जाता है और धोबन को कहती है काकी मेरा कोई बेटा नहीं हैं। एक भूणा को बेटा बनाया था सो वह तो चला गया। क्या मेरे को भी बच्चा दे देगें भैरुजी। धोबन कहती है रानीसा अगर आप छप्पनीयां भैरु की एक जात जिमाओं तो वो आपकी गोद भर देगें।

 

 
 

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