हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 35


IV/ A-2034

शान्तिनिकेतन

दिनांक 29.1.40

अभिनव भारती ग्रन्थमाला

संपादक                                                              

हजारी प्रसाद द्विवेदी                                

शान्तिनिकेतन

बोलपुर E.I.Ry.

आदरास्पदेषु,

              प्रणाम!

       आपके जाने के दूसरे दिन से ही मुझे आँव पड़ गया था। बबुआ की माँ का शरीर भी कुछ अस्वस्थ हो गया, इस प्रकार सात-आठ दिन कुछ ढीलमढाल चलती रही। अब सब ठीक है। हम दोनों ही अब स्वस्थ हो गये हैं।

       आपका पाजामा यहीं भूल गया है। आपने कहा है कि मैं किसी भागते पदार्थ की लंगोटी समझूँ। पर मैं इस लंगोटी को मानने को तैयार नहीं हूँ। क्योंकि यह बहुत ढीली है और किसी की लंगोटी का ढीला होना बहुत अच्छी बात नहीं है। खैर, लंगोटी हो या पतलून-योsसि सोsसि भगवन् नमोsस्तुते!

       श्री क्षिति बाबू वाले चित्र भी मिल गये हैं। भेज रहा हूँ।

       शर्मा जी पिछली बार आये थे। एण्ड्रूज़ साहब का बहुत कुछ काम करा गये थे। आज फिर आने वाले हैं। परन्तु दो-एक दिन से एण्ड्रूज़ साहब की तबीयत खराब है। दो दिन पहले तो वह बहुत खराब हो गई थी। अब स्वस्थ हैं। नंदलाल बाबू राजगीर से लौट कर आये तो कह रहे थे कि आपसे उनकी बाबचीत हुई है। हिन्दी भवन के बरामदे में (रोलिंग पर) तो कुछ चित्र बनाने का आयोजन वे कर रहे हैं, पर भीतरी हाल में अच्छी फ्रेस्को के लिये पैसों की ज़रुरत होगी। ऊपर से चार फीट नीचे तक दीवाल पर नये सिरे से पलस्तर कराना पड़ेगा और तब उस पर चित्र बनाये जा सकेंगे। मुझसे नंद बाबू के सहकारी विनोद बाबू कह रहे थे कि फ्रेस्को वैसे तो १००-५० में भी हो जायेगा, लेकिन अच्छे काम के लिये उपयुक्त मसाले और आदमियों (मज़दूरों) आदि के लिये कम-से-कम १०००/- रुपये की ज़रुरत होगी। अभी इस विषय पर नंदलाल बाबू से बातें नहीं हुई हैं। क्योंकि अभी तक मैं विश्राम ही कर रहा हूँ। घूमने-फिरने की मनाही है। चित्रों के विषय में मेरा विचार इस प्रकार है कि ऊपर फ्रेस्को में तो प्राचीन कवियों के चित्र रहें और नीचे आधुनिक साहित्यकों के। फ्रेस्को में मैं हिन्दी कवियों के साथ जयदेव, चण्डीदास और चैतन्य देव के चित्र भी देना उचित समझता हूँ। जयदेव और चण्डीदास इसी जिले के रहने वाले थे। चण्डीदास बंगला के सूरदास हैं और चैतन्य देव समस्त बंगाल की आध्यात्मिक साधना के प्रतिनिधि हैं। इन तीनों को रख कर हम बंगाल की सहानुभूति पा जायेंगे और अपना जो उदारता का सिद्धान्त है, उसे भी, पालन कर सकेंगे। आधुनिक साहित्यिकों के चित्रों के बीच में एक गुरुदेव का और एक एण्ड्रूज़ साहब का भी चित्र रहे। मुझे निश्चित विश्वास है कि आप इस योजना को पसन्द करेंगे। आज शर्माजी यदि आ जायेंगे तो उनसे भी इस विषय पर बात कर्रूँगा।

       हमें एक बड़ी दरी की (हाल के लिये) बहुत सख्त ज़रुरत है। आलमारियों के साथ ही इसे भी आप ध्यान में रखें। कहीं टिप्पस बैठ जाय तो इसे भी स्वीकार कर लें। मैंने शर्माजी के कानों भी बात लगा दी है।

       आप फिर इधर कब आ रहे हैं। शर्माजी कह रहे थे कि उनके चले जाने पर आपका आना ज़रुरी होगा। इस समय विशाल भारत को ठीक ढर्रे पर लाने के लिये आप दोनों में से किसी एक का रहना आवश्यक है। यदि आप इधर आयेंगे तो मैं अपनी लिखी एक छोटी-सी पुस्तिका दिखाऊँगा। यदि न आ सकेंगे तो डाक से भेज कर आपकी राय लूँगा। पुस्तक का नाम होगा भारतीय साहित्य की प्राणधारा या ऐसा ही कुछ।

       मेरठ के   श्री कृष्णचन्द्रजी को मैं पत्र लिख रहा हूँ।

       आपने हिन्दी प्रचार समिति जो संदेश को भेजा है, वह मुझे बहुत अच्छा लगा। हिन्दी प्रचार प्रेम से ही होना चाहिए। आपका मत ठीक है। निरालाजी को आपने राष्ट्रभाषा के बारे में जो लिखा है, मैंने भी उन्हें इसी आशय का पत्र लिखा था।

       आशा है आप सानन्द हैं।

       आज आपका भेजा हुआ निरालाजी के नाम का पत्र (नकल) मिला। मुझे बहुत पसंद आया। मैं समझता हूँ, आपको इस पत्र में यह नहीं लिखना चाहिए था कि आप साहित्य में रपट पड़े थे और कोई साहित्यिक कार्य आपने नहीं किया है।

आपका

हजारी प्रसाद

पुनशच:

       विशाल भारत का जनवरी वाला अंक निस्संदेह बहुत ही महत्तवपूर्ण है। सारी सामग्री में कहीं भी भारती की कोई बात नहीं है। आपका लेख इसमें अधूरा रह गया है, ऐसे लेखों को अधुरा नहीं रहने देना चाहिये था। शर्माजी का लेख बहुत महत्त्वपूर्ण है। नागरी लिपि के प्रथम ग्रंथ वाला लेख नाना दृष्टियों से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। यह लेख लिपि सुधार के विरोधियों की भी आँख खोलने का कार्य करेगा। मैंने फरवरी के लिए गुरुदेव वाला लेख अनुवाद करके भेज दिया है।

       एक स्वार्थगत बात। मेरे छोटे भाई की परीक्षा फीस के लिये इस महीने ३५/- के करीब अधिक देना पड़ेगा। वि.भा. के कोष से क्या कुछ मिल सकने की आशा है?

       एण्ड्रूज़ साहब के साथ घावले और विनोद आदि के साथ जो ग्रुप फोटो आपने लिया था, वह कैसा आया है, एक प्रति भेज देना अच्छा होगा

आपका

हजारी प्रसाद द्विवेदी  

पिछला पत्र   ::  अनुक्रम   ::  अगला पत्र


© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

सभी स्वत्व सुरक्षित । इस प्रकाशन का कोई भी अंश प्रकाशक की लिखित अनुमति के बिना पुनर्मुद्रित करना वर्जनीय है ।

प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली