मगध

जरग

पूनम मिश्र


१.

जानोम् कोराम् दिपिल रेम्
अङ्गिकर तद झ्र(२)हरीट्।
अम: नुतुम् भगोअन
निद सिङ्गिञ् अगुइअ

भेद् लुतुर कट तो
मूँ मोचम् बइत: ञ
मेहनतिकेनम् भगोअन
चिमिने चिमिन् दो

उम्बुलिञमे चेतोमिञ् मे
अलोमे बगेञ्
हिरञ् में कोचोगिञ् मे
अलोमे रड़ञ्

(हे भगवान्) जन्म देने के समय ही
हमको स्वीकार कर लिया।
हे भगवन् हम तुम्हारा नाम
रात-दिन लेते रहेंगे।

(हे भगवान्) तुमने आँख, कान, पैर, हाथ,
नाक और मुँह बनाया है
हे भगवन् तुमने परिश्रम किया,
कितना-कितना परिश्रम किया।

हमको अपनी छाया में रखो
(हे भगवन्) हमको छोड़ मत दो।
तुम हमारी देख भाल करो
तुम हमको मत छोड़ो।

२.

एङ्गम् रच अपुम् रच
जोजो सकम् उरुड़ु़ तन
एङ्गम् रच अपुम् रच
उलि सकम् गसरेतन

मरे मइन जोगे लेकम्
जोजो सकम् उरुड़ु़ तन
मरे मइन टप लेकम्
उलि सकम् गसरेतन

तरकोचञ् जोगेकेन
तरकोच उरुड़ु़तन
तर कोचञ् टपकेन
तर कोच गसरेतन

माँ के आँगन में, बाप के आँगन में
इमली की पत्ती गिर रही है।
माँ के आँगन में, बाप के आँगन में
आम की पत्ती झड़ रही है।

हे बेटी, झाड़ू दे दो
इमली की पत्ती को, जो गिर रही है।
हे बेटी बहार दो
आम की पत्ती को जो झड़ रही है।

एक तरफ झाड़ू दिया,
(तो) दूसरी तरफ (पत्ती) गिरकर भर गई।
एक किनारे बुहार,
(तो) दूसरे किनारे (पत्ती) भर गई।

३.

जेटे सिङ्गि तेब: लेन
जेटे दुड़ ओटङ्लेन
जर्गि द: तेब: लेन
जर्गि लोसोद परिसर लेन

ओकोएगे सीतन
जेटे दुड़ ओटङ्लेन
चिमएगे रवरतन
जर्गि लोसोद् पसिर् लेन

गतिम् गे सीतन
जेटे दुङ् ओटङ् लेन
सङ्कम् गे रवरतन
जर्गि लोसोद् पसिर् लेन

गरमी का दिन पहुँच चुका,
गरमी की धूल उड़ने लगी है।
बरसात का मौसम पहुँच गया,
बरसात का किचड़ छिटकन लगा है।

कौन हल चला रहा है,
(जिससे) गरमी की धूल उड़ने लगी है।
कौन पट्टा मरा रहा है,
(जिससे) बरसात की कीचड़ उछलने लगा है।

तुम्हारा साथी ही हल चला रहा है,
(जिससे) गरमी की धूल उड़ रही है।
तुम्हारा संगी ही पट्टा मार रहा है,
(जिससे) बरसात का कीचड़ उछलने लगा है।

४.

एकसिको पिड़ि रे
सेङ्गले द: दोए: गमलेद
तेरसिको बदि रे
बण्ड जैट: रम्पिलेद

इच: बा कुड़िकिङ्
लोओ चोटे: लेन
मुरुद बा कोड़किङ्
बल चोटे: लेन

एकासी मैदान में
आग की वर्षा हुई थी।
तेरासी घाटी में
धूप बरसी थी।

इचा-फूल-सी दो युवतियाँ
उस आग में झुलसते-झुलसते बची।
पलाश-फूल से दो युवक
उस ज्वाला में जलते-जलते बचे।

५.

मुन्दम् दुदुल सेकेर
तेरे मुन्दम् दुलञ्मेजगतिञरे
नकि: बङ् दुलिअ
बा नकि बइ अञ्मेन सङ्गञरे

दुलदौरेञ् दुलमेअ
कांसा पीतल रोचोद्जन गतिञरे
बइदोरेम् बइअमेअ
ननचरि: हुल: जन सङ्गञरे

क ओमे सेणमे
कांसा पीतल रोचोद्जनम् मेनेगरिञरे
क चेदे मोनेगे
ननचरि: हुल: जनम्मेने सङ्गञरे

हे अंगूठी बनानेवाले सकेरा,
मुझे हाथ की अंगूठी बना दो।
हे कंघी बनानेवाले दुलिया,
मुझे फूलोवाली कंघी बनाकर दो।

(अंगूठी) मैं बना देता,
(किन्तु) कांसा-पीतल चटक गया।
(कंघी) मैं बना देता,
(किन्तु) पतली तीली टूट गई।

देने की इच्छा नहीं है
(इसीलिए) काँसा-पीतल चटकने की बात कहते हो।
देने का मन नहीं है,
(इसीलिए) पतली तीली टूटने की बात कहते हो।

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