राजस्थान

मेवाड़ी जीवन की सामाजिक समस्याएँ

सती प्रथा

अमितेश कुमार


मेवाड़ में सती प्रथा के प्रचलन की शुरुआत के बारे में तो कोई पर्याप्त प्रमाण नहीं है, किंतु दीर्घकाल से चली आने के कारण यह एक अत्यन्त ही पवित्र धार्मिक कृत्य समझा जाने लगा था तथा पूरे राजस्थानी संस्कृति का एक अभिन्न अंग बन चुका था। मेवाड़ तो सती प्रथा का गढ़ माना जाता था। कुछ विद्वान तो इसे राजपूत जाति के आचरणों का अंग मानते हुए एक जातिगत प्रथा के रुप में मान्यता दी है, लेकिन अन्य जातियों में भी सती होने के कई प्रमाण मिलते हैं। दूसरी ओर यह बात ध्यानव्य है कि मेवाड़ में ऐसा एक भी

उदाहरण नहीं मिलता जब किसी महाराणा की मृत्यु पर उनकी समस्त जीवित पत्नियाँ व उप-पत्नियाँ सती हुई हों।

ब्रिटिश सरकार ने सती प्रथा क कुकृत्य को समाप्त करने के अनेक राजनीतिक तथा प्रशासनिक प्रयास किये। गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक के समय पहली बार इसे सरकारी तौर पर गैर-कानूनी घोषित किया गया था तथा समकालीन महाराणा जवानसिंह को इस अमानवीय प्रथा को समाप्त करने का परामर्श दिया गया था। लेकिन यह प्रथा समाज में पूरी तरह हावी हो चुका था। खुद महाराणा भीमसिंह व जवानसिंह की मृत्यु पर उनकी रानियों व पासवानें सती हो गयी थी। पॉलिटिकल एजेन्ट कर्नल राबिन्सन ने महाराणा सरदार सिंह पर इस प्रथा को बन्द करने हेतु दबाव डाला। यद्यपि महाराणा पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा, तथापि यह प्रथा अब कुछ सीमित हो गई। बाद में महाराणा स्वरुपसिंह को इस प्रथा के पूर्णतः बन्द करने हेतु आदेश जारी करने को कहा गया। लेकिन खुद महाराणा अपने आप को परम्परागत संस्कृति का पोषण मानते थे तथा इसे बन्द करने के पक्ष में नहीं थे।

१८४६ ई. में ब्रिटिश सरकार ने कुछ रियायत बरतते हुए मेवाड़ के वार्षिक खिराज में इस उम्मीद के साथ दो लाख रुपयों की कमी कर दी कि इससे सती प्रथा को बन्द करने में मदद मिलेगी। इसके बावजूद भी महाराणा ने सती प्रथा बन्द करने के कोई आदेश जारी नहीं किये। सती प्रथा की समाप्ति का पक्ष लेते हुए ब्रिटिश सरकार ने कई पत्र व्यवहार भी किये। तत्पश्चात् एन. जी. जी. की महाराणा से शिष्टाचारी मुलाकात भी बन्द करा दी गई। तब कहीं जाकर महाराणा ने अगस्त १८६० ई. में सती प्रथा को अवैध घोषित कर दिया तथा इसके विरुद्ध दण्ड का प्रावधान किया गया।

कानूनी रुप से अवैध घोषित हो जाने के बावजूद भी सती प्रथा की छिट पुट घटनाओं को रोका नहीं जा सका। यह बात और थी कि इसे प्रोत्साहन देने वालों के लिए दण्ड की व्यवस्था थी। घोषणा पत्र में यह भी कहा गया कि किसी गाँव या जागी में सती की घटना होने पर गाँव के पटेल तथा जागीरदारों पर भी जुर्माना किया जाएगा। इस प्रकार शनै:-शनै: यह प्रथा राज्याश्रय से पूरी तरह वंचित हो गया।

 

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