राजस्थान

चित्रकला संबद्ध स्थानीय शब्दयुक्त योजनाएँ

अमितेश कुमार


चित्रांकन के कई तकनीकी आधार पीढ़ी- दर- पीढ़ी प्रचलित रहे, जिन्हें यहाँ के चित्रकारों ने स्थानीय शब्दावलियों में अपने अनुभव द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाया। इन शब्दावलियों ने चित्र की चित्रोतम विशेषताओं से लेकर चित्र की भावात्मक अभिव्यक्ति तक के सभी तथ्यपूर्ण विचारों एवं गुणों को बांधा है। परंपरागत चित्र- शैलियों में चित्रण कार्य स्थानीय शब्दावलियों, मुहावरों, उक्तियों, श्लोकों एवं दोहों से रुप में मिलते है। इनमें चित्रण अभिप्रायों एवं चित्रण पद्धतियों का विश्लेषण है। चित्रकारों की कृतियों की आलोचना या समालोचना के समय ये शब्दावलियाँ मूल कसौटी रही है, इन शब्दयुक्त योजनाओं के दो आधार हैं-

१. शास्रोक्त उक्तियाँ एवं श्लोकों, जो प्राचीन ग्रंथों से प्राप्त है।

२. मौलिक मुहावरे युक्त योजनाएँ, जो अनुभव से विकसित हुए हैं।

 

ऐतिहासिक तथ्यों एवं स्थानीय अनुभवों में इस प्रकार की उक्तियाँ अब तक परंपरागत चित्रकारों के घराने में देखी जाती है। उदाहरणस्वरुप कुछ का उल्लेख इस प्रकार है-

हाथ, हाथी और घोड़ा और थोड़ा- थोड़ा

यह उक्ति, मेवाड़ के सीखने वाले छात्रों हेतु प्रयुक्त रही है, जिसमें मूल सिद्धांतों का अध्ययन छिपा हुआ है। यहाँ हाथ से केवल हाथ की आकृति के अभ्यास का संबंध नहीं, अपितु उनमें जो सरल रेखाओं के छोटे एवं बड़ें घुमाव हैं। उनका सुक्ष्म दृष्टि से निरीक्षण एवं अभ्यास होता है। हाथी के अंकन में अप्रत्यक्ष रुप से बड़ी घुमावदार , सुदृढ़ एवं सशक्त रेखाओं का अंकन किये जाने की क्षमता एवं हाथी के अंग- प्रत्यंगों से अनुपात एवं संतुलन का ध्यान रखते हुए चित्रण कार्य करने की पद्धति, चित्रकार में धैर्य व दक्षता को प्रकट करता है। घोड़ा, प्रत्येक चित्रकार के अनुपातिक अंकन एवं अभ्यास की दक्षता परखने का मापदण्ड है। प्रवाह पूर्ण रेखाओं का अभ्यास एक सफल चित्रकार के लिए अति आवश्यक है। इसके अतिरिक्त उसे सभी चित्रण इकाइयों, उनके अभिप्रायों व प्रतीकों को अंकन करने वाली सामग्री की जानकारी होनी चाहिए।

एक दूसरी उक्ति का सूत्र भी ऐसी ही सैद्धांतिक प्रक्रिया पर आधारित है।

हाथी, हाथ, ऊँट तथा घोड़ा

हाथी से विशालता का बोध, हाथ से प्रमाण व नाप- तोल का ज्ञान, ऊँट से छोटी व बड़े सभी घुमानों का अभ्यास एवं घोड़े से गतिपूर्ण अंकन प्रक्रिया आदि समझने पर ही व्यक्ति को चित्रण कार्य के उपयुक्त माना जा सकता है।

विषय- वस्तु की बनावट व अनुपात मात्र के आधार पर रुप- भेद एवं भावों में परिवर्तन के सिद्धांत का प्रत्येक चित्रकार ध्यान रखता है।

एक अन्य उक्ति इस प्रकार है-

""पग बड़ों कपूत रो, सर बड़ों सपूत रो।''

चित्रकारों से मानव आकृति एवं अंग-प्रत्यंगों के सुक्ष्म ज्ञान तथा उसके अभ्यास की अपेक्षा की जाती है। इसके अनुसार अंकन न करने पर अर्थ में भारी परिवर्तन आ सकता है। उदाहरण के लिए अमानुषी- राक्षसी (कपूत) गुणों का अंकन करते समय पाँव की आकृति बड़ी बनाई जाती है, वहीं महान व्यक्ति का सिर बड़ा बनाया जाता है।

 

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