The Illustrated Jataka : Other Stories of the Buddha by C.B. Varma
004 - The Story of Chaddanta Elephant / छद्दन्द हाथी की कहानी

हिमालय के घने वनों में कभी सफेद हाथियों की दो विशिष्ट प्रजातियाँ हुआ करती थीं - छद्दन्त और उपोसथ। छद्दन्त हाथियों का रंग सफेद हुआ करता था और उनके छ: दाँत होते थे। (ऐसा पालि साहित्य मे उल्लिखित है।) छद्दन्त हाथियों का राजा एक कंचन गुफा में निवास करता था। उसके मस्तक और पैर माणिक के समान लाल और चमकीले थे। उसकी दो रानियाँ थी - महासुभद्दा और चुल्लसुभद्दा।

एक दिन गजराज और उसकी रानियाँ अपने दास-दासियों के साथ एक सरोवर में जल-क्रीड़ा कर रहे थे। सरोवर के तट पर फूलों से लदा एक साल-वृक्ष भी था। गजराज ने खेल-खेल में ही साल वृक्ष की एक शाखा को अपनी सूंड से हिला डाला। संयोगवश वृक्ष के फूल और पराग महासुभद्दा को आच्छादित कर गये। किन्तु वृक्ष की सूखी टहनियाँ और फूल चुल्लसुभद्दा के ऊपर गिरे। चुल्लसुभद्दा ने इस घटना को संयोग न मान, स्वयं को अपमानित माना। नाराज चुल्लसुभद्दा ने उसी समय अपने पति और उनके निवास का त्याग कर कहीं चली गई। तत: छद्दन्तराज के अथक प्रयास के बावजूद वह कहीं ढूंढे नहीं मिली।

कालान्तर में चुल्लसुभद्दा मर कर मद्द राज्य की राजकुमारी बनी और विवाहोपरान्त वाराणसी की पटरानी। किन्तु छद्दन्तराज के प्रति उसका विषाद और रोष इतना प्रबल था कि पुनर्जन्म के बाद भी वह प्रतिशोध की आग में जलती रही। अनुकूल अवसर पर उसने राजा से छद्दन्तराज के दन्त प्राप्त करने को उकसाया। फलत: राजा ने उक्त उद्देश्य से कुशल निषादों की एक टोली बनवाई जिसका नेता सोनुत्तर को बनाया।

सात वर्ष, सात महीने और सात दिनों के पश्चात् सोनुत्तर छद्दन्तराज के निवास-स्थान पर पहुँचा। उसने वहाँ एक गड्ढा खोदा और उसे लकड़ी और पत्तों से ढ्ँक दिया। फिर वह चुपचाप पेड़ों की झुरमुट में छिप गया। छद्दन्तराज जब उस गड्ढे के करीब आया तो सोनुत्तर ने उस पर विष-बुझा बाण चलाया। बाण से घायल छद्दन्त ने जब झुरमुट में छिपे सोनुत्तर को हाथ में धनुष लिये देखा तो वह उसे मारने के लिए दौड़ा । किन्तु सोनुत्तर ने संन्यासियों का गेरुआ वस्र पहना हुआ था जिस के कारण गजराज ने निषाद को जीवन-दान दिया। अपने प्राणों की भीख पाकर सोनुत्तर का हृदय-परिवर्तन हुआ। भाव - विह्मवल सोनुत्तर ने छद्दन्त को सारी बातें बताई कि क्यों वह उसके दांतों को प्राप्त करने के उद्देश्य से वहाँ आया था। 

चूँकि छद्दुंत के मजबूत दांत सोनुत्तर नहीं काट सकता था इसलिए छद्दुंत ने मृत्यु-पूर्व स्वयं ही अपनी सूँड से अपने दांत काट कर सोनुत्तर को दे दिये।

वाराणसी लौट कर सोनुत्तर ने जब छद्दन्त के दाँत रानी को दिखलाये तो रानी छद्दन्त की मृत्यु के आघात को संभाल न सकी और तत्काल मर गयी। 

The Story of Chaddanta, Amravati

Chaddanta with other elephants

Chaddanta-Jataka, Bharhut

O nce the Bodhisatta was born as the king of Chaddanta elephants. [Chaddanta (literally having six tusks) and Uposatha were the two highest classes of elephants often referred to in the Pali sources]. The body of the elephant king was pure white with red face and feet. He lived in a golden cave (Kanchana-guha) on the bank of a lake. He had two queens, namely, Mahasubhadda and Chullasubhadda.

Once after bathing in the lake and frolicking in the forest with his queens and attendants he sportingly hit a fully blossomed sal tree. Incidentally, the dry leaves, twigs and red ants from the tree fell on Chullasubhadda but the flowers and the pollen of the tree rained on Mahasubhadda. This made Chullasubhadda feel insulted and desert her husband. Chaddanta, however, tried to look for her but failed.

In course of time, Chullasubhadda died and was reborn in a royal family of the Madda kingdom. Later, when she grew up she was married to the king of Varanasi and became his chief consort. Still, she remembered her humiliation in the kingdom of Chaddanta. So, she hatched a plot to get Chaddantas tusks cut off; and convinced the Varanasi king to obtain his tusks for her. The king in turn summoned all the hunters of the kingdom and finally assigned the task to Sonuttara.

Nonetheless, it took seven years, seven months and seven days for Sonuttara to find the Chaddantas abode. There he stealthily dug a pit and covered it with dry leaves and twigs. When the elephant passed over it he shot him with a poisoned arrow. The elephant was to charge against him but when he saw Sonuttara clad in a saffron robe of a monk he recoiled and did not harm the hunter. Affected by the victims extreme religiosity the cruel hunters heart changed and he narrated the entire story to the elephant out of sheer respect.

The Story of Chaddanta, Goli

 The Story of Chaddanta-Jataka, Sanchi

As the hunter was not strong enough to cut off the Chaddantas tusks he himself held the saw in his tusk and cut them off and handed over to the hunter.

When the chief consort of Varanasi saw the Chaddantas tusks being brought by Sonuttara she fainted and died because she could not bear the shock.  

 

Note :

Chaddanta Jataka   Jataka Pali No.514; Saddanta in Sanskrit version.

J.S.Speyer suggests an allegorical explanation of the story in Zeitschrift der Deutschen Morgenlandischen Gesellschaft Ixxv.2 305 ff.

Feer gives a careful study of the story based on the comparison on five different versions two in Pali, two in Chinese and one in Sanskrit, Journal Asiatique V. 1895.


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