प्रेमचन्द : जीवन परिचय


शोषण और प्रेमचन्द

प्रेमचन्द और शोषण का बहुत पुराना रिश्ता माना जा सकता है। क्योंकि बचपन से ही शोषण के शिकार रहे प्रेमचन्द इससे अच्दी तरह वाकिफ हो गए थे। समाज में सदा वर्गवाद व्याप्त रहा है। समाज में रहने वाले हर व्यक्ति को किसी न किसी वर्ग से जुड़ना ही होगा।

प्रेमचन्द ने वर्गवाद के खिलाफ लिखने के लिए ही सरकारी पद से त्यागपत्र दे दिया। वह इससे सम्बन्धित बातों को उन्मुख होकर लिखना चाहते थे। उनके मुताबिक वर्तमान युग न तो धर्म का है और न ही मोक्ष का। अर्थ ही इसका प्राण बनता जा रहा है। आवश्यकता के अनुसार अर्थोपार्जन सबके लिए अनिवार्य होता जा रहा है। इसके बिना जिन्दा रहना सर्वथा असंभव है। 

वह कहते हैं कि समाज में जिन्दा रहने में जितनी कठिनाइयों का सामना लोग करेंगे उतना ही वहाँ गुनाह होगा। अगर समाज में लोग खुशहाल होंगे तो समाज में अच्छाई ज्यादा होगी और समाज में गुनाह नहीं के बराबर होगा। प्रेमचन्द ने शोषितवर्ग के लोगों को उठाने का हर संभव प्रयास किया। उन्होंने आवाज लगाई "ए लोगों जब तुम्हें संसार में रहना है तो जिन्दों की तरह रहो, मुर्दों की तरह जिन्दा रहने से क्या फायदा।"

प्रेमचन्द ने अपनी कहानियों में शोषक - समाज के विभिन्न वर्गों की करतूतों व हथकण्डों का पर्दाफाश किया है। ये निम्नलिखित हैं: -

- ग्राम एवं नगर के महाजन
- सामंतवाद के प्रतिनिधि - जमींदार
- पूँजीवाद के प्रतिनिधि - उद्योगपति
- सरकारी अर्धसरकारी अफसर

प्रेमचन्द ने अपनी कहानियाँ नशा, पूस की रात (मानसरोवर-१), पछतावा (मानसरोवर-६), जेल, (मानसरोवर-७) बेटी का धन, बलिदान, विध्वंस तथा उपदेश (मानसरोवर-८) 'नशा' कहानी में जमींदार को हिंसक पशु और खून चूसने वाली जोंक और वृक्ष की चोटी पर फूलने वाला बुंआ कहा है और यह कहा है कि ईश्वर ने असामियों को इनका काम करने और सेवा करने के लिए ही पैदा किया है। 'पूस की रात' का 'हलकू' उस किसान का प्रतीक है जो सबको खिलाता और पहनाता है मगर स्वयं रात में जाड़े में नंगे ठिठुरने पर मजबूर है। मजदूरी करके हलकू अपनी माल गुजारी भरता है। इस प्रकार के बहुत से किसान हैं जो मजदूरी करके मालगुजारी भरा करते हैं। उनकी हालत पर कोई तरस नहीं खाता है। हर कोई अपने-अपने वर्ग के लिए मरता है।

प्रेमचन्द के कहानी साहित्य में राष्ट्रीयता का स्वर सबसे ज्यादा मुखर है। उस युग के स्वतंत्रता आंदोलन ने ही प्रेमचन्द जैसे संवेदनशील कलाकारों में राष्ट्रीयता जैसा प्रबल भाव डाला था। प्रेमचन्द गाँधी जी से बहुत प्रभावित हुए थे और राष्ट्रीयता के क्षेत्र में उन्हें अपना आदर्श मानकर चले थे। माँ, अनमन, दालान (मानसरोवर-१) कुत्सा, डामुल का कैदी (मानसरोवर-२) माता का हृदय, धिक्कार, लैला (मानसरोवर-३) सती (मानसरोवर-५) जेल, पत्नी से पति, शराब की दुकान जलूस, होली का उपहार कफन, समर यात्रा सुहाग की साड़ी (मानसरोवर-७) तथा आहुति इत्यादि वे कहानियाँ हैं जिनमें राष्ट्रीयता के विष्य को प्रमुखता से डाला गया है। 

इन कहानियों ने प्रेमचन्द ने एक इतिहासकार की भांति राष्ट्रीय आंदोलन के चित्र खींचे हैं। गाँधी जी से प्रेमचन्द काफी प्रभावित थे। उन्होंने विश्वास जैसी कहानी के माध्यम से गाँधी जी के आदर्शों को लोगों के सामने प्रस्तुत किया।

प्रेमचन्द के मानस में भारतीय संस्कार अपेक्षाकृत अधिक प्रबल थे। विदेशी सभ्यता, संस्कृति आचरण एवं शिक्षा के प्रति उनकी आस्था दुर्बल थी। प्रेमचन्द को अपने देश और यहाँ की चीजों से अथाह प्रेम था।

 

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