हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 66


IV/ A-2066

शान्तिनिकेतन

10.7.44

पूज्य पंडित जी,

              सादर प्रणाम!

       आपको एक खुशखबरी देनी है। हिन्दी-भवन अब तक मकान-ही-मकान था। इस विषय में कुछ प्रयास किया गया था। आपको जानकर प्रसन्नता होगी कि श्री कानोडिया जी और श्री पुरुषोत्तम हलवासिया जी की कृपा से इस वर्ष से कुछ ठोस कार्य करने की व्यवस्था हो रही है। दो विद्वान स्कालरों और एक अध्यक्ष का खर्च देना हलवासिया ट्रस्ट ने स्वीकार लिया है। मैं चहाता हूँ कि आप उचित समझें तो एक पत्र श्री पुरुषोत्तम हलवासिया को उत्साहित करने के लिए लिख दें उनकी उमर अभी कम है, पर रुचि अच्छी है और हृदय विशाल है। उनका पता है-

              श्री पुरुषोत्तम दास जी हलवासिया,

              ४७, मुक्ताराम बाबू स्ट्रीट,

              कलकत्ता

       एक पत्र कानोडिया जी को भी लिख दें तो अच्छा रहे। आप वहाँ बैठे-बैठे भी दो-चार चिट्ठियाँ लिखते रहें तो हिन्दी-भवन का बहुत लाभ हो। आपकी ही कृति है।

       एक और निवेदन है। श्री गुरुदयाल मलिक जी हिन्दी-भवन में ही रहना चाहते हैं। वे इन दिनों यहाँ नहीं हैं। एण्ड्रूज़ साहब उन्हें कितना प्यार करते थे, यह आप जानते ही हैं। गुरुदेव के और गाँधी जी के वे समान भाव से प्रिय हैं। उनके जैसा आदर्श चरित्र और उच्च आत्मबल का व्यक्ति हिन्दी-भवन को मिल रहा है, यह हमारा अहोभाग्य है। वे यहाँ रह कर कुछ काम करेंगे। एण्ड्रूज़ साहब के बारे में भी उनसे लिखवाया जा सकता है। मैं चाहता हूँ कि उनके खर्चे की कोई व्यवस्था हो जाती। इस विषय में क्या टीकमगढ़ के महाराजा साहब से कोई आशा कर सकता हूँ। आप जो उचित समझें, वह करें या मुझे करने को लिखें। मैं इन विषयों में अल्पज्ञ हूँ। हिन्दी-भवन की योजना बनाने के लिये श्री धीरेन्द्र वर्मा, डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल आदि विद्वानों से सलाह लेने की व्यवस्था हो रही है। इसके बाद विस्तृत रुप से आपको लिखूँगा।

       कृपया शीघ्र ही पत्रोत्तर दें।

आपका

हजारी प्रसाद

       श्री पुरुषोत्तम दास जी, श्री विश्वेश्वर लाल हलवासिया के सुपुत्र हैं। अभी तक उनकी कम थी, बालिग नहीं थे। इस समय उनकी अवस्था २१ वर्ष के आस-पास है।

 

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली