राजस्थान

 

मारवाड़ का खान-पान

प्रेम कुमार


मारवाड़ का भोजन प्रायः अपनी सात्विकता के लिए जाना जाता है। प्याज, लहसुन जैसे कई तामसिक भोजनों का प्रयोग निषिद्ध था। हिंदू जनता में शाकाहारी भोजन का प्रचलन था, लेकिन कुछ लोग मांसाहार का भी प्रयोग करते थे।

 

मारवाड़ की अर्थव्यवस्था पशुपालक रही है, अतः भोजन में दूध व दूध से बने सामग्रियाँ जैसे दही, छाछ, मट्ठा, घी आदि का बहुतायक में प्रयोग होता था। छाछ को तो अमृत- तुल्य समझा जाता था। साधारण लोगों में ज्वार, मोठ, कुलथ, मसूर, उड़द व तूर का विशेष प्रयोग होता था। चावल, गेहूँ, मकई व कुछ अन्य अनाज भी व्यावहार में लाये जाते थे, लेकिन बाजरे का प्रयोग सबसे व्यापक रुप से किया जाता था। सस्ती होने के कारण गरीब लोगों में भी इसकी विशेष खपत थी। किसानों व अन्य ग्रामीण लोगों में भोजन में सागरा तथा राबा सबसे अधिक प्रचलित थे।

साधारणतः लोग दिन में तीन बार भोजन ग्रहण करते थे -- सीरवान (नाश्ता), दुपहरी (दिन का भोजन) व रात बियालु (रात का भोजन) । सीरवान में बाजरी की रोटी के साथ घी, दही, दूध व मट्ठा लिया जाता था। रावा व छाछ का प्रयोग सामान्य था। कभी- कभी मेथी, पालक या सोया जैसी पत्तेदार सब्जियाँ भी प्रयोग की जाती थी। दूपहरी में सोगरा, मुंडा या मोथ की दाल, प्याज तथा एक लाल मिर्च का भोजन किया जाता था। सायंकालीन भोजन में सोगरा, दाल, मटर व रवीच (बाजरी व मोठ दाल की मिश्रित थूली) के साथ घी, तेल, दूध या राबड़ी का प्रचलन था। लोग खिचड़ी का भी सेवन करते थे। उपरोक्त भोजन स्वास्थ्य के नियमों के अनुकूल माना जाता था। अच्छे स्वास्थ्य के लिए सायंकालीन भोजन सुपाच्य व हल्का लेना उचित समझते थे।

पाँच तरह के खाद्यों से बनी पंचकुट मारवाड़ की अपनी खासियत थी। वे थे -- सागरी, खैर (सुखे मेवे), कुमाथिआ (बील), अमचुर (आम का सुखाया गया मांसल भाग) व मिर्ची। 

सब्जियों में कैर, सांगरी, फोग, ककड़ी, फलियां, टिंडा, खींपोली, कंकेड़ा आदि सर्वत्र उपलब्ध रहते हैं। इसके अतिरिक्त मूली, गाजर, शकरकंद जैसे कंदवाली सब्जियाँ भी उगाई जाती है। तरबूजे भी उगाये जाते थे।

यहाँ की विविध तरह की मिठाइयाँ व नमकीने विश्व विख्यात हैं। जोधपुर की मावे की कचौरी, बीकानेर के रसगुल्ले, नागौर के मालपुवे, जैसलमेर के गोडमां, किशनगढ़ के पेठे, मेड़ता के दूध पेड़े, लूणी की केशवबाटी, पाली के गूंजे, नावां के गूंद के पापड़, सांभर की फीणी, खारची की रबड़ी व खुनसुना की जलेबी लाजवाब मानी जाती है। इसी प्रकार बीकानेरी भूजिया, जोधपुरी मिर्ची बड़ा, दाल- मोठ, कोफ्ता व शाही समोसा यहाँ के जाने- माने नमकीन व्यंजन हैं।

शाकाहारी व्यंजनों की तरह, यहाँ मांसाहारी व्यंजनों की भी लंबी श्रृंखला है। यहाँ के जंगलों में कई प्रकार के वन्य प्राणी विपुलता में उपलब्ध थे, जिनका पहले शिकार किया जाता था। मांसाहारी व्यंजनों में कबाब, रोगनजोश, कीमा, अचार, पुलाव, काचर, सीरी, सोयता, बूथां, खड्ड खरगोश इत्यादि उल्लेखनीय हैं।

गरीब तथा समृद्ध लोगों के भोजन में बहुत अंतर था। समृद्ध लोग बहुत तरह के सब्जियों के सुगंधित रसों, सुखे मेवे तथा फीणी, घेवर व खाजा जैसे मिठाइयों, दारव (अंगुर), नारियल, चावल व गेहूँ के बने विभिन्न तरह के व्यंजनों, सब्जियों, दाल व अचार का प्रयोग करते थे। शादी- विवाह के अवसर पर लपसी, सीरा तथा लड्डू अवश्य बनाये जाते थे। शादी के अवसर पर गंगाजल, इलायची और कपूर डाला हुआ जल परोसा जाता था। भोजन के बाद पान, कस्तुरी, कपूर और लौंग का सेवन किया जाता था। गरीबों में बाजरे की रोटी का प्रचलन व्यापकता से होता था।

नशीले पदार्थों में तंबाकु व अफीम का सेवन किया जाता था। शराब का सेवन कुछ वर्ग- विशेष तक सीमित था। ब्राह्मण तथा वैश्यों में यह वर्जित था, वे लोग भांग का सेवन करते थे।

 

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