हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 44


IV/ A-2043

17.2.41

श्रध्देय पंडित जी,

              प्रणाम!

       कृपा-पत्र और श्री शंकर देव जी का पत्र मिल गया था। गुरुकुल के एक अध्यापक पं. हरिदत्त शर्मा भी आये थे। बहुत-बहुत उपायों से बहुत कुछ असाध्य-साधन-सा करके गुरुदेव का भाषण उनको दिलवा दिया है। क्षिति बाबू को यहाँ के लोग छोड़ना नहीं चाहते, क्योंकि १३ अप्रैल को गुरुकुल का दीक्षान्त-संस्कार है और १४ अप्रैल को यहाँ वर्षारंभ और गुरुदेव का जन्मोत्सव। इसीलिए रथी बाबू इस अवसर पर क्षिति बाबू को छोड़ना नहीं चाहते। वैसे मैंने क्षिति बाबू को राजी कर लिया है। आप रथी बाबू को एक पत्र लिखें कि क्षिति बाबू को वहाँ जाने दें तो शायद वह नहीं रुकें।

       बसन्तोत्सव का लेख हमारे पास तैयार ही था। मैंने उसी समय भेज दिया था। आशा है मिल गया होगा।  

       और सब कुशल है।

आपका

हजारी प्रसाद

       धर पर एक नया अतिथि आया है। चौथी सन्तान और तीसरी कन्या।

पुनश्च:

       मधुकर के एक हजार धन्यवाद और सात रुपये मिल गये। डाक विभाग घाटे में रहा, क्योंकि सिर्फ दो आने कमीशन में ही उसे इतना ढोना पड़ा।

आपका

हजारी प्रसाद द्विवेदी  

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली