मालवा

मालवा में बौद्ध धर्म का विकास

अमितेश कुमार


बुद्ध के जीवनकाल से ही अवन्ति बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण केन्द्र बन चुका था। इस क्षेत्र में कई ऐसे महापुरुष हुए, जिन्होंने उस क्षेत्र में बौद्ध धर्म के प्रचार- प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रद्योत- मौर्य काल

इस काल में बौद्ध धर्म के प्रचार कार्य में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका महाकच्छायन की थी। उनका जन्म उज्जयिनी में हुआ था। बुद्ध से मिलकर वे बहुत प्रभावित हुए थे। फिर तो उन्होंने बुद्ध के उपदेशों को घर- घर तक प्रभावशाली ढ़ग से पहुँचाया। उनके कहने पर समकालीन राजा प्रद्योत ने भी बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती गई। उनके सत्प्रयासों से पूरे क्षेत्र में बौद्ध धर्म एक प्रभावशाली धर्म के रुप में उभरा। चूँकि प्रचार व उपदेश का माध्यम वहाँ की स्थानीय भाषा थी, अतः इसकी पहुँच व्यापक थी।

चूँकि बुद्ध के कुछ शिष्य अवन्ति से थे, अतः यह संभव है कि अशोक से पहले भी उज्जैन व साँची में बौद्ध धर्म से जुड़े इमारत बन चुके हैं। महावंश में चैत्यागिरि नाम के एक विहार का उल्लेख मिलता है, जिसकी पहचान साँची से की जाती है, जहाँ अशोक ने भी स्तुप व स्तंभ बनवाया था। अशोक से पहले बना यह चैत्य वर्त्तमान स्तुप नहीं हो सकता, क्योंकि स्तुप- पूजन की परंपरा अशोक के समय से ही शुरु होती है। राजकुमारी देवी ने चैत्यगिरि में एक विहार का निर्माण करवाया था, जिसका पुरातात्विक प्रमाण आज भी मिलता है।

कहा जाता है कि विदिशा की निवासी देवी, जो बाद में अशोक की पत्नी बनी, पहले से ही बौद्ध थी, लेकिन अशोक ने मोगालिपुत्ता तिस्स व अन्य भिक्षुओं के प्रभाव से, परिस्थितिवश, अपना धर्म परिवर्त्तन किया। अशोक के आश्रय में बौद्ध धर्म का बहुत प्रसार हुआ। उसके द्वारा ईंट- निर्मित साँची- स्तुप का बाद में कई बार विस्तार हुआ।

उज्जैन बौद्ध धर्म का केंद्र बना रहा। यहाँ एक विशाल तथा दो घोड़े स्तुप मिले हैं। ईटों के आकार से पता चलता है कि यह मौर्यकालीन है। संभवतः इसका निर्माण भी अशोक ने ही करवाया था। विदिशा मथुरा मार्ग में स्थित तुमैन (तुम्बवन) ये भी अशोक ने कई स्तुप बनवाए थे। इसके अलावा महेश्वर (महिष्मती) से भी बौद्ध इमारतों के प्रमाण मिले हैं। यहाँ मिले मृदभाण्ड से स्पष्ट हो जाता है कि ये किसी- न- किसी रुप से बौद्ध- धर्म से संबद्ध थे।

शुंग- सातवाहन- शक काल

अशोक की मृत्यु के बाद पुष्यमित्र शुंग के शासन काल में बौद्ध धर्म के विकास में कई अड़चनें आयी। पुष्यमित्र, जो ब्राह्मण धर्म का कट्टर अनुगामी था। कहा जाता है कि उसने कई बौद्ध- निवासों को नष्ट करवा दिया तथा साकल (सियाल कोट, पंजाब) के सैन्य अभियान के दौरान कई बौद्ध- भिक्षुओं की हत्या करवाई।

पुष्यमित्र शुंग के उत्तराधिकारी ने अशोक द्वारा ईंट- निर्मित साँची के स्तुप को ऊपर से प्रस्तर- निर्मित एक भित्ति से ढ़का था। साँची का दूसरा तथा तीसरा स्तुप भी 
शुंगकाल में ही निर्मित है। भरहुत के स्तुप के अभिलेखों से पता चलता है कि विदिशा के राजा रेवतीमित्र व उनकी रानियों ने भरहुत के स्तुप के निर्माण में सहयोग दिया था।

कण्व तथा सातवाहन काल में इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म अपने उत्कर्ष पर था। इसी काल में साँची के मुख्य स्तुप के चारों तरफ तथा तीसरे स्तुप के एक तरफ प्रसिद्ध द्वार बनाये गये। यह निर्माण राजा शतकर्णी के शासन में हुआ।

बौद्ध धर्म का अस्तित्व पश्चिमी क्षत्रपों के काल में भी बना रहा। उज्जैन में मिला चाहरदीवारी का हिस्सा, जो संभवतः बौद्ध स्तुप का ही एक हिस्सा था, इसी काल में बना माना जाता है।

इस काल में साँची बौद्ध तीर्थ का केंद्र बन गया। मालवा व मालवा के बाहर से भी लोग यहाँ आने लगे। इनका उल्लेख यहाँ के अभिलेखों में मिलता है। 

अशोक काल के बाद दूसरी सदी ई. पू. के अंत में बौद्ध धर्म की हैमवत शाखा को प्रसिद्धि मिली। यह धर्म के विभिन्न स्रोतों से प्रभावित था। इसके प्रचार में गोतीपुत की महत्वपूर्ण भूमिका थी। उन्हें "काकनाव प्रभासन' (काकनाव का प्रकाश) की उपाधि से सम्मानित किया गया था। बुद्ध के शिष्य महाभोगलान व सारिपुत्र के भ साँची व सतधारा के स्तुपों में डाला गया था।


साँची के बौद्ध थेरवादी थे, परंतु प्रथम सदी ई. पू. में बौद्ध धर्म ने एक नया मोड़ लिया। अभिलेखों से पता चलता है कि अन- आचार्याकुल (अन्याचार्या कुल) अस्तित्व में आ गया।

कुषाण काल की बुद्ध व बौधिसत्वों की मूर्तियों से पता चलता है कि साँची में बाहरी प्रभाव का आना शुरु हो गया था। साँची में मिला वीटिम अभिलेखों से स्पष्ट होता है कि मालवा की साधारण जनता में इसका प्रसार होने लगा था। स्तुपों के निर्माण में सभी वर्ग व व्यवसाय के लोगों ने सहयोग दिया था।

बौद्ध संतों को कुछ विशेष उपाधियाँ देने का प्रचलन शुरु हुआ, जैसे अया (उदार स्वामी), थेरा (
venerable ), भदत (सबसे सऋदय), मानक (ग्रंथों का पठन करने वाला), धमकाथिका (नियम का उपदेशक), सधिविहारी (साथ में वास करने वाला भिक्षु), विनायक (शिक्षक), सुतातिक व सुतातिकिनी (जो सुत्तो की अच्छी जानकारी रखता है), पंचनेकयिका (पाँच निकायों व सपुरिसा की जानकारी रखने वाला संत)।

 

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