हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 76


IV/ A-2078

शान्तिनिकेतन

  29.6.47

श्रध्देय पंडित जी,

              सादर प्रणाम!

गुरुदेव और हिंदी वाले लेख की कुछ प्रतियाँ अवश्य भेज दीजिए। यद्यपि यह तो निश्चित-सा ही था कि एक न एक दिन आप वहाँ से चल देंगे, परन्तु फिर भी आपके निश्चित रुप से चल देने की सूचना पाकर मन कैसा-कैसा हो गया। अब कहाँ जाने का विचार है। अपना प्रोग्राम लिखिए। मैं बहुत दिनों से सोच रहा था कि आपसे मिलूँ। कई बातों में सलाह लेनी है। दिवाली बाद यदि आप फीरोजाबाद रहेंगे तो वहाँ भी आ सकता हूँ। पूजा की छुट्टियों में, यदि भगवत्कृपा से स्वास्थ्य ठीक रहा तो हरिद्वार जाना है। वहाँ से उधर आसानी से जाया जा सकता है। हरिद्वार में गुरुकुल के आचार्य जी का निमंत्रण है। कुछ व्याख्यान देने के लिये। लड़के का जनेऊ आपके आशीर्वाद से सानंद संपन्न हो गया। आपका पत्र पढ़कर चतुर्वेदी लेखक बनने को उत्साहित हुआ है। पर साहित्य की दुनिया तो थर्ड क्लास का डब्बा है। किसी नये चढ़ने वाले को देखकर लड़ने की ही इच्छा होती है। कुछ लोग बिना टिकट के ही इसमें चढ़ गए हैं।

       आशा है, प्रसन्न हैं।

आपका

हजारी प्रसाद  

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली