राजस्थान

जैसलमेर की कशीदाकारी

प्रेम कुमार


जैसलमेर जिला राजस्थान में बिल्कुल पश्चिम में स्थित है। जिले का लगभग सम्पूर्ण क्षेत्र थार मरुस्थल का हिस्सा है। राजस्थान के इस सीमांत जिले में दूर-दराज गाँवों में ग्रमीण महिलाओं द्वारा कपड़े पर कशीदाकारी का कार्य बड़ी बारीकी से किया जाता है। बारीक सूई से एक-एक टांका निकालकर विभिन्न रंगों के धागों एवं जरी से किया जाने वाला यह कशीदाकारी कार्य पुश्तैनी है। यह कशीदाकारी जीविकोपार्जन के लिए ही नहीं, वरन् स्वयं के पहनावे को आर्कषक बनाने तथा सौंदर्य में वृद्धि के लिए भी आवश्यक है, पीढ़ी-दर-पीढ़ी महिलाएँ यह कार्य करती आई हैं। यह कार्य ग्रामीणांचलों की महिलाओं की विशेष अभिरुचि का प्रतीक है जिसके लिए वे पारिवारिक कार्यों से अधिकतम समय निकालती हैं।

जैसलमेर की कशीदाकारी महिलाओं द्वारा अपने सांस्कृतिक धरोहर को बनाए रखते हुए जीवन-यापन का माध्यम भी है। यह कार्य सामान्यतः वस्र बेचने के उद्देश्य से नहीं किया जाता होगा, परन्तु अब पर्यटन के विकास एवं विस्तार के कारण इसकी माँग काफी बढ़ गई है। ऐसे कशीदाकारी वस्रों की माँग विदेशों में खासकर बढ़ी है। इससे राजस्थानी संस्कृति विदेशों में घर करती जा रही है।

कशीदाकारी के लिए राली में विभिन्न रंगों के वस्रों के छोटे-छोटे टुकड़ं काट लिए जाते हैं। इन टुकड़ों को सूई से जोड़ा जाता है। चौकोर टुकड़ों को इस प्रकार काटा जाता है कि यह स्वतः ही डिजाइन बनती जाती है। बाद में बारीकी से सूई से सिलाई की जाती है। दूसरा चौखाना त्रिकोण कपड़े को जोड़-जोड़ कर तैयार किया जाता है। इसी क्रम में राली की चारों ओर की टुकडियों को जोड़कर किनारी बनाई जाती है।

बिछाने की वस्तु को लोक भाषा में राली कहते हैं। इसमें कशीदाकारी का काम बारीकी से किया जा सकता है। तकियों के कवर में कांच के टुकड़ों का जमाव बड़ी सूझबूझ और बारीकी से किया जाता है।

कंचुली राजस्थानी महिलाओं का पुराना, प्रचलित एवं विशेष पहनावा है। इसका कशीदा पूर्णतः पीली एवं सफेद और उत्तम भांति की जरी से किया जाता है। कंचुली के कशीदे के बीच-बीच में काँच के टुकड़े जड़े जाते हैं। कंचुली या कांचली लोक भाषा का शब्द है जिसे शहरों में या सामान्यतः चोली के रुप में जाना जाता है। यहाँ के वस्रों में नारी सौंदर्य की सुरक्षा-कसावट के लिए कांचुली को आवश्यक माना जाता है।

कशीदाकारी के कपड़े के बटुए को खलीची के नाम से जाना जाता है। बटुए के दोनों ओर बारीकी से किया गया जरी का कार्य बडा मनोहारी लगता है। इसमें भी टुकड़ों का जुड़ाव होता है। ऐसी खलीचियां भी होती है जिनपर पीली एवं सफेद जरी का कशीदा होता है। ये कशीदा किए गए पर्श या बटुए काफी सुंदर प्रतीत होते हैं।

 

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