राजस्थान

नाथद्वारा में साहित्य का विकास

श्रीनाथद्वारा के कविर्मनीषी

अमितेश कुमार


यह तो सर्वविदित है कि ब्रज प्रदेश से ही ब्रजचन्द श्रीनाथ जी का इस मेद पाट धाम में पदापंण हुआ अतः साथ में अपने वाले आचार्य महानुभाव एवं सेवक वर्ग की मातृभाषा ब्रज ही रही। श्रीनाथजी के कीर्तन में गाये जाने वाले पदों की भाषा भी ब्रज ही है जिन्हें अष्टेछाप के कवियों ने अपनी प्रज्ञा एवं भक्ति के पारस्परिक सहयोग से संवारा है। इसलिए नाथद्वारा मे सर्वप्रथम ब्रजभाषा का ही प्रादुर्भाव माना जाता है। श्रीनाथजी संबंधी सारा साहित्य ब्रजभाषा की धरोहर होते हुए भी हिन्दी के भंडार की अमूल्य निधि है। किन्तु मेवाड़ में आने से स्थानीय ब्रजभाषा में मेवाड़ी का मिश्रण होने लग गया और आज हम देखते हैं कि मन्दिर से संबंधित सेवक वर्ग ब्रजभाषा और अन्य नागरिकगण मेवाड़ी भाषा में वार्तालाप करते हैं इस प्रकार विशुद्ध ब्रजभाषा का यहाँ दिनोंदिन अभाव होता जा रहा है। नगर निर्माण से अद्यावधि जो कुछ साहित्य हमें दृष्टिगोचर हुआ है वह अधिकांश ब्रजभाषा में ही मिला है। उसके बाद आधुनिक समय में खड़ी बोली दिखाई देने लगी।

नाथद्वारा में साहित्य सरिता अवाध गति से बहती रही और अनेकानेक कविकमल तथा गद्यकार नाथद्वारा की वसुन्धरा पर अवतरित होते रहे। नगर की साहित्यिक संपन्नता से ही प्रभावित होकर अनेकों विद्वानों ने इस सरस्वती पीठ की यात्रा की। आचार्य श्रीगोवर्धनलालजी महाराज के राज्यकाल में संपूर्ण भारत के साहित्यिक क्षेत्रान्तर्गत डंका बजाने वाले भी नाथद्वारा के ही साहित्य प्रेमी हुए जिन्होने गद्य पद्य और अपने अभिभाषणों द्वारा बड़े बड़े कवि चक्रवर्तियों को चकित कर दिया।

दयानन्द सरस्वती ने जब अखिल भारत की एक ही राष्ट्रभाषा हिन्दी बनाने की बीड़ा उठाया तब राजस्थान में सबसे पहिले हिन्दी की पाक्षिक पत्रिका स्थानीय सुदर्शन यंत्रालय में मुद्रित होने लगी। उस समय उचित कारिणी सभा में आये दिन हिन्दी कविताओं की मादक बहारें लहाया करती थीं जिसकी सुरभि पाकर सारा मेवाड़ सुवासित हो जाता था। प्रसन्न होकर हिन्दी के जनक भारतेन्दु बाबू हरिशचन्द्र काशी छोड़ हमारे नगर नाथद्वारा में आकर निवास करने लगे।

उनके पधारने से यहाँ की पाक्षिक पत्रिका "विद्यार्थी सम्मिलित हरिश्चन्द्र चन्द्रिका मोहन चन्द्रिका' को काफी बल मिला। कई कवि लोग भारतेन्दु बाबू से प्रश्रय और प्रेरणा पा साहित्य के प्रगति पथ पर सतारुढ़ होने लगे। सुहृदवर भारतेन्दु बाबू स्वयं श्रीनाथजी के परम भक्त, श्रेष्ठकवि एवं रसिक शिरामणि थे। शुक्ला ४ विक्रम संवत् १८३९ को स्थानीय उचित कारिणी सभा में पूज्यपाद श्रीगोवर्धन लालजी महाराज के नेतृतव में भारतेन्दु बाबू को अध्यच पद दिया गया। नगर साहित्य के इतिहास में वह दिन सर्वाधिक गौरवपूर्ण माना गया। भारतेन्दू जी के कुछ समय गाद काशी में हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक भक्त प्रवर महामना श्रीमदनमोहन मालवीय का नाथद्वारा आगमन हुआ और वे स्वयं भी नगर की साहित्यिक छटा से प्रवाहित होकर साहित्यकारों के मध्य बैठने उठने लगे। उन्हीं दिनों श्री मालवीयजी का बनाया निम्न सोरठा आज भी नाथद्वारा के घर-घर में चर्चित है:-

गुणी जनन को साथ, रसमय कविता माय रुचि।
सदा दीजियो नाथ, जब-जब यहाँ पठाइयो ।।

कविवर ठाकुर ने कवि एवं कविता की कितनी सुन्दर परिभाषा दी है:-

मोतिन की सी मनोहर माल गुही तुक अक्षर जोड़ वनावै।
प्रेम को पंथ कथा हरिनाम की युक्ति अनूठी बनाइ सुनावै।।

"ठाकुर' सों कवि भावै हमें जो राज्य सभा में बड़प्पन पावै।
पंडित और प्रवीनन को जो चित्त हरै सो कवित्त कहावै।।

यहाँ के कवियों ने अपनी साहित्य सृजन क्षमता के आधार पर अनेक राजकीय सम्मान प्राप्त किये। नगर में कुछ कवि तो इतने प्रतिभावान् हुए कि जिनके पद आज दिन तक भगवान श्रीनाथजी के साथ समस्त भारत के वल्लभ साम्प्रदायिक मन्दिरों में गाये जाते हैं।

पद्य साहित्य में अपना योगदान देने वाले यहाँ के कुछ प्रमुख कवियों का उल्लेख इस प्रकार है:-

श्री हरिराय महाप्रभु:- इनका प्राकट्य पुनः श्रीगुसाईंजी के रुप में ही माना गया है। इन्होने वेदात्मक, भावात्मक, सैद्धान्तिक तथा प्रार्थनात्मक आदि छोटे मोटे कुल मिलाकर सात सौ ग्रन्थ लिखे हैं। इनके द्वारा लिखा हुआ "शिक्षा पत्र' बड़ा ही हृदयस्पर्शी है। आज भी लाखों वैष्णव जिसे बड़े आदर के साथ पढ़ते हैं। श्रीकृष्ण लीलाओं पर इनके द्वारा रचित अनके पद समस्त भारत के वल्लभ सांप्रदायिक मंदिरों में गाये जाते हैं। वे पदों में अपने नामों की छाप "रसिक प्रीतम' लगाते थे अतः हिन्दी साहित्य में अधिकतर इनकी रचनाएँ इसी नाम से प्रख्यात हैं, उनमें से एक पद देखिये:-

पिय तेरे चितवन ही में टौना।
तन मन धन बिसर्यों जा दिन तें, देख्यो स्याम सलौना।
ढिंग रहिबे को होत विकल मन, भावत नाहीन भौना।
लोग चबाव करत घर घर प्रति, धर रहिये जिय मौना।
छूट गई लोक लाज सुत पति, ओर कहा अब होना।
"रसिक-प्रीतम' की बानक निरखत भूल गई गृह गोना।

श्री विष्णुदास श्रीमाली :- इनका मुख्य नाम छबीलचन्द श्रीमाली था। श्रीदाऊजी महाराज ने जब खेड़ा देवी को वैष्णवी बनाया उस समय इन्हें भी वैष्णव घर्म से दीक्षित किया गया। तदवसर पर ही आचार्यश्री ने इनका मुख्य नाम हटाकर विष्णुदास रक्खा। इन्होंने दोहों में श्रीनाथजी की बारहखड़ी लिखी जो आज दिन पर्यन्त इनके वंशज मंगला दर्शन पूर्व प्रभातियों में दोहराते हैं। इस बारहखड़ी में इन्होने जगदम्बा की प्रारम्भिक दोहों में स्तुति कर श्रीकृष्ण का अमर गुणगान किया है। एक उदाहरण देखिये:-

पहिले गणपत ध्याय के, पीछे करिये काज।
विध्न हरण मंगल करन, राखो सबकी लाज।।
दुर्गा दया निधान है, जगमग ज्योति प्रकाश।
पतित उधारण नाम है, पूरै जन की आश।।

श्रीअजब कुँवर बाइ :- ये मेवाड़ के महाराणा श्रीराजसिंहजी की पुत्री थी। इनका जन्म इतिहास प्रसिद्ध वीरंगना महारानी चारुमती के गर्भ से हूआ था। श्री गोस्वामीजी महाराज से दीक्षा प्राप्त कर ये श्रीनाथजी की भक्त हो गई थीं। श्रीनाथजी को मेवाड़ पधारने में इनका सर्वाधिक अनुरोध रहा। कई दिनों तक ये यहाँ रहीं और श्रीनाथजी के दर्शन कर काव्य सर्जन करती रहीं। इन्होने श्रीनाथजी के आठों दर्शन और मेवाड़ पधारने के कई काव्य लिखे हैं। उनमें से एक उदाहरण देखिये:-

श्री महाप्रभुजी रा व्हाला श्रीनाथजी,
श्रीविट्ठलनाथजी रा लाड़िला।
वल्लभकुल रा सेव्य श्रीनाथजी,
वंशी अधर धरे महाराज।।
गोवर्धन गिरि प्रगटिया श्रीजी-
मेवाड़ बिराज्या आय।
अजब कुँवरि री बिनती,
थाँ सुनिजो गोवर्धन राय।।

श्रीगोवर्धनेशजी महाराज :- ये आचार्य श्रीविट्ठलेशरायजी के सुपुत्र तथा नाथद्वारा के नवम तिलकायित थे। ये अद्वितीय विद्वान्, सरस साहित्यकार एवं अनूठे कवि थे। इन्होने श्रीकृष्ण की लीलाओं पर अनेक पद लिखे हैं, जो आज भी भारतवर्ष के वल्लभ सांप्रदायिक मन्दिरों में छप्पन भोग आदि उत्सवों पर गाये जाते हैं। उन्हीं फुटकर पदों में से एक पद इस प्रकार है:-

उसीर महल भवन छायो सुवन तामें बैठे राधारवन ऐरी अंश भुजन मेली।
मृग मद धसि अंग लगाय कपूर जल सों चुचाय अलि बूँदें सीतल गति दोऊ करत सुखद झेली।
गावत सारंग सरस कोकिला सुनत होत बिबस चलत अचल याचल पुलकित द्रुम वेली।
"गोवर्धनेश' हित विलास ग्रीषम रितु अति निवास ललितादिक निरख नैन पावत रस झेली।।

श्रीबेनीमाधव "प्रवीण ':- इन्होने "द्वारिकाधीश विचित्र विलास' तथा "श्रृँगार चन्द्रिका' नामक काव्य लिखे। उनके द्वारा सप्त स्वरुपोत्सव पर बनाये गये स्फुट कवित्तों में से एक उदाहरण देखिये:-

"आनन्द अखूट लगे लूटन प्रवीन जन,
ताते अन्नकूट लुटायो सोंज भारी को।
बाँटि बाँटि दीनो सब सबनि ने लीन्हों यह,
महाप्रसाद दु:ख मेटत दुखारी को।
सवै हँसे खुले बेरी उत "प्रवीण' मन,
मोद लखि लखि लाल की चित्तौनी छकवारी को।
मानों चन्दवृन्दनि में चन्द्रमा बिराजे तैसे-
राजे सुख कंद मुखचन्द गिरधारी को।।

श्रीदेविका बेटी जी :- इन्होने गुजराती में कई धोल तथा हिन्दी में कई गीतों को लिखा। इनकी रचनाएँ अधिकतर भक्ति रस परिपूर्ण हुआ करती थीं। ब्रजभाषा में लिखे इनके कई गीत प्रकाशित भी हो चुके हैं।उन्हीं में से एक उदाहरण देखिये:-

श्रीकृष्ण जी की बाँसुरी बजत सुन सननन,
उठत घोर घननन नभ गजाइहे।
श्रीयमुना जी के तीर बहे त्रिविधि समीर,
बलभद्र जु के बीर ने आछी छब दिखलाइहे।
मोर मुकूट लटक अलक मलक लट झुक रही,
कुंडल की झलक फलक कपोलन झलकाइहे।
बनमाला तिलक भाल केशर की दीए आर,
कमल पत्र गाल देख कमलिनी लजाइहे।।

श्रीदामोदर शास्री :- इन्होने "वि. सं. हरिश्चन्द्र चन्द्रिका' नामक मोहन चन्द्रिका पत्रिका का प्रकाशन किया तथा नाथद्वारा नगर प्रशासन का सारा कार्य-भार संभाला। इनकी गद्य की रचनाओं के बीच बीच में लिखे दोहे काव्यात्मकता को प्रकट करते हैं। "ध्रुवचरित' में से ऐसा ही एक दोहा यहाँ दिया गया है:-

"सर्व शास्र मथिये अरु, करि फिर फिरहि विचार।
निकल्यो है यहि ध्यान कर, नारायण सब सार।।'

भारत मार्तण्ड श्रीगट्टूलालजी :- प्रथित यश भारत मार्तण्ड श्रीगट्टू लालजी की विद्वता की तुलना के विद्वान संयोग से मिलते हैं। दोनों आँखों से अंधा होने के बाबजुद उनकी ज्ञान दृष्टि चमत्कारी थी। संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित होकर भी भारतेन्दुजी के प्रभाव से ये हिन्दी में भी फुटकर रचनाएँ किया करते थे ऐसी ही एक रचना का उदाहरण दखिये:-

माथे पे मुकुट मोर चन्द्रिका सरस सोहे,
कुंडल किरण देखि कोटि भान लाजे हे।
मोतन की माल गरे भूखन वसन अंग,
केसर तिलक भाल लाल छबि छाजे हे।
आनन्द के कन्द गोकुल चन्द नन्द प्यारे,
जसोदा के द्वारे लखि पाप पुंज भाजे हे।
फागुन वदि सप्तमी, सब जग जाने ताही,
धन्य धन्य श्रीनाथजी पाट पे बिराजे हे।।

रेही श्री गोपाल लाल भ "गोप' :- ये अपनी हिन्दी कविताएँ "गोप' कवि के नाम से लिखते थे। इन्होने "रस-चूड़ामणि' नामक वैद्यक ग्रन्थ लिखा और "भगवद्गीता ज्ञान मंजरी' का पद्यानुवाद किया। श्रीमद्वल्लभाचार्य के प्रकाट्य पर बनाया इनका निम्न सवेया देखिये:-

चंपक कानन मध्य हरि तट तामधि देख विरं चिहु भूलो।
शिव सनकादि नारद शारद व्यासहु के मुख जात हे हूला।
ता छवि कौ कवि "गोप' कहे बडवानल होय रहृयो अनुकूलो।
भक्तन के हित वल्लभ को मुख पावक पुंज में पंकज फूलो।

रेही श्री त्रिविक्रमलाल भ "टीकम' :- इनके द्वारा रचित "कविता कुसुमाँजली' में विविध ॠतुओं पर रची हुई कविताएँ अत्यन्त ही हृदयहारिणी हैं। उनमें से ग्रीष्म वर्णन देखिये:-

लागत न आगसी निदाघ को जु लाग तहाँ,
भाग भरे भूरि तहखाने हेरियतु है।
"टीकम' कहत वीर परदा उसीरन के-
सौरभ संधीरज समीर सेरियतु है।
पाटल पोहोप पय पटीर पराग पंक-
पंकजमुखी के पयोधर पेरियतु है।
प्रेम पान पूर पेख पेखन परसपर-
पंकजन पाणि परिरंभ भेरियतु है।।

श्री कृष्णदास सना :- इन्होने "भणत-कमान" के नाम का पुट देकर कवितों की रचना की है। इनके लिखे ग्रंथ "सभा बत्तीसी', "रुजगार पच्चीसी' और "कलामाष्टक' हैं। उन्हीं में से कुछ दोहे इस तरह के मिलते हैं-

रुजगार बिन यों होत है ज्यों बिन पति की नार।
रुप रंग गुण चातुरी बिन सुहाग धिक्कार।।
नृप माते गजराज हैं साजे सकल समाज।
राजनीति अंजन करे, राह चलन के काज।।
चुंगल घूँस अरु पोल मिल, न्याय हक्क निजदास।
करत नृपत के भवन में, निर्भय अचल निवास।।
सुता धन्य वृषभानु की, मोहे नन्द कुमार।
धन्य-धन्य रुजगार हैं, मोहृयो सब संसार।।

श्री केशवजी पालीवाल :- इन्होने सत्यनारायण की सारी कथा का पद्यानुवाद किया है और कई फुटकर कवित्त लिखे। सत्यनारायण कथा का एक उदाहरण देखिये:-

श्री सत्य सत्य भेजरे मना, कलि में यही उपाय।
जो नर मुखते सत्य कहे, बसहि अमरपुर जाय।
बसहि अमरपुर जाय, रहे सत्य सत्यनारायण।
झूठ कपट को त्याग, धर्म पर रहे परायण।
वह नर पापी महा जो, वर्ते अधर्म अरु असत्य।
माँगत केशव यही सदा, मम हिय बसो श्री सत्य।

श्री शंकरलाल गौड़ :- आप संस्कृत और हिंदी के अच्छे कवि थे। उनकी एक रचना का उदाहरण देखिये:-

नागलोक में ते नागदेवन सों लावों सुधा-
किधौं चंद्रमा को मैं निचोड़ कर लाय दऊँ।
दिनकर उदय को यदि भय ही प्रमाण कियो-
तो पै मारतण्ड को उदय होन नाय दऊँ।
सूरज सुत आयवे को मन में न डर राखो मित्र-
ताके पास ताँऊ तोय निधि में डुबाय दऊँ।
कहत कवि "शंकर' यों प्रतिज्ञा कर बोले कपि-
जैसे जिये रामानुज तैसे ही जिवाय दऊँ।

श्री एकलिंग उस्ताद :- इनकी रचनाओं में ब्रजभाषा के साथ मेवाड़ी भाषा का मिश्रण दिखलाई पड़ता है। रचनाएँ अधिकांश फुटकर कविताओं में हैं, एक उदाहरण दिया जा रहा है-

श्रीजी के प्रताप हु ते इंद्रहु रिसानों देख,
सुदर्शनचक्र जल सोख गयो कदी को है।
नाड़े को मेंढक कहे, मेरे तो समुंदर ये,
और सब प्यासे मरे के वचन वदी को है।
अगस्त्य मुनि सो तो सातों समुद्र पीय गये,
एकलिंगदास वैद्य वाक्य कहे जदी को है।
तू तो कहे फीको, यहां भाव जमनाजी को
कवित्त अलंकार सीखो, ओछो जल तालड़ी को है।

श्री घनश्याम सना :- घनश्याम सागर इनका श्रेष्ठ काव्यग्रंथ है। इसके अलावा चंद्रकुमार खेल, लावनियां, गरबा और घूमर आदि की रचनाएँ भी इन्होंने की। नाथद्वारा तथा श्रीनाथजी में अटूट विश्वास रखने वाले इस कवि प्रवर की रचना एक से एक उत्कृष्ट है। एक उदाहरण देखिये:-

सखी सब झूलत हिंडोरे तीज सावन की-
मोहि मनभावन की सुरता सतावेरी।
कहे ""घनश्याम'' सब हरित जलभरी भूमि-
जलधन घूरि घूमि झूमि झर लावेरी।
कूकि- कूकि कोयल कलापी कुंज कुंजन में-
कोहू अपराधी ये मल्हार राग गावेरी।
मदन जगावे मोहि विरहा सतावे आली-
देखि घनश्याम घनश्याम याद आवेरी।

श्री भद्वल्लभाचार्य महिमा पर इनका एक कवित्त देखिये:-

प्रबल प्रचंड मायावाद खंड- खंड कियो-
पंडित वितुण्ड झुण्ड गण्ड मतवारे ते।
दौर- दौर दुरे जात दूर दूर देशन में-
देख- देख विपत्ति प्रताप उर भारे ते।
भूतल श्रीवल्लभ कृपा निधान-
जीवन को देत दान भक्त किधों तारे ते।
आनंद के कंद कोटिचंद से उमंग तेज-
देव सुख संपत्ति विपत्ति सब टारे ते।

श्री जमनादास दर्जी :- इनकी रचनाएँ अधिकांश सवैया तथा कवित्तों में ही मिलती हैं।

मिलै शीतल पौन जो ग्रीष्म में बरसात में मेघन बूँद झर्यो है।
जाड़े में धूप तप्यो ही करै गरमायके आपनो भौन भर्यो है।
शशि को जो प्रकाश सदा ही रहे रवि की किरणें सब रोग हर्यो है।
छपरातर सुख सदा ही रहे यह बतावन छप्पर बास कर्यो है।

श्री मोहनलाल भाटिया :- इन्होने कई सवैयों की रचना की है। ऐसी ही एक रचना का एक उदाहरण यह है:-

"मन माँह उमाह भर्यो इहि भाँति कि देखत दीन दया कर हे।
जब देकर दर्श दयानिधि ने परकास अतुल्य दिवाकर हे।
पदत्राणन लाग रहे कवि मोतीसु हुक्म अदुली हुना कर हे।
परवाह न पंक हुमायु की तेरे चाह की आँखों के चाकर हे।

श्री मट्टू लाल सना :- सर्वप्रथम नाथद्वारा में पाठशाला प्रारंभ करने वाले ये अच्छे पंडित थे। साथ ही हिन्दी के कुशल कवि भी थे। इन्होने नाथद्वारा के सभी दर्शनीय स्थानों का सुरुचि पूर्ण कविता बद्ध वर्णन किया है। लालबाग मार्ग में खड़े गणेश जी का वर्णन देखिये:-

देवन के देव महादेव संग पाण्डव सों,
गिरवर धरन सारन सब काज के।
गृह अंक गायत्री समीप सत्य देव जानो,
हृदय हनुमान आनों वह मालिक हैं लाज के।
करके सुप्रीति रीत नित्य पूज्य प्यारे कहे,
होय मनोरथ सिद्ध कहे मित्र गाज के।
नाथ नग्र निकट मंदिर मनोहर तामें,
ऐसे शुभ देव राज उभे गणराज के।।

श्री लक्ष्मण लोधा :- "लखनेश' नाम से कविता लिखने वाले इस लब्ध प्रतिष्ठित कवि की कविता में एक तरु जीवन के जहरीले अनुभवों का परिचय है तो दूसरी ओर सरस श्रृंगार तथा वैराग्य की कालिंदी प्रवाहित हो रही है। "वैराग्य शतक', "कड़कती बिजली' और "गरजता धन' इनकी सुन्दर रचनाएँ है। इनकी रचना का एक उदाहरण देखिये:-

चन्द्र बिन रजनी त्यों वाटिका मिलन्द बिन,
गयन्द बिन सेन ज्यों हि सेज मृगनैनी है।
कह "लखनेश' छली भक्ति बिन फिरे के ही,
सन्त बिन मिले नाहि स्वर्ग की निसेनी है।
कंज बिन ताल जिमि सागर मराल बिन,
ताल बिन वादन औ गोरस बिन फेनी है।
तरणी बिन केवट परणी बिन पीय ज्यों,
फविता बिन दान ज्यों कविता बिन केनी है।।

रेही श्रीगोकुलेश भ :- फुटकर कविताओं के साथ इन्होने मेवाड़ी भाषा में भी रचनाएँ की। कविता का एक उदाहरण देखिये:-

लिखि लही कीर्ति जगचरित सुरम्य राम,
भव भय भंजन की प्रकट त्रिशूलिका।
भक्ति रस दामिनी प्रवाहिनी पीयूष वारि,
मुक्ति पथ कंटक जरायवे की पूलिका।
अध ओध नाशिनी विनाशिनी विषाद व्याधि,
परम पूनीत त्रय ताप उन्मूलिका।
गोकुलेश सतत प्रदायिनी सुशांति चित,
हुलसी की कूँख धन्य तुलसी की तूलिका।

श्री कृष्णचन्द्र बागरोदी :- ये वल्लभ संप्रदाय के अच्छे जानकार हैं इसके साथ ही साथ हिन्दी तथा संस्कृत के श्रेष्ठ कवि भी। इन्होने "नाथद्वारा का इतिहास', "सुदर्शन चक्रराज स्तुति', "श्रीमद्वल्लभाचार्य चरित', "अन्नकूट महोत्सव महत्ता' आदि अनेक पुस्तके लिखी है। नाथद्वारा के समस्त कवियों का संकलन, "साहित्य रसाल' भी इन्होने ही प्रकाशित करवाया। इनकी रचना का एक उदाहरण देखिये:-

वासुदेव अच्युत के वदन प्रभातें मढ़ी -
काम क्रोध लोभ मद मत्सार विनासिका।
नर के विषाद मोह काटन कृपान धार -
हिय की अविद्या हर ज्ञान की विभासिका।
राग द्वेष दारिणी ओ परम अनंद भरी -
भव भय की हारिणी भक्ति की सुरासिका।
कृष्ण की अधार नित परम पुनीते गीते -
लोक मन रंजत तू मुक्ति पथ काशिका।।

श्रीकृष्ण सना :- इन्होने हिन्दी तथा आयुर्वेद के अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। "सती-अनुसुया' खण्ड काव्य इनकी काव्य प्रतिभा का ज्वलंत उदाहरण है। इनकी कविता देखिये:-

आयो कौन हेतु कौन जोनि तव जन्म भयो,
नेक तो विचार मूढ़ भयो क्यों दिवानो है।
नारकीय नरके या नश्वर शरीर लागि,
पाप के पयोधि गाढ़ मोह में फसानो है।
साथ न चलेगो तेरी वैभव विसाल यह,
पुत्र ओ कलत्र छत्र याँही रह जानो है।
ध्यान निज चित्त में अखंड यह राखि कृष्ण,
आयो है जहाँ ते तोहि तहाँ फेर जानो है।

श्री गिरिधारीलाल शास्री :- ये संस्कृत के श्रेष्ठ विद्वान होने के साथ-साथ हिन्दी में बड़ी सरस रचनाएँ करते हैं। इनकी रचनाओं में से एक का उदाहरण दिया जा रहा है:-

"एक समय ब्रज की अबला सगरी मिलि के संग ले बनमाली
खेलन को बन बीथिन में चलदी जलदी करदे करताली
वेणु दुरा पटझीन हिये इक गोपी ने ये कर दीन कुचाली
ताकि तबै हरि बोलि उठे सखि है यह बीन नवीन निराली'

श्री कज्जूलाल शास्री :- इनकी रचनाएँ हिन्दी गद्य तथा पद्य दोनों में ही मिलती है। श्रीचारभुजानाथ पर इन्होने कविताबद्ध सारी कथा ही लिख डाली। इनकी कविताओं का एक उदाहरण देखिये:-

तारन में भासे जैसे निशापति चन्द्र देव,
नागन में भासे जैसे हरिवाहन नागरी।
देवन में देव-देव वासुदेव राधानाथ,
त्योंहि सब देविन में राधा नट नागरी।
वीरन में वीर मणि वायु पुत्र महावीर,
द्विरदन में दन्ती त्योंहि ऐरावत नागरी।
तैसे ही उर्दू इंगलिश बंगला मराठी मध्य,
राजत यह मातृभाषा हिन्दी शुभ नागरी।।

श्री गौरीशंकर औदीच्य :- ये सरस पाठक, सफल गद्य पद्यकार एवं हिन्दी के अच्छे प्रचारक हैं। "परशुरामयात्रा' इनकी अत्युत्तम कृति है। कविताएँ अधिकतर स्फुट होती है। इनकी रचना का एक उदाहरण दिया जा रहा है:-

"ठिठुरे हैं गात बिललात घर बालक हैं,
नाथ हम दुखियों की कथा हू अनन्त है।
आधी रात साग पात खाय करि गये खेत,
हाथ ठिठुरात ओ किड़किड़ात दन्त हैं।
जागत सब रेन चैन मिली ना पलहू एक,
घर पर अकेली, हाय खेत पड़े कन्त हैं।
जाड़े न प्रजारी तन, मारो सब मेरो मन,
ऐसी निठुर निर्दयी ये आई हिमन्त है।।'

श्री बलदेव बागरोदी "सत्य': - इस हिन्दी प्रेमी कवि ने "श्रीनाथ जी की चिन्ह भावना', "सात स्वरुप भावना' तथा "पुष्टि रसाल आदि अनेक ग्रंथों का लेखन किया । इनकी कविता का एक उदाहरण इस प्रकार है।

तारे थे आपने अनेक जन यादव पति-
उनमें से एक जन मोही चित्त धारोगे।
तुम तो दयालु नाथ दया अब नेक करो-
दु:खी नहीं मोंसो "सत्य' कौन दिना तारोगे।
तीरथ धरम नेम योग यज्ञ नाहिं किये,
पड्यो रहृयो देह गर्व मोह दु:ख जारोगे।
वार वार विनवो मैं साँवरे कुँवर कान्ह,
दीनजन निजी जान विपदा तें टारोगे।।

श्री पुरुषोत्तम तैलंग "विद्याभूषण' :- ये कई भाषाओं के विद्वान तथा सिद्व हस्त लेखक थे। इन्होने बंगला की "मायेर कृपा' और उर्दू में "बिहारी-सतसई' का अनुवाद किया। इनकी कविताएँ फुटकर ही हुआ करती थीं जिसका एक उदाहरण देखिये:-

घोर कलि काल दयनीय दशा दीनन की,
देखि देखि दीन के दयालु क्यों लजाते हो।
साँवरे सलौने रुप शील गुण आगर हो,
नागर हो चतुर शिरोमणी कहाते हो।
पावन अहिल्या कियो कूबरी को रुप दियो,
देखि कुटिलाई मेरी मुख क्यों छिपाते हो।
गनिका की गीध की गयन्दहु की राखी लाज,
मेरी बार आज ब्रजराज क्यों न आते हो।

श्री बालमुकुन्द वैद्य :- बाल्यकाल से ही इनको कविता के प्रति रुचि थी अतः नगर में "बाल कवि' के नाम से विख्यात हुए। इन्होने अधिकतर फुटकर रचनाओं को ही लिखा है। "कुसुमांजली' में प्रकाशित इनकी एक रचना देखिये:-

"कीरती का हल हम गाय सकें, रसनाहू रही धरनीधर की।
नीकी छटा इतकी लखि के, सब फीकि परी शची के घर की।।
मोद भरे सब गोद पसार के याचत हैं हरखी हरखी।
"देव मुकुन्द' चिरायु करे वर जोड़ि प्रभु वरनी वर की।।'

श्री नारायण दास प्रोफेसर :- इन्हें यदि राजस्थान का "गोगा-पाशा' कहा जाय तो कोई अत्युक्ति नहीं है। "सुखी वेबारी बातां', "शिवरात्रि', "दशहरा' आदि इनके प्रकाशित ग्रन्थ हैं। काव्य में अधिकांश रचनाएँ फुटकर हैं उनमें से एक उदाहरण देखिये:-

दु:खमय जीवन को सुखी जो बनाना है तो,
शब्द को समझ कहे सुखी बन जाता है।
"भयंकर' डराता तो "करुणा' रुलाता शब्द,
प्रिय शब्द प्रेम और कठोर शब्द लाता है।
"मधुर' में प्रसन्नता "विनादी' हँसाता खूब,
असत्य से निरादर प्रतिष्ठा सत्य पाता है।
शब्द से ही ऊँच नीच गति प्राप्त होती हमें,
"नारायण' शब्द से ही जीविका कमाता है।

करम्भा श्री मुरलीधर उपाध्याय :- ये हिन्दी गद्य, पद्य दोनो में रचना करते हैं। इनकी रचना का एक उदाहरण देखिये:-

निविड़-तिमिर पुरित जीवन-पथ,
हृदय धधकती ज्वाला हो।
रोम रोम में हो चिनगारी,
श्वास श्वास पीड़ामय हो।
देह दैव के दुर्दमानों से,
हुआ चाहता हो कंकाल।
फिर भी प्राण पखेरु इसके,
खंडहर में क्यों करते वास।।

सुगन्धी श्री पन्नालाल सनाढ्य:- इनकी रचनाओं में "श्रीनाथजी मन्दिर की झाँकी' नामक पुस्तक प्रमुख है। "कबूतरों की उड़ान' पर इनका एक कवित्त देखिए:-

ललसरा कलसरा अमरसरा उड़ान के हैं,
गलबा गजब की बाजी क्या लगाता है।
लंका बड्ड़का से राजी निराला एक,
सुरजमुखी पाम मौज उड़ान पे न जाता है।
भँवर दुबाज और मोती मजे का देखो,
लौट-लौट के यार चैन नहीं पाता है।
सत्य बात पूछो तो सुगन्धी पन्नालाल कहे,
अच्छे खिलाड़ी को चट बाज ले जाता है।।

श्री चन्द्रशेखर शास्री :- इन्होने अधिकतर ब्रजभाषा में फुटकर रचना किया है। इनकी रचना सजीव होती है ऐसी ही एक रचना का उदाहरण देखिए:-

मृदु मंद मुसकावे सुर वृन्द को लुभावे,
नित नैनन सुहावे ओ मोह उपजावेरी।
अभयनु दिरावे कर अंगुरिन डुरावे,
मुखिराशि को लगावे देव दर्शन धावे री।
वुहि नन्द को कन्हैया मुनि मानस को चुरैया,
बहुरुप को धरैया सो नैनन में आवे री।
दु:ख को नसैया भव जाल को कटैया नित,
प्रमुदित यशोदा जहि पालने झुलावे री।।

श्री घनश्याम "शलभ' :- ये छायावादी कवि हैं तथा "विजया', "चित्ररेखा' आदि पुस्तकों के रचयिता हैं। इनकी कविता का एक उदाहरण नीचे दिया जा रहा है:-

नलिनीश झुके छिपि अंचल बीच,
री, चंचल तेरि सुनी जब आवनी।
चित्त चौंकि परे चकवा चकई,
"घनश्याम' लखीरी पखेरुन बावनी।
सब नीड़ में बैठि दुबे अपने,
अब भूलि गये रे विहँगम गावनी।
शुचि सान्ध्य सुनेरी सुहावनि सुन्दरि,
तेरि विभीषिका कैसी भयावनी।।

श्री रतनलाल सनाढ्य "रत्नेश' :- इनके द्वारा लिखित "सर्वोत्तम स्तोत्र" पद्यानुवाद, रत्नावली दोहे की कुण्डलियाँ प्रमुख हैं। इनकी रचना का प्रधान रस शांत है। इनकी कविता का एक उदाहरण देखिए:-

सखियाँ सब साज सजी छिनमें बहुमोद भरी सगरी जन।
गगरी भरिके दूर्वा धरिके कर भूषत भूषिम चीर धरी तन।।
मनु शुक्र सभा बिच देखि परी जिमि लेखि परी नभ दामिनी ज्यों घन।
इमि भामिनी भोरहि आज भ्रमे प्रगटे प्रभु सोदिन आनन्द ज्यों हन।।

श्रीमनोहर कोठारी :- "मनहर' कवि के नाम से साहित्य मंडल में काव्य धारा बहाने वाले कवि ये ही हैं। नवोन्मेष के प्रतिभासम्पन्न इस कवि में काव्य रस देखते ही बनता है। इनके द्वारा रचित "शब्द वेध' एक ऐतिहासिक नाटक है। "तुलसीदास' इनका श्रेष्ठतम खण्डकाव्य है उसी की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार है:-

दनुज दुशासन दुराग्रह दुर्विनय भद्र द्रुपदा सभ्यता को पण्य बीच।
सकल नैतिक मूल्य पर संघात कर नग्न करना चाहते हैं चीर खींच।।
कर रही श्रृँगार प्रिय का एक ओर लोल लतिका विजन जुही पुंज में।
कहीं बरबस केतकी शरम रही अलस परिरम्भण पगी सी कुंज में।।

श्री श्यामराय भटनागर :- इनकी कविताओं में समाज का सही दर्शन हो रहा है। एक उदाहरण देखिये:-

"युग युग से पीड़ित मानव का क्रन्दन मेरी झंकार सुनो।
युग युग से पीड़ित कारा के बन्दी का चीत्कार सुना।
स्वररुद्ध मचल कर तोड़ चुके हैं न्याय नियम से संसृति बंधन।
और सिसकते अरमानों पर चपल तर्जनी करती नर्तन।।

श्री रजनीकांत व्यास :- श्रोतां इस कवि की कविता वुन मंत्र मुग्ध से हो जाते हैं। इनकी रचना का उदाहरण देखिये:-

माखन लूटत श्याम ने, सखिन कह्यो सानन्द।
नूपुर रुनझुन करत है, इन्हें तजे आनन्द।।
लगे कहन तत्काल, नूपुर केशव बचन सुनि।
तुम क्यों देत निकाल, स्वारथ हित हमको प्रभो।।

श्री तिलकेश शर्मा :- इनकी कविताओं मे जीवन का कड़वा घूँट और परिस्थितियों का विचित्र विलास दिखलाई पड़ता है।

श्री पुरुषोत्तम भ :- ये पद्य एवं गद्य दोनों में रचना करते हैं। इनकी रचना का एक उदाहरण देखिये:-

"विधु-वदनी तेरी परछाई जलकूप देख विधु शरमाए।
रुप माधुरी का उफान यह छलक-छलक कर जाए।
तेरे यौवन की अभिलाषा, जगती की आँखों में छाई।
भूले प्रीतम प्यारे अब, जब तू पनिहारिन बन आई।।'

श्री गंगाधर शास्री :- इनकी रचनाएँ अत्यन्त ही सुमधुर एवं प्रभावोत्पादक होती है। इनकी कविता का एक उदाहरण देखिये:-

आज कसम लो भारतवासी,
छोड़ो सारी आज उदासी।
देश के वीरो जाग उठो तुम,
हो ना जाये जग में हाँसी।।
धरती माँ के वीर सपूतो,
खून की नदियाँ आज बहादो।
दुश्मन का खूँ पीने को रे,
माटी है ये कब से प्यासी।।
रुद्र बनो तुम बम-बम बोलो
रणचंडी अपना मुंह खोलो

श्री आनन्दीलाल गोरवा :- इन्होने कई फुटकर कवित्त लिखे हैं उनमें से एक उदाहरण देखिये:-

विष्णु ज्यों शंख चक्र गदा पद्य धारण करै,
तो ड्राइवर भी शंख चक्र गदा पद्यधारी है।
शंख है होरन स्टेकिंरग है चक्र सम -
गदा है गियर पद्य क्लच ये चारी है।
कन्डक्टर पुजारी सदा सीटी बजाता रहे,
उतारते हैं पार खड़ी करके वह लारी हैं।
विष्णु ने बनाई है छत्तीस कौम पूरी जान,
र्तृतीस कौम ड्राईवर की यह "आनन्द' बिहारी है।।

श्री नंदलाल दया "अपूर्ण' :- ये खड़ी बोली, राजस्थानी तथा ब्रजभाषा में लिखते रहे हैं। "स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी' तथा "पैसा' इन्हीं के लिखे खण्डकाव्य हैं। "सम्बोधन' नामक इनकी कविता का एक अंश देखिये:-

तीन रंग ध्वज की छाया में,
करें प्रतिज्ञा हम तुम मिलकर।
जन्म तिथि है पुण्य पर्व की,
करें साधना साधक बनकर।।
नदियाँ बनकर भरें सिन्धु को,
प्यासों को मिल पाये पानी।
मंजिल का दो साथ साथियों,
बढ़कर आगे ओ बलिदानी।।
बातों से होते काम नहीं,
आराम नहीं कुछ काम करो।
मजबूत बने जड़ चेतन की,
यह चिन्ता आठों याम करो।।

श्री सज्जन कुमार पालीवाल :- "सज्जन नेहरु', "पत्नी में परमेश्वर' तथा "बापू' आदि इनकी काव्य रचनाएँ हैं। "बापू' काव्य का एक अंश देखिये:-

जो न गाँधी आज होता
कर्म रोते
धर्म सोते
मानवीय आदर्श खोते
दानवी बाहुल्य होता
जो न गाँधी आज होता
विश्व में संघर्ष होता
दानवों में हर्ष होता
प्रलय मचता
कुछ न बचता
भारतीय आदर्श रोता
जो ना गाँधी आज होता

श्री नवनीत कुमार पालीवाल :- इन्होने "यह देश है वीर जवानों का' नामक नाटक लिखा। सुमधुर राग के इस कवि की रचना का एक उदाहरण देखिये:-

"बासन्ती सौरभ है महकी अमराईयाँ।
कलियों ने बिखराई लहकी अंगड़ाईयाँ।
मधुपों के गूँजन मे सौ-सौ मनुहार रे।
बौराया फागुन ने बिखराया प्यार रे।। १ ।।

सरसों के खेत उठी बंशी की तान रे।
अलसाई गौरी के बेकल हैं प्राण रे।
मदिराए चरण चली सुध बुध सब हार रे।
बौराया फागुन ने बिखराया प्यार रे ।। २ ।।

श्री भूरालाल "अमिताभ' :- "पंचवटी' "रामवनवास' आदि इनके खंडकाव्य हैं। इसके अलावा इन्होने नई धारा की अनेक कविताएँ लिखी हैं। ऐसी ही एक कविता का अंश नीचे दिया जा रहा है:-

जिन्दगी एक हसीन ख्वाब है
हसीन बहार है
एक मुस्कराती बेमिसाल मंजिल है
जिसकी तह में इन्सान की ख्वाहिशों का मेला है
हर सुबह शाम जिसकी सीढियाँ है
हर कदम आने वाले वक्त का नगमा है
ऐ मेरे दोस्त इसे यूँ ही बरबाद न कर
यह एक वसीयत है
जिसे मालिक को पेश करना है।।

श्री रघुनाथ "चित्रेश' :- "हल्दीघाटी' खण्डकाव्य के साथ-साथ इन्होने कई फुटकर कविताएँ भी लिखी है। इनके द्वारा रचित "आँसू' कविता का उदाहरण देखिये:-

हूँ किसी की आँख की मैं अश्रुधारा।
वह चली हूँ ले किसी का दर्द सारा।।
मूक गाथा हूँ किसी टूटे हृदय की।
और किसी बेबसी की हूँ सहारा।।
यूँ तो हर कोई मुझे पहचानता है।
सीप के मोती सी हूँ यह जानता है।।
पर किसी घायल हृदय से पूछ तो लो,
मूल्य किसने जान पाया है हमारा।।

रेही श्री ब्रजेन्द्र भ :- श्री रेही अच्छे कवि, सफल संपादक तथा जोशीले लेखक हैं। नवीन धारा के इस कवि ने कविता में भी अकविता को लाकर खड़ा कर दिया है। इनकी रचना का एक उदाहरण देखिए:-

जीवन यात्रा
कितनी लम्बी है
कह नहीं सकते
पतझर में झरने वाले
रुक नहीं सकते।
बता नहीं पाता है कोई
कि पिछले साल
टूटा हुआ पत्ता
कहाँ उड़ गया?
अनगिनत मोड़ पर
कौन-कौन खो गया?
ओ समय लुटेरे
तू तो ठहर
मत लूट स्मृति खजाने को
इसे तो रहने दे शेष।

श्री देवकृष्ण सना :- "कवि', "हल्दी घाटी', "ललकार' तथा "काश्मीर हमारा है' इनकी सुन्दर रचनाएँ हैं। इनकी कविता का एक अंश देखिए:-

जाग जाब ओ जाग जाग रे
मेरे हिन्दुस्तान रे।
कण कण से चिनगारी चमके
होने को बलिदान रे।।

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