देवनारायण फड़ परम्परा  Devnarayan Phad Tradition

पाँचों भाईयों की फौज और रावजी से बदला

देवनारायण की बैकुण्ठ की ओर वापसी


देवनारायण सा माता, मेदूजी, मदन सिहंजी, भांगीजी, को तो अपने साथ बैकुंठ ले जाते हैंं। और भूणाजी को अमर कर देते हैं। और भगवान वहां से पहले नाग पहाड़ पर आते हैं और फिर मालासेरी की डूंगरी में जाकर अन्तध्र्यान हो जाते हैं। पीपलदेजी से कह जाते हैं कि मैंने ३ ब्याह शादियां करी। तीनों को लोग मेरे साथ पूजेगें। तीनों को एक जगह रखेगें। इस प्रकार जो देवनारायण का पाट लगता हैं वो तो राक्षस कन्या है और जो जोत दीप जुड़ते है वो राजा बासक की नाग कन्या और जो ईंटें है वो पीपलदेजी का स्वरुप और उनको पूजा में नीम की पत्तियां चढ़ती हैं।

वीला-बीली जब बड़े होते हैं तब नापाजी उन्हें अपने मां-बाप की देवलियों की सेवा में लेकर जाते हैं। बीली तो सेवा करने के लिए तैयार हो जाती है मगर बीला सेवा करने से मना कर देता है। उसी दिन से बीला के शरीर में कोढ़ हो जाता है

गांव वाले भी बिला-बिली को गांव से निकाल देते हैं। यहां तक कि उन दोनों को भीख मांगकर अपना गुजारा करना पड़ता है। बिली, बिला को भगवान देवनारायण की सेवा करने के लिए बहुत समझाती है।

आखिर में बिला मान जाता है और देवनारायण भगवान की सेवा करने के लिए तैयार हो जाता है। तब भगवान उनको साक्षात दर्शन देते हैं और उनका सारा कोढ खत्म कर उनकी देह को कंचन जैसा कर देते हैं।

और कहते हैं कि बीला अगर तू अहंकार नहीं करता तो मेरे बराबर मेरे आसन पर बैठता। अब तूने अहंकार किया था तो तेरा स्थान हमेशा मंदिर के पिछवाड़े ही होगा। तबसे देवनारायण के देवरोंे के पीछे बीले का स्थान होता है।

 

श्री देवनारायण भगवान की जय

 

 
 

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