राजस्थान

मेवाड़ में सिंचाई

अमितेश कुमार


पहले सिंचाई की कोई सुनियोजित व्यवस्था नहीं थी। सतह के बीच की जमीन कठोर होने के कारण कुआँ बनाने का कार्य प्रायः बड़ा परिश्रम वाला व खर्चीला रहा है। अति गहरे कुएं जिन्हें अखाड़ा कहते हैं। सीमित जल अपव्यय से ही सूख जाया करते है। इससे बहुत ही सीमित क्षेत्र में सिचाई का कार्य संभव हो पाता है। नदियों की, जिसमें अधिकांश बरसाती है, सिचाई में मुख्य भुमिका रही है। नदियों के दोनों तरफ की

जमीन में पानी बहुत दूर तक चला जाता है, जिससे सतह के पास ही पानी प्रचुरता में मिल जाता है। इन स्थानों को सेजा कहते हैं। चूंकि ऐसे स्थानों पर पानी कम ऊँचाई पर मिल जाते है, अतः इसे बनाने में भी कम व्यय लगता है। सेजा कुओं की औसत गहराई २५-३० फीट होती है, वहीं अखारे की गहराई ४५-५० फीट तक की होती है।

मेवाड़ के पूर्वी तथा उत्तरी हिस्से में चरस और दक्षिण तथा पश्चिम हिस्से में रहट का अधिक इस्तेमाल है। फिर भी ज्यादातर मेवाड़ी किसान शुरु से ही बरसाती नदियों पर ज्यादा आश्रित रहे हैं।

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