राजस्थान

मेवाड़ : भौगोलिक पृष्ठभूमि

अमितेश कुमार


मेवाड़ की भूमि पर प्रकृति की विशेष कृपा रही है। इसकी भौगोलिक स्थिति प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रुप से यहाँ के राणाओं के लिए मददगार ही साबित होती रही है।

राज्य की सीमाएँ समय-समय पर बदलती रही हैं। जब मेवाड़ अपने उन्नति की पराकाष्ठा पर था, तब इसका विस्तार उत्तर-पूर्व में बयाना तक, दक्षिण में रेवाकण्ठा तथा महिकण्ठा तक, पश्चिम में पालनपुर तक तथा दक्षिण-पूर्व में मालवा तक था। समय के साथ-साथ सीमाओं में परिवर्तन होते रहे थे। मतलबी लोगों ने विभिन्न बहानों से राज्य के छोटे-छोटे क्षेत्रों को दबा लिया। किसी ने फौज देने के बहाने से, किसी ने गिरवी के तौर पर, किसी ने नौकरी के एवज में तो किसी ने आपसी फूट का मौका देखकर।

मेवाड़, राजपूताना के दक्षिण भाग में स्थित है। यह उत्तर अक्षांश २५ ५८' से ४९ १२' तक तथा पूर्व देशांतर ४५ ५१' ३०' से ७३ ७' तक फैला हुआ है। लंबाई उत्तर से दक्षिण तक १४७.६ मील तथा चौड़ाई पूर्व से पश्चिम तक १६३.०४ मील था। कुल विस्तार १२,६९१ वर्ग मील में था। इसके उत्तर में अजमेर- मेरवाड़ा प्रदेश तथा शाहपुरा राज्य थे, पश्चिम में सिरोही, दक्षिण-पश्चिम में इडर, दक्षिण में डुंगरपुर, बांसवाड़ा का कुछ हिस्सा तथा प्रतापगढ़ के राज्य थे, पूर्व में नीमच व निंबाहेड़ा के जिले तथा बूंदी और कोटा राज्य थे।

कोटा सिर्फ भैंसरोड़ के पास इस राज्य के एक निकले हुए जमीन के टुकड़े से स्पर्श करता है, जिसके दक्षिण में होल्कर का जिला रामपुरा है। अग्निकोण में कई रियासतों के हिस्से हैं और टौंक, ग्वालियर व इंदौर की अमल्दारी के छोटे-छोटे टुकड़े चारों तरफ मेवाड़ की भूमि से घिरे हुए हैं। सिंधिया के कुछ गाँव जो एक-दूसरे से दूरी पर हैं तथा मिलकर गंगापुर परगना बनाते हैं, मेवाड़ के बीचों-बीच पड़ते हैं।

मेवाड़ प्रदेश अपनी भौगोलिक विशेषताओं के लिए भी विख्यात रहा है। रियासत के उत्तर व पूर्वी हिस्से में ऊँची-नीची जमीन बहुत दूर तक फैली हुई है। इस हरे-भरे उपजाऊ पठारी क्षेत्र को उत्तरमाल कहते हैं। ईशान कोण पर जमीन कुछ ढ़लाऊ है। बनास तथा उसकी सहायक नदियाँ अरावली के पहाड़ से निकलकर पहले चंबल तथा अंत में यमुना तथा गंगा के साथ मिल जाती है। पहाड़ियाँ अलग-अलग व समुहों दोनों में है। छोटे ऊँचाई की पहाड़ियाँ तो समस्त रियासत में फैली है। उदयपुर नगर समुद्र-तल से १९५७ फीट तथा देवली स्थान १९२२ फीट ऊँचा है।

मेवाड़ का मध्य भाग मैदान है, जहाँ अरावली पर्वत से निकलने वाली नदियों के जल सिंचित हरे-भरे खेत दृष्टिगत होते हैं। अरावली पर्वत की ऊँचाई अजमेर-मेरवाड़ा की तरफ समुद्र की सतह से २३८३ फुट है। इसकी चौड़ाई कुछ कम है, लेकिन दक्षिण-पश्चिम की तरफ इसकी ऊँचाई बढ़ती जाती है। यह ऊँचाई कुंभलगढ़ पर ३५६८ फुट है तथा जर्गा पर इसकी सर्वोच्च चोटी समुद्र की सतह से ४३१५ फुट ऊँची है। इन पर्वतीय प्रदेश में कई तंग घाटियाँ भी हैं, जो यातायात की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी है। इन घाटियों में सर्वाधिक घाटी जीलवाड़े के पास है, जो जीलवाड़ा की नाल व पागल्या नाल के नाम से प्रसिद्ध है। इसकी लंबाई लगभग ४ मील है। उत्तर-पूर्व हिस्से से भिन्न, दक्षिण और पश्चिम का हिस्सा चट्टानों, पहाड़ियों व घने जंगलों से ढ़का हुआ है।

दक्षिण की तरफ पहाड़ियों की ऊँचाई बढ़ती गई है, वहीं घाटियाँ नीची होती गई है। ऊपरी हिस्से

की अपेक्षा जंगल अधिक सघन है, लेकिन इसके ऊँचे-नीचे हिस्से को पार करने के बाद खुली हुई भूमि है, जिसमें बहुत से गाँव बने थे तथा खेती-बाड़ी होती थी। रियासत के दक्षिण का यह जंगली भाग छप्पन के नाम से जाना जाता है।

मेवाड़ के पश्चिम की ओर की समस्त पहाड़ी दूरी दक्षिण में डूंगरपुर की सीमा से उत्तर में सिरोही व मारवाड़ की सीमा तक मगरा कहलाती थी। इस हिस्से का बहाव दक्षिण की ओर है, जिसमें खंभात की खाड़ी में गिरने वाली नदी के मुख्य सोतें है।

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