Panchtantra


पंचतंत्र

आदत से लाचार



तुगलकनगर में एक राजा राज करता था। उसके भवन के शयनकक्ष में एक जूँ रहती थी। वह नियमित रुप से राजा का रक्तपान कर सुखपूर्वक जीवन- यापन करती थी।

एक दिन कहीं से एक खटमल राजा के शयनकक्ष में आ गया। खटमल को देखकर जूँ निराश हो गयी। उसने खटमल से कहा-- मैं यहाँ कई बरसों से रह रही हूँ। अतः राजा के इस शयनकक्ष पर सिर्फ मेरा अधिकार है। मैं तुम्हें यहाँ रहने की अनुमति नहीं दे सकती। तुम तुरंत चले जाओ।


खटमल ने जूँ को समझाते हुए कहा-- घर आये अतिथि की इस प्रकार उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। मेरा तो यहाँ आने का सिर्फ एक ही प्रयोजन है। वह प्रयोजन पूरा होते ही मैं यहाँ से चला जाऊँगा। बस मुझे दो- तीन दिन रहने की अनुमति दे दो। जूँ ने तुरंत उसके आने का प्रयोजन पूछा। खटमल ने जूँ को समझाते हुए कहा कि मैंने अनेक प्रकार के मनुष्यों का रक्त का पान किया है। सभी के रक्त कड़वे, खट्टे तथा कसैले थे। आज तक मैंने अच्छे खान-दान वाले राजा के रक्त का सेवन नहीं किया है। मेरी वर्षों से मनोकामना है कि मैं भी कभी इस अवसर का लाभ उठा पाऊँ। मुझे सिर्फ दो- तीन दिन यहाँ अपने साथ रहने की अनुमति दे दो।

इस प्रकार खटमल ने जूँ को किसी तरह अपने विश्वास में ले लिया।

जूँ ने शर्त रखी कि उसे राजा के निद्रामग्न होने तक धैर्य धारण करना होगा। खटमल ने उससे सहमति जताते हुए कहा, जब तक तुम राजा का खून चूस लोगी, तब तक मैं धैर्य धारण किए हुए तुम्हारी प्रतीक्षा कर्रूँगा।

रात में राजा अपने शयनकक्ष में आकर लेता तो खटमल अपनी जिह्मवा पर काबू नहीं रख पाया। उससे धैर्य खत्म होता गया तथा राजा के जागते में ही उसका रक्त चूसने लगा। शरीर में खटमल की चुभन से बेचैन राजा चिल्लाकर उठ खड़ा हुआ। महाराज की आवाज को सुनकर बाहर खड़े सेवक शयनकक्ष में आ पहुँचे तथा बिस्तर व ओढ़नों को बारीकी से छान-बीन करने लगे। खटमल को भागने का मौका मिल गया, लेकिन नौकरों की न छिपकर बैठे जूँ पर पड़ गयी। उन्होंने जूँ को मार डाला।

कथा सार

किसी भी प्राणी का स्वभाव बदलना बहुत मुश्किल काम है। किसी को भी शरण देने के पहले अच्छी तरह सोच- विचार कर लेना चाहिए।

 

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Content prepared by M. Rehman

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