केशवदास


केशवदास : राजदरबार में

केशव राज्याश्रित कवि थे। उनके पूर्वज भी राजाओं से सम्मानित होते आ रहे थे। ओरछेन्द्र महाराजा रामशाह के छोटे भाई इन्द्रजीतसिंह के द्वारा केशव को आश्रय और सम्मान मिला। राजा इन्द्रजीतसिंह के द्वारा केशव को आश्रय और सम्मान मिला। राजा इन्द्रजीतसिंह साहित्य और संगीत के मर्मज्ञ थे। केशवदास को इन्होंने ही रसिक-प्रिया की रचना की प्रेरणा दी। इससे इनकी साहित्यिक अभिरुचि का अंदाजा होता है। उनके दरबार में रायप्रवीण संगीत-नृत्य कुशला वेश्याएं भी रहती थीं।

केशव इन्द्रजीत सिंह के दीक्षा-गुरु थे और रायप्रवीण के काव्यगुरु हुआ करते थे। इन्द्रजीत सिंह के दरबार के कलात्मक वातावरण में केशव और रायप्रवीण कविता भी कहा करती थी। रायप्रवीण ने अपने काव्य-कौशल से अकबर को छकाकर अपनी प्रतिभा का परिचय करा ही साथ-साथ अपने गुरु केशवदास की प्रतिष में भी चार चाँद लगवा दिया था। इन्द्रजीत सिंह के बाद वीरसिंहदेव ओरछा के राजा बने। केशव वीरसिंहदेव के दरबार से जुट गए।

वीरसिंहदेव की प्रेरणा पाकर केशव ने विज्ञानगीता की रचना की। बीच में मन मुटाव के बाद केशव को अपना राज्याश्रय खोना पड़ गया। फिर बाद में वीरसिंहदेव ने केशव को सम्मानित करके राज्याश्रय प्रदान करके अपनी साहित्यिक रुचि का परिचय दिया। केशवदास ने वीरसिंहदेव के बारे में अपनी कृति वीरसिंहदेव रचित में काफी विस्तार से लिखा है।

केशवदास को इन्द्रजीतसिंह तथा वीरसिंहदेव के अलावा रामशाद, रतनसेन, अमरसिंह तथा चन्द्रसेन ने सम्मान देकर आश्रय प्रदान किया। इन सभी राजाओं के बारे में केशव ने अपनी कृतियों में कुछ छन्दों की रचना करके, उनको अपने लक्षण ग्रंथों में दे दिया है। रतनसेन की प्रशंसा में ही रतनबावनी की रचना की गई थी।

केशव का सम्बन्ध राणा वंश से भी मालूम पड़ता है। यदा राणा प्रताप के पुत्र राणा अमर सिंह की प्रशस्ति में केशव ने कई छन्द लिखे जो कविप्रिया में संग्रहित किया गया है।

केशव का सम्बन्ध जहांगीर और अकबर के दरबार से

वीरसिंहदेव के मित्र जहांगीर की प्रशस्ति में केशव ने जहांगीरजसचन्द्रिका लिखी। यहाँ यह कहना कठिन है कि केशव के जहांगीर आश्रयदाता थे। वीरसिंहदेव के विपत्ति के दिनों में जहांगीर ने उनकी सहायता की थी, इसीलिए केशव ने अपने आश्रयदाता के मित्र को अमर बता दिया। केशव ने रहीम की प्रशंसा कई स्थानों पर की है। अकबरी दरबार के एक और प्रतिष्ठित रत्न रोडरमल का भी केशव ने एक स्थान पर उल्लेख किया है -

रोडरमल तुव मित्र, मरे, सब ही सुख सोयी।
मोरे हित बरबीर बिता टुकु दीननि शेयो।।

केशव की कृतियों में उच्च कोटि के लोगों के अलावा सामान्य लोगों का भी उल्लेख किया गया है। सामान्य लोगों में एक उनका पड़ोसी सोनार जिसका नाम पतिराम था, उनकी रचनाओं में पतिराम का उल्लेख मिलता है। केशव एक स्थान पर पतिराम के बारे में कहते हैं कि वह अत्यन्त निगरानी रहने के बावजूद सोना चोरी कर लेता था -

तुला तोल कसवान बनि, कायथ लिखत अपार।
राख भरत पतिराम पे, सोनो हरति सुनार।।

 

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