वाराणसी वैभव

काशी की विभूतियाँ


  1. महर्षि अगस्त्य
  2. श्री धन्वंतरि
  3. महात्मा गौतम बुद्ध
  4. संत कबीर
  5. अघोराचार्य बाबा कानीराम
  6. वीरांगना लक्ष्मीबाई
  7. श्री पाणिनी
  8. श्री पार्श्वनाथ
  9. श्री पतञ्जलि
  10. संत रैदास
  11. स्वामी श्रीरामानन्दाचार्य
  12. श्री शंकराचार्य
  13. गोस्वामी तुलसीदास
  14. महर्षि वेदव्यास
  15. श्री वल्लभाचार्य

 

 

 

महर्षि वेदव्यास

पौराणिक-महाकाव्य युग की महान विभूति, महाभारत, अट्ठारह पुराण, श्रीमद्भागवत, ब्रह्मसूत्र, मीमांसा जैसे अद्वितीय साहित्य-दर्शन के प्रणेता वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग ३००० ई. पूर्व में हुआ था।  वेदांत दर्शन, अद्वेैतवाद के संस्थापक वेदव्यास ॠषि पराशर के पुत्र थे।  पत्नी आरुणी से उत्पन्न इनके पुत्र थे।  पत्नी आरुणी से उत्पन्न इनके पुत्र थे महान बाल योगी शुकदेव।  श्रीमद्भागवत गीता विश्व से सबसे बड़े महाकाव्य 'महाभारत' का ही अंश है।  रामनगर के किले में और व्यास नगर में वेदव्यास का मंदिर है जहाँ माघ में प्रत्येक सोमवार मेला लगता है।  गुरु पूर्णिमा का प्रसिद्ध पर्व व्यास जी की जयन्ती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।

पुराणों तथा महाभारत के रचयिता महर्षि का मन्दिःर व्यासपुरी में विद्यमान है जो काशी से पाँच मील की दूरी पर स्थित है।  महाराज काशी नरेश के रामनगर दुर्ग में भी पश्चिम भाग में व्यासेश्वर की मूर्ति विराजमान है जिसे साधारण जनता छोटा वेदव्यास के काम से जानती है।  वास्तव में वेदव्यास की यह सब से प्राचीन मूर्ति है।  व्यासजी द्वारा काशी को शाप देने के कारण विश्वेश्वर ने व्यासजी को काशी से निष्कासित कर दिया था।  तब व्यासजी लोलार्क मंदिर के आग्नेय कोण में गंगाजी के पूर्वी तट पर स्थित हुए।

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कुबेरनाथ शुक्ल-काशी वैभव पृ.१७४

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इस घटना का उल्लेख काशी खंड में इस प्रकार है -

       लोलार्कादं अग्निदिग्भागे, स्वर्घुनी पूर्वरोधसि।

       स्थितों ह्यद्य्यापि पश्चेत्स: काशीप्रसाद राजिकाम्।।

                             स्कंद पुराण काशी खंड ९६/२०१

व्यासजी ने पुराणों तथा महाभारत की रचना करने के पश्चात् ब्रह्मसूत्रों की रचना भी यहाँ की थी।  वाल्मीकि की ही तरह व्यास भी संस्कृत कवियों के लिये उपजीव्य हैं।  महाभारत में उपाख्यानों का अनुसरण कर अनेक संस्कृत कवियों ने काव्य, नाटक आदि की सृष्टि की है।  महाभारत के संबंध में स्वयं व्यासजी की ही उक्ति अधिक सटीक है - "इस ग्रंथ में जो कुछ है, वह अन्यत्र है, परंतु जो इसमें नहीं है, वह अन्यत्र कहीं भी नहीं है।'ंगा। 

यमुना के किसी द्वीप में इनका जन्म हुआ था।  व्यासजी कृष्ण द्वेैपायन कहलाये क्योंकि उनका रंग श्याम था।  वह पैदा होते ही माँ की आज्ञा से तपस्या करने चले गये थे और कह गये थे कि जब भी तुम स्मरण करोगी, मैं आ जा वे धृतराष्ट्र, पाण्डु तथा विदुर के जन्मदाता ही नहीं, अपितु विपत्ति के समय वे छाया की तरह पाण्डवों का साथ भी देते थे।  उन्होंने तीन वर्षों के अथक परिश्रम से महाभारत ग्रंथ की रचना की थी -

       त्रिभिर्वर्षे: सदोत्थायी कृष्णद्वेैपायनोमुनि:।

       महाभारतमाख्यानं कृतवादि मुदतमम्।।

                                 आदिपर्व - (५६/५२)

जब इन्होंने धर्म का ह्रास होते देखा तो इन्होंने वेद का व्यास अर्थात विभाग कर दिया और वेदव्यास कहलाये।  वेदों का विभाग कर उन्होंने अपने शिष्य सुमन्तु, जैमिनी, पैल और वैशम्पायन तथा पुत्र शुकदेव को उनका अध्ययन कराया तथा महाभारत का उपदेश दिया। आपकी इस अलौकिक प्रतिभा के कारण आपको भगवान् का अवतार माना जाता है।

संस्कृत साहित्य में वाल्मीकि के बाद व्यास ही सर्वश्रेष्ठ कवि हुए हैं।  इनके लिखे काव्य 'आर्ष काव्य' के नाम से विख्यात हैं।  व्यास जी का उद्देश्य महाभारत लिख कर युद्ध का वर्णन करना नहीं, बल्कि इस भौतिक जीवन की नि:सारता को दिखाना है।  उनका कथन है कि भले ही कोई पुरुष वेदांग तथा उपनिषदों को जान ले, लेकिन वह कभी विचक्षण नहीं हो सकता क्योंकि यह महाभारत एक ही साथ अर्थशास्र, धर्मशास्र तथा कामशास्र है।

१.       यो विध्याच्चतुरो वेदान् साङ्गोपनिषदो द्विज:।

         न चाख्यातमिदं विद्य्यानैव स स्यादिचक्षण:।।

 

२.       अर्थशास्रमिदं प्रोक्तं धर्मशास्रमिदं महत्।

         कामाशास्रमिदं प्रोक्तं व्यासेना मितु बुद्धिना।।

                                    महा. आदि अ. २: २८-८३

 

 

वाराणसी वैभव


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