हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 126


IV/ A-2123

चण्डीगढ़
17.8.61

आदरणीय पंडित जी,
प्रणाम!

कृपा पत्र मिला। कल चेली शोव साहब आए। आज विश्वविद्यालय में उनका भाषण भी हुआ। लोग बहुत प्रसन्न थे। बड़े विद्वान और स्नेही लगे।

गुरुदेव ने बच्चों के लिए जितना लिखा है उतना शायद ही किसी बड़े साहित्यकार ने लिखा हो। उन्होंने बच्चों के प्राईमर से लेकर सरस काव्य तक आनेक पुस्तकें लिखी हैं। यहाँ तक कि उनकी हैंड राइटिंग ठीक करने के लिए भी पुस्तकें लिखी हैं। अक्षरों का परिचय भी उन्हें काव्य की सहज ग्राह्मय विधि से कराया है और लिखना उत्तम बनाने के लिए जो भी छोटे-छोटे काव्य लिखे हैं वे कवित्व की कसौटी पर खरे उतरते हैं उन्होंने संस्कृत सिखाने के लिए, अंग्रेजी सिखाने के लिए छोटी-छोटी किन्तु महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी हैं। "श्रुतिशिक्षा"डाइरेक्ट मेथड से अंग्रेजी सिखाने की पुस्तक है। "शिशु" की कविताएं तो प्रसिद्ध ही हैं। बंगाल का हर बालक इन कविताओं के लय ताल छंद का आस्वादन करता है। उन्होंने "आपन खामछाड़ा" नामक एक सुन्दर बाल काव्य लिखा है जो नाम से विषय को स्पष्ट करता है। आबोल-ताबोल अर्थात्। इसके अद्भुत छंदों में विचित्र प्रकार के चरित्र स्फुट हुए हैं। यह उनकी वृद्धावस्था की कृति है। आखिरी उमर में उन्होंने "से"(वह) नामक एक अयुत चरित्र की सृष्टि की है जो सब प्रकार से विचित्र है और बच्चों को विचित्र मायालोक में उपस्थित कर देता है। किसी समय उन्होंने वाल्मीकि रामायण को बच्चों को संस्कृत सिखाने के लिए संक्षेप किया था और बंगला में "कुरुपांडव"नाम से महाभारत की पूरी कथा लिखी थी। अनेक गान बच्चों के लिए लिखे। कौन बड़ा आदमी है जो बच्चों की इतनी चिंता करता है। बच्चों के लिए लिखे हुए प्राइमरों की जो कविताएँ हैं वे साधारण तौर पर बच्चों को फुसलाने का प्रयत्न करने वाले कवियों की रचनाओं से भिन्न हैं। न उसमें उपदेश की मार है न भोंडा वाक् विलास। ये कविताएँ पूरा चित्र उरेहती हैं। छंद, लय, ताल उनमें मुख्य होते हैं। बच्चे उसमें सच्ची कविता का आभास पाते हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि उन्होंने व्याकरण को भी नहीं छोड़ा और विज्ञान के अत्यन्त गहन विषय को भी सरल बनाया है। उनके "वि परिचय" से तो आप परिचित ही हैं। "मेरा बचपन" में उन्होंने अपने बचपन का बालोपयोग्य चित्र दिया है। मेरी जानी हुई दुनिया में बच्चों का ऐसा मित्र दूसरा नहीं हुआ।

रही बात ५ फीसदी की। सो वह सबसे "बड़े बच्चे"को अर्थात् बमभोलानाथ जी को समर्पित हो। आज से ६०-७० वर्ष पहले ऐसे बमभोलानाथ को प्यार से माता-पिता बनारसीदास कहा करते थे।

शेष कुशल है। दिल्ली गया पर नहीं मिल सका। बुरीं तरह थका था और आपके पदचिह्मों पर ईमानदारी से चलने के प्रयत्न में दिन भर सोता रहा क्षमा करेंगे।

आशा है, सानन्द हैं।

आपका
हजारी प्रसाद द्विवेदी

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली