हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 111


IV/ A-2108

8.8.1954

आदरणीय पंडित जी,
प्रणाम!

आपका कृपापत्र कल उस समय मिला जब मैं आगरे के लिए रवाना हो रहा था। पत्र गाड़ी में से लिख रहा हूँ। इतिहास की रुपरेखा तो बनारस लौटने के बाद ही भिजवाऊँगा इतना निवेदन कर दूँ कि सभा ने इस रुपरेखा को स्वीकार किया है पर यह मेरा नहीं है। मैंने एक रुपरेखा तैयार की थी पर वह शायद सभा को छोटी जान पड़ी और स्वीकृत नहीं हुई। इस योजना में मेरा नाम अवश्य है पर मैं पूर्ण रुप से उत्तरदायी नहीं हूँ। मेरे कहने का मतलब यह है कि आपको भी लिखेंगे वह। "द्विवेदी-चतुर्वेदी संघर्ष" नहीं होगा। अस्वस्थ रहने के कारण मैं इतिहास वाली बैठकों में से किसी एक में भी शामिल नहीं हो सका। वैसे, जब तक, सभा में हूँ तब तक उसके प्रत्येक कार्य का उत्तरदायित्व तो मेरे ऊपर आंशिक रुप से है ही। आपसे कटुता की आशा कैसे की जा सकती है। यों भी आप कभी कटु नहीं होते और अभी तो कम से कम कुछ दिनों तक ऐसे आदमी को नाराज़ करना ही नहीं चाहिए जो ज्योतिषी और पुरोहित दोनों का काम जानता हो। नीति भी तो कुछ चीज़ है। मैं २७ अगस्त को दर्शन कर्रूँगा, ऐसी आशा है।

शेष कुशल है।

आपका
हजारी प्रसाद

पुनश्चः लिखिए अवश्य। आपके लिखने से मुझे लाभ ही होगा। सभा भी जितनी दूर तक संभव है अपनी योजना को सुधार सकेगी।

ह. द्विवेदी

पिछला पत्र   ::  अनुक्रम   ::  अगला पत्र


© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

सभी स्वत्व सुरक्षित । इस प्रकाशन का कोई भी अंश प्रकाशक की लिखित अनुमति के बिना पुनर्मुद्रित करना वर्जनीय है ।

प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली