राजस्थान

 

मारवाड़ - राज्य के अधीन प्रमुख महकमों (विभागों) का विवरण

प्रेम कुमार


 

 

प्रधान मन्त्री (चीफ मिनिस्टर) के अधीन महकमें

१. महकमा खास

यह राज्य का मुख्य महकमा है। ई० स० १९२२ और १९२८ में इसे नवीन ढ़ग पर लाने के लिए इसके प्रबन्धन में और भी सुधार किया गया। ई० स० १९३० के सितम्बर में राजकीय काउंसिल के प्रत्येक सदस्यों के लिए एक-एक सचिव (सेक्रेटरी) नियुक्त किया गया। इससे सदस्यों का काम बहुत कुछ हलका हो गया और उन्हें विशेष महत्त्व के मामलों की तरफ ध्यान देने का समय मिल गया। न्याय के कार्य को और भी उन्नत बनाने के लिए ई० स० १९३५ में कानूनी सलाहकार का पद नियत किया गया और इस सम्बन्ध के कागजात उसकी सलाह के साथ काउंसिल में पेश होने का नियम बनाया गया।

ई० स० १९३७ में महकमा खास के प्रबन्ध में फिर संशोधन किया गया। इस समय पोलिटिकल डिपार्टमेन्ट और काउंसिल के कार्य-संचालन के लिए एक-एक एसिस्टेन्ट सेक्रटरी का भी प्रावधान रखा गया।

२. पुलिस का महकमा

इसमें १ इन्सपेक्टर जनरल और १ डिप्टी इन्सपेक्टर जनरल के अलावा ९ डिस्ट्रिक्ट सुपरिन्टेन्डेन्ट, १ डिप्टी सुपरिन्टेन्डेन्ट, २२ इन्सपेक्टर, ६ पब्लिक प्रोसीक्यूटर, ११२ सब-इन्सपेक्टर, ६ सब कोर्ट इन्सपेक्टर, ४७६ हेड कॉन्स्टेबल, २०७६ कॉन्स्टेबल, ८० चौकीदार और ६७ नम्बरदार थे।

३. जोधपुर रेलवे

जोधपुर-सुरसागर, परबतसर, समदड़ी-रानीवाड़ा, और मारवाड़ जंक्शन-फुलाद शाखाओं के और भी खुल जाने से जोधपुर रेलवे का विस्तार ७६७ मील के करीब पहुंच गया। इनके ४८ स्टेशन बिटिश - भारत के सिंध और बलूचिस्तान प्रान्त में पड़ते थे। 

इस रेलवे की कुचामन रोड से खोखरोपारवाली, लूनी जंक्शन से फुलादवाली और जोधपुर से सूरसागरवाली शाखाओं पर और राई-का-बाग तथा मण्डोर के स्टेशनों पर 'कण्ट्रोल-सिस्टम' से काम हुआ करता था।

जोधपुर-रेलवे के कारखाने में बिजली से चलने वाली नए ढंगकी मशीनें लगाई गई और इस रेलवे के अन्य विभागों में भी यथा साध्य उन्नति की गई। पहले जोधपुर और बीकानेर की रेलवे साथ ही काम करती थी। परन्तु ई० सं० १९२४ की १ नवम्बर (वि० सं० १९८१ की कार्तिक सुदि ५) से इन दोनों का प्रबन्धन कर दिया गया और बीकानेर - रेलवे बीकानेर-दरबार को सौंप दी गई।

४. मुख्य जेल (
Central Jail)

इस महकमे के प्रबन्धन में अच्छी उन्नति हुई। कैदियों को दिए जाने वाले भोजन और सुविधाओं में भी सूधार हुआ। ई० स० १९२४ में खास-खास उत्सवों पर छोड़े जाने वाले कैदियों के नियम बनाए गए और ई० स० १९३२ में मारवाड़-जेल के कानून अंगीकृत हुए।

इस समय तक जेल फैक्टरी में कैदियों द्वारा बनाई जाने वाली उपयोगी वस्तुओं - जैसे रेशमी व सूती कपड़ों, दरियों, निवारों, रस्सियों, तौलियों, लोइयों, बेत क कुर्सियों आदि की राज्य में तथा दूसरी रियासतों में मांग बढ़ने लगी।

५. स्टेट होटल

जोधपुर में हवाई अड्डा बन जाने से आर्थिक रुप से सम्पन्न लोगों का आवागमन बढ़ गया। इनकी सुविधा के लिए ई० स० १९३१ में 'यूरोपियन गेस्ट हाउस' की एवज में आधुनिक सुविधाओं से पूर्ण 'स्टेट होटल' की स्थापना की गई।

६. दस्तरी का महकमा

इसमें राज्य सम्बन्धी खास-खास घटनाओं का विवरण लिखा जाता था।

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अर्थ -सचिव (फाइनेन्स मिनिस्टर के) अधीन महकमे

१. खजाने का महकमा

ई० स० १९२३ (वि० सं० १९८०) में मिस्टर जे० डब्ल्यू० यंग ने आकर इस महकमे का आधुनिक ढंग पर प्रबन्ध किया था। इसी से आजकल राजकीय महकमों के आय-व्यय के सालाना बजट चालू वर्ष के ११ महीने के असली और १ महीने के अन्दाजन आय-व्यय के आधार पर तैयार किए जाते थे। और नवीन वर्ष के आरम्भ होते ही प्रत्येक महकमे को, उसके लिए अंगीकृत हुए बजट (तखमीने) की सूचना भेज दी जाती थी। बजट का आधा खर्च जोधपुर-रेलवे और बिजली-घर पर लगाया जाने से राज्य की आमदनी में भी अच्छी वृद्धि हुई। 

राज्य का सारा हिसाब 'प्री आॅडिट' के तरीके पर होता था और राज्य के कुछ खास जिम्मेदार करार दिए हुए महकमों को छोड़कर बाकी सबका हिसाब राजकीय हिसाब के दफ्तर (आॅडिट आॅफिस) में और महकमा खास के 'फाइनेन्स और बजट' के विभाग में हुआ करता था।

मारवाड़ रियासत में जोधपुर के मुख्य खजाने के (जिसका सारा काम ई० स० १९२७ से यहां की 'इम्पीरियल बैंक' की शाखा करती है) अलावा राज्य के भिन्न-भिन्न परगनों में २२ खजाने और भी थे, जहाँ पर सरकारी रकम जमा होती थी और राज्य कर्मचारियों का वेतन आदि और भारत-सरकार के फौजी विभाग से पेंशन पाने वाले मारवाड़ निवासियों की पेंशन दी जाती थी।

प्रत्येक महकमे में होने वाली आमदनी और खर्च की जांच के लिए 'लोकल आॅडिट स्टाफ' नियत किया गया था। यह सालाना प्रत्येक महकमे और खजाने में होने वाली आमदनी और खर्च की जांच कर 'आॅडीटर' के पास अपनी रिपोर्ट पेश करता था। और आवश्यकता होने पर ठीक तौर से हिसाब रखने के लिए उचित सलाह भी दिया करता था।

'आॅडिट आॅफिस मैन्युअल' और 'जोधपुर गवर्नमेंट सर्विस रेगूलेशन' आदि के प्रकाशित हो जाने से राज्य - कर्मचारियों को बड़ी सुविधा हो गई।

राज्य के अफसरों और अहलकारों के लिए जिस 'प्रोविडेंट फंड' और छोटे दर्जे के कर्मचारियों के लिए जिस 'ग्रेच्यूटी' (
Gratuity) का प्रबन्ध किया गया उसका हिसाब भी यही महकमे में रखता था। इसके अलावा राज्य-कर्मचारियों को मकान आदि बनवाने के लिए कम सूद पर रुपये देने का प्रबन्ध भी यहीं से होता था।

बाद में इस महकमे के उद्योग से राज्य-कर्मचारियों के लिए एक सहयोग-समिति भी बन गई और शीघ्र ही उनके लिए गक बीमा विभाग भी स्थापन किया गया।

इस अर्थ विभाग द्वारा राज्य के वार्षिक आय-व्यय का चिट्ठा इस खूबी से तैयार किया जाता रहा तथा राज्य का सारा काम सुचारु रुप से चलता रहा।

इस महकमे का खास दफ्तर 'इम्पीरियल बैंक' के पास बने नए 'सिलवर जुबिली ब्लॉक' में हुआ करता था।

२. सहयोग समिति

ई० स० १९२६ (वि० सं० १९८३) में पहले-पहल मारवाड़ में 'को-आॅपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी' की स्थापना की गई। इसके बाद ई० स० १९३७ (वि० सं० १९९४) में राज-कर्मचारियों के विधा के लिए 'उम्मेद को-आॅपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी' कायम हुई। इसी प्रकार पंचायत-कानून पर भी विचार किया गया। अब तक कर्ज के भीषण परिणाम से बचने के लिए केवल जागीरदार ही दिवाले के कानून की शरण ले सकते थे। परन्तु बाद में दूसरों के लिए भी ऐसा ही कानून बना दिया गया।

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गृह -सचिव (होम मिनिस्टर) अधीन महकमे

१. सायर (कस्टम्स) का महकमा

जोधपुर रियासत की सायर की आमदनी इस समय बढ़कर २७,००,००० तक पहुंच गई है और ई० स० १९३८ में इस विषय पर कुछ कानून-कायदे बनाए गए इसमें सायर की आमदनी में वृद्धि होने के साथ-साथ व्यापार को भी बढ़ावा मिला।


२. चिकित्सा विभाग

ई० स० १९३२ की ९ सितंबर(वि० सं० १९८९ की भादों सुदि १०) को १५,१८,००० रुपयों की लागत से विढम अस्पताल का उद्घाटन किया गया। धीरे-धीरे इसका विकास हुआ। इसमें एक अच्छी 'लैबोरेटरी' और एक 'एक्सरे' विभाग भी जुड़ गया। ई० स० १९३६ (वि० सं०) से यहां पर स्वास्थ्य-विभाग की भी स्थापना हो गई और अब चेचक के टीके आदि का प्रबन्ध यही महकमा करता रहा।

स्रियों की शिक्षा के लिए ११,१९,००० रुपये की लागत से एक जनाना (उम्मेद फीमेल) अस्पताल भी बनाया गया। इसका उद्घाटन ई० स० १९३८ को किया गया था। पहले मारवाड़ के शफाखानों की निगरानी रैजीडेंसी-सर्जन किया करता था। परन्तु ई० स० १९२५ (वि० सं० १९८२) से दरबार ने अपना निजका 'प्रिंसिपल मेडिकल आॅफीसर' नियत कर दिया है।

छूतवाली बीमारियों के रोगियों के लिए चैनसुख के बेरे पर एक अच्छा अस्पताल
(Isolation Hospital) बनाया गया। इसी प्रकार कोढियों के इलाज के लिए, नीवे की कुष्ठ-रोगियों की बस्ती (Leper Asylum) में, एक शफाखाना खोला गया। बहुत समय से पागलों का इलाज जेल के अस्पताल में ही हुआ करता था। परन्तु बाद में उनके लिए भी एक अलग खास शफाखाना (Mental Hospital) बनाया गया।

ई० स० १९३६-३७ में मारवाड़ में कुष्ठ रोग की जांच
(Leprosy survey) की गई।

३. जंगलात का महकमा

इस महकमे ने भी अच्छी उन्नति की और इस विभाग के माध्यम से जोधपुर के चारों तरफ की पुरानी और नई सड़कों के दोनों किनारों पर वृक्ष लगाने का प्रयत्न किया गया।

४. राजकीय छापाखाना

'जोधपुर गवर्नमेन्ट-प्रेस' भी बराबर उन्नति करता रहा और जोधपुर राज्य और जोधपुर-रेलवे की छपाई आदि का साराा काम यहीं होने से इसकी आय दिनानुदिन बढ़ती गई।

५. जवाहर-खाना और टकसाल

सरकारी जवाहरात पहले किले पर के फतहमहल में रखे हुए थे। परन्तु वहां पर जगह कम होने से इन्हें वहीं पास ही के दौलतखाने के महल में सजाकर रखा गया।

जोधपुर की टकसाल में सोने के अलावा अन्य धातु के सिक्के बनाने का काम बहुत दिनों से बंद था। परन्तु ई० स० १९३५ (वि० सं० १९९३) में मारवाड़ में एक ही प्रकार के तोल और नाप के प्रचार के लिए कानून बनाया गया जिसे जोधपुर नगर में प्रचलित कर दिया गया।

६. रजिस्ट्रेशन

ई० स० १९३४ (वि० सं० १९९१) में नया मारवाड रजिस्ट्रेशन कानून पास हुआ और ई० स० १९३६ की जनवरी (वि० सं० १९९२ के पौष) से उन जागीरदारों को, जिन्हें अदालती इखतियारात मिले हुए हैं, जोधपुर गवर्नमेन्ट के साधारण स्टाम्पों को लागत कीमत पर खरीद कर, अपनी जागीर की रियाया की आवश्यकताओं के लिए, पूरी कीमत (क़ठ्ठेड़e ज्ठ्ठेथ्द्वेe) पर बेचने का अधिकार दिया गया।

७. पशुवर्धन
(Animal Husbandry) विभाग

ई० स० १९३५ (वि० सं० १९९२) से, जोधपुर-दरबार ने मारवाड़ के दूध देनेवो और खेती के उपयोग में आने वाले पशुओं की नस्ल सुधारने और उनमें होनेवाले रोगों को निवारण करने के लिए इस महकमे की स्थापना की थी।

८. मारवाड़ सोल्जर्स बोर्ड

यह बोर्ड राजपूताना प्रोविंशियल बोर्ड से संबद्ध था। ई० सन् १९१९ में वर्तमान और भूतपूर्व सैनिकों की ओर उनके कुटुम्बियों की सहायता के लिए इसकी स्थापना की गई थी।

९. वॉल्टर राजपूत-हितकारिणी सभा

इस सभा की स्थापना, ई० सन् १८८८ में, उस समय के राजपुताना के ए०जी०जी० कर्नल वॉल्टर की अध्यक्षता में अजमेर में की गई थी और इसका उद्देश्य राजपूतों और चारणों के यहाँ की शादी और गमी में होने वाले खचाç में कमी करना था। जोधपुर की वॉल्टर सभा भी उसी उपर्युक्त सभा की एक शाखा थी और यह राजपूतों तथा चारणों की शादी-गमी के खचाç और लड़के-लड़कियों की विवाहोचित आयु आदि का नियम करती थी।

इस स्थानीय सभा की कमेटी में ६ सरदार होते थे। यह कमेटी इस सभा के नियमों का उल्लंघन करनेवालों पर जुर्माना कर सकती थी और इसके हुक्म की अपील सीधी महकमा खास में होती थी। जुर्माने की रकम गरी जागीरदारों के उपयोगी कार्यों में ही खर्च की जाती थी।

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जनतोपयोगी कार्य सचिव (पब्लिक वक्र्स मिनिस्टर के अधीन महकमे)

१. पब्लिक वक्र्स का महकमा
(Public Works Deptt.)

इस महकमे द्वारा स्कूल, अस्पताल, स्टेट होटल आदि भवन तैयार किये जाते थे। इस महकमे ने आनेजाने के सुविधा के लिए मारवाड़ में अनेक सड़कें बनाई। नगर के आम रास्तों के अलावा गलियों में भी हरसाल पत्थर की पक्की सड़कों का विस्तार किया जाता रहा। 

सुमेर-समंद, पिचियाक, सरदारसमंद आदि के बांधों से होने वाली सिंचाई में भी इस महकमें का खास योगदान रहा।

नगर में पानी की कमी दूर करने के लिए पहले पाताल-फोड़ कुओं के लिए उद्योग किया गा था। परन्तु उसमें विशेष सफलता न होने से 'सुमेर-समंद वाटर सप्लाई चैनल' नाम की नहर तैयार की गई, इससे जोधपुर-नगर में पानी का अभाव दूर हो गया और चांदपोल जैसे पहाड़ पर बसे नगर के पुराने और ऊँचे हिस्से में भी नलों द्वारा पानी पहुँचा दिया गया। यह पानी पूरी तौर से फिल्टर करके दिया जाता था।

इसी प्रकार गाँवों के जलाशयों का जीर्णोद्धार करके गाँव वालों के लिए पानी का प्रबन्ध करने में भी हर साल एक बड़ी रकम खर्च की जाती थी। नगर की सफाई के लिए भूगर्भस्थ नालियों का प्रबन्ध था।

जोधपुर के हवाई अड्डे का प्रबन्धन भी इसी महकमे के अधिकार में था। हवाई जहाजों की सुविधा के लिए गवर्नमेन्ट की तरफ से एक बेतार के तार का स्टेशन भी बना था। 

इस महकमें की नगर-विस्तार में विशेष भूमिका रही।

बागात का महकमा भी अच्छी तरक्की कर रहा है। बालसमंद और मंडोर के बगीचों को आधुनिक ढंग पर तब्दील किया गया हैर इसके बाद जनता के उपयोग के लिए पब्लिक-पार्क या विलिंग्डन गार्डन बनाया गया। साथ ही लोगों के मनोरंजन के लिए इसी में चिड़ियाघर, अजायबघर और पब्लिक लाइब्रेरी भी स्थापित की गई।

२. बिजलीघर

यह महकमा ई० स० १९१७ में खोला गया था। और उस समय इसमें दो-दो सौ किलोवॉट की दो मशनें और ४ ब्वायलर लगाए गए थे। ई० स० १९२६ में ४०० किलोवॉट की एक मशीन बढ़ाई गई और ई० स० १९२८ में एक हजार किलोवॉट की एक नई मशीन और एक व्वायलर और जोड़ा गया। इसके बाद ई० स० १९३२ में पहले के चार ब्वायलरों में सुधार किया गया।

ई० स० १९१८ में केवल दो मुख्य रास्तों पर ही बिजली की रोशनी लगाई गई थी। परन्तु समय के साथ शहर के खास-खास रास्तों और इर्द-गिर्द के सड़कों आदि के अलावा बहुत सी गलियों तक में बिजली की रोशनी लगा दी गई।

ई० स० १९३८ में सुमेर समंद से जोधपुर नगर में पानी लाने का जो प्रबन्ध किया गया उसके लिए मार्ग में ८ पंपिंग स्टेशन बनाए गए और इनके चलाने के लिए ११ किलोवॉट की करीब १० मील लंबी बिजली की लाइन बनाई गई।

ई० स० १९१७ में बिजली के केवल ६ सब-स्टेशन थे। परन्तु बाद में ८ स्टेशनों के अलावा ३१ सब-स्टेशनों में काम होने लगा।

पहले पहल ई० स० १९१७ में यहाँ पर टेलीफोन का १०० लाइन का बोर्ड लगाया गया था। बाद में इसकी संख्या दिनानुदिन बढ़ती गई।

सुमेरसमंद से नगर में पानी लाने के लिए जो नहर बनाई गई उसके पंपिंग स्टेशनों की सुविधा के लिए टेलीफोन की १० १/२ मील लंबी नई लाइन तैयार की गई।

पहले शहर का मैला भैंसों द्वारा खींची जाने वाली गाड़ियों में ले जाया जाता था। परन्तु बाद में मेले की गाड़ियां इंजिन द्वारा लोहे की पटरी पर खींची जाती थी। 

शहर के वाटर वक्र्स (नलों द्वारा पानी देने) का काम भी पहले इसी महकमे के अधिकार में था। परन्तु ई० स० १९३१ से यह पब्लिक वक्र्स महकमे को सौंप दिया गया।

३. आर्कियोलोजिकल डिपार्टमेन्ट (पुरातत्व विभाग) और सुमेर पब्लिक लाइब्रेरी

ई० स० १९०९ (वि० सं० १९६६) में ब लॉर्ड किचनर जोधपुर आए, जब उन्हें दिखलाने के लिए मारवाड़ में बनने वाली वस्तुओं का एक स्थान पर संग्रह किया गया। उसका नाम इण्डस्ट्रियल म्यूजियम रखा गया। इसके बाद ई० स० १९१४ (वि० सं० १९७१) में पहले पहल इस म्यूजियम (अजायबघर) का प्रबन्ध आधुनिक ढंग से किया गया और इसमें प्राचीन और ऐतिहासिक वस्तुओं को भी स्थान दिया गया।

इसके बाद ई० स० १९१६ (वि० सं० १९१९७२) में भारत सरकार ने इसका नाम स्वीकृत अजायबघरों की सूची में दर्ज कर लिया। फिर ई० स० १९१७ (वि० सं० १९७३) में इसका नाम बदल स्वर्गवासी महाराजा सरदार सिंहजी के नाम पर सरदार म्यूजियम दिया गया। ई० स० १९१५ (वि० सं० १९७२) में इसके साथ ही एक पब्लिक लाइब्रेरी की स्थापना की गई। बाद में इसका नाम बदलकर महाराजा सुमेरसिंहजी के नाम पर सुमेर पब्लिक लाइब्ररी रख दिया गया। पहले ये दोनों महकमे सूरसागर के बगीचे में थे। परन्तु शहर से दूर होने के कारण ई० स० १९२६ (वि० सं० १९८३) में इन्हें शहर से नजदीक लाया गया। जोधपुर दरबार ने यहाँ पुरातत्व विभाग की स्थापना की और अजायबघर, इतिहास कार्यालय, पुस्तक प्राश और चण्डू-पंचांग के महकमे उसमें मिला दिए।

ई० स० १९३६ की १७ मार्च (वि० सं० १९९२ की चैत्र वदि ९) को तत्कालीन वायसराय लॉर्ड विलिंग्डन ने अजायबघर और लाइब्रेरी के नए भवन का उद्घाटन किया। यह भवन विलिंग्डन गार्डन में बनाया गया।


४. खानों और कला-कौशल का महकमा
(Mines and Industries Deptt.)

इस महकमे की तरफ से मारवाड़ में धरु कला-कौशल को उन्नत करने के लिए कम सूद पर कर्ज देने का प्रबंध किया गया है और समय-समय पर प्रदर्शनियों के द्वारा भी उसको उत्तेजन दिया जाता है। पहले यह महकमा जंगलात के महकमे के साथ था। परन्तु प्रबन्ध की सुविधा के लिए ई० स० १९२९ में यह उससे अलग कर दिया गया। इसके बाद ई० स० १९३० से जागीर के गाँवों में प्राप्त होने वाले खनिज पदार्थों पर भी दरबार का हक मान लिया गया।

यहां की खानों से प्रमुख रुप से संगमरमर, साधारण पत्थर, चूने और कली का पत्थर, खड़िया, मेट (मुल्तानी), वुल्फ्रेम और पैंटोनाइट आदि निकाले जाते थे।

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आय -सचिव (रिवेन्यू मिनिस्टर) के अधीन महकमे

१. हवाला

पहले पहल राज्य की सरहद और खालसे के गाँवों का लगा निश्चित करने के लिए ई० स० १८८५ से १८९५ तक मारवाड़ की पैमाइश की गई थी। ई० स० १९२१ से १९२६ तक जिस समय मारवाड़ के खालसे (राज्य) के गाँवों का दुबारा सेटलमेंट (पैमाइश) किया गया, उस समय उनके सारे ही रकबे को मुस्तकिल हिससों मेंबांट दिया गया और बापीदारों और गौर बापीदारों के अधिकार तथा उनके लगान का निर्णय कर दिया गया। इस प्रबन्ध से लगान की आय बढ़ गई। इसके साथ ही बगैर लगान की, शासन आदि में दी हुई, भूमि की भी जांच की गई। इसके बाद लगान-वसूली का काम परगनों के हाकिमों को सौपा गया, परन्तु उनके कागजात का काम हवाले के महकमे के पास ही रहा। इसके इलावा हवाले के काम की सुविधा के लिए खालसे के कुल गांव १६ सर्कलों में बांट दिए गए और उनकी देखभाल के लिए एक-एक दारोगा नियुक्त किया गया। साथ ही हवलदारों की संख्या बढ़ा दी गयी। और हवाले के तमाम अफसरों के काम के और रिकाडाç के लिए अलग-अलग फॉर्म निश्चित कर दिए गए। 

ई० स० १९२३ की शाही सिलवर जुबिली के उत्सव पर दरबार ने करीब ३ लाख रुपये ट्रिब्यूट के और २,२३,५४८ रुपये हवाले के, लगान व तकावी आदि के, माफ कर दिए।

ई० स० १९३६ में दरबार की तरफ से जागीरों और खालसे के गांवों पर लगने वाली टीके आदि की अनेक लगाने भी माफ कर दी गई।

ई० स० १९३० से ही देश में नाज की कीमत गिर रही थी। इससे ई० स० १९३४ में उपर्युक्त नई सेटलमेंट के द्वारा निश्चित किए भूमि के लगान में तीन वर्ष के लिए फी रुपये तीन आने की छूट दी गई, और ई० स० १९३७ (वि० सं० १९९४) में एक वर्ष के लिए यह छूट और भी जारी रखी गई।

२. ट्रिब्यूट
(Tribute) का महकमा

इस महकमे ने भी अच्छी उन्नति की और जागीरदारों की जागीर की आय पर लिए जाने वाले रेख और चाकरी नामक करों का हिसाब साफ रखने के लिए उन्हें बैंकों की सी पासबुक दी गई थीं।

जागीरों से सम्बन्ध रखने वाली वसूली आदि का सारा काम इसी महकमे के द्वारा होता था, क्योंकि रेख, चाकरी, हजूरी दफ्तर, हकूमतों की लाग-बाग और जब्ती का काम भी इसी के अधी कर दिया गया।

३. आबकारी
(Excise) का महकमा

मारवाड़ के अन्य सारे ही प्रान्तों में पहले से ही आबकारी का कानून जारी था, परन्तु मल्लानी परगने के जसोल, सिधरी, गुड़ा और नगर में इसका प्रचार ई० स० १९२०-२१ (वि० सं० १९७७) से किया गया। ई० स० १९२२ (वि० सं० १९९७९) में इस विषय (आबकारी) का नया कानून बना। इसके बाद ई० स० १९२३ (वि० सं० १९८०) में नमक और आबकारी का महकमा शामिल कर दिया गया और ई० स० १९२४ (वि० सं० १९८१) में शराब तैयार करने 
के लिए एक आधुनिक ढंग का कारखाना
(Distillery) बनाया गया।

जोधपुर - दरबार को मिलने वाला नमक पहले नीलाम के जरिये बेचा जाता था। परन्तु ई० स० १९३० (वि० सं० १९८७) से वह ठेके के जरिये बेचा जाने लगा जिससे राज्य को फायदा हुआ। ठेका लेने वाले को प्रत्येक स्थान पर वहां के लिए नियत किए भाव पर ही नमक बेचने का अधिकार होने से जनता को इस प्रबन्ध से किसी प्रकार की असुविधा नहीं हुई।

४. कोर्ट आॅफ वाड्र्स और हैसियत 

ई० स० १९१८ में कोर्ट आॅफ वार्ड् औ हैसियत कोर्ट दोनों एक साथ कर दी गई कोर्ट आॅफ वाड्र्स नाबालिग जागीरदारों की जागीरों का प्रबन्ध करने वाला महकमा था। हैसियत कोर्ट में कर्जदार जागीरदारों की जागीरों का प्रबन्ध किया जाता था। इसके बाद ई० स० १९२२ में कोर्ट आॅफ वाड्र्स एक्ट बनाया गया और इसी के अनुसार उपर्युक्त महकमे के प्रबन्ध में उन्नति की गई।

पहले कोर्ट आॅफ वाड्र्स के सुपरिण्टेण्डेण्ट और उसके सहकारी का वेतर नाबालिगों की जागीरों की अमदनी से दिया जाता था। परन्तु ई० स० १९२५-२६ से वह राज्य से दिया जाने लगा और इससे उक्त महकमे के कर्मचारियों को भी प्रोविडेंट फण्ड का लाभ मिलने लगा।

ई० स० १९२६-२७ में नाबालिगों की शादी के फण्ड का प्रबन्ध किया गया और इस महकमे की और वाल्टर-कृत सभा की आय से गरीब जागीरदारों के नजदीकी रिश्तेदारों की शादियों में सहायता व कर्ज देने का तरीका जारी किया गया।

ई० स० १९३१-३२ में कोर्ट आॅफ वाड्र्स और हैसियत की निगरानी के गांवों की हल्केबंदी की जाकर प्रबन्ध में और भी उन्नति की गई।

पहले अक्सर छोटे-छोटे जागीरदार कर्जदारों से बचने के लिए हैसियत के महकमे की शरण ले लेते थे और उक्त महकमा उनकी जागीर से केवल नियत वार्षिक रुपया वसूल करके कर्जदारों में बांट दिया करता था। परन्तु ई० स० १९२३ में कर्जदार जागीरदारों की जागीरों का कानून बनाया गया और इसके अनुसार इस महकमे के निरीक्षण में आनेवाला जागीरदार आवश्यकतानुसार ३० वर्षों तक के लिए अपनी जागीर के प्रबन्ध से वंचित कर दिया जाने लगा।

५. सहयोग-समिति
(Co-operative Department)

इसकी स्थापना मारवाड़ में सहयोग समितियों का प्रचार कर ग्रामीण वर्ग को आर्थिक सहायता पहुंचाने और उन्हें महाजनों के ॠण से मुक्त करने क उद्देश्य से की गई है।

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न्याय -सचिव (जुडीशल मिनिस्टर) के अधीन महकमें

न्याय विभाग

१. कोर्ट

मारवाड़ राज्य की चीफ कोर्ट में एक चीफ जज और दो प्यूनी जज होते थे। इस अदालत को सिवाय जागीरदारों के जागीर या गोद के मामलों के और सब प्रकार के दीवानी मामलों पर विचार करने का अधिकार था। इसके फैसलों की अपील महाराजा साहअ के सामने उसी अवस्था में हो सकती है जब वे उसके लिए अनुमति प्रदान कर दे। फौजदारी मामलों में इस कोर्ट को कैद तक की सजा देने का अधिकार है, परन्तु फांसी की सजा में महाराजा साहब की अनुमति प्राप्त करना आवश्यक होता है।

२. इजलास खास

पहले अपीलें और अर्जियां महाराजा साहब के प्राइवेट सेक्रेटरी के पास पेश की जाती थी, परन्तु ई० स० १९३३ से इजलास-ए-खास नाम का एक अलग महकमा स्थापित किया गया, जो प्रधान मंत्री के अधीन था। ई० स० १९३६ से इसके कार्य की सुविध के लिए एक लीगल एडवाइज का प्रावधान कर दिया गया।

३. डिस्ट्रिक्ट और सेशन कोर्ट

ई० स० १९२४ में दीवानी और फौजदारी अदालतों और कोर्ट सरदारान के स्थान पर ब्रिटिश-भारत के तरीके पर ३ डिस्ट्रिक्ट और सेशन कोटाç की स्थापना की गई। ई० स० १९३६ 
में इनकी संख्या ४ कर दी गई और इसके बाद जनता के सुविधा के लिए इनमें से एक कोर्ट नागौर भेज दिया गया। इन अदालतों के न्यायाधीशों को सब तरह के दीवानी मामलों के निर्णय करने का अधिकार था। फौजदारी मामले में ये उमर-कैद तक की सजा दे सकते है। परन्तु उस पर चीफ कोर्ट की मंजूरी आवश्यक होती थी।

४. रिवेन्यू कोट्र्स

ई० स० १९२४ में लगान और लागों आदि के मामलों के फैसलों के लिए रिवेन्यू-कोर्ट स्थापन किए गए। यद्यपि वैसे तो उनका कार्य भी हाकिम और जुडीशल सुपरिण्टेण्डेण्ट ही करते थे, तथापि उन मुकदमों की अपील बजाय चीफ कोर्ट के महकमा खास में रिवेन्यू-मिनिस्टर के पास ही होती थी।

५. आॅनररी कोट्र्स

ई० स० १९२४ में जोधपुर नगर में आॅनररी कोटाç की स्थापना की गई और उन्हें फौजदारी मामलों में तीसरे दर्जे के मजिस्ट्रेट के और दीवानी मामलों में १०० रुपये तक के मुकदमों के फैसले के अधिकार दिए गए। इसके बाद ई० स० १९३८ में आॅनररी मैजिस्ट्रेटों की बेंचें मुकर्रर की गईं। इससे अब एक मैजिस्ट्रैट के स्थान पर तीन मैजिस्ट्रेटों का समुदाय अभियोगों का निर्णय करने लगे।

६. स्मॉल कॉज कोर्ट

ई० स० १९३६ में छोटे-छोटे नकद रुपयों के मामलों का शीघ्र फैसला करने के लिए नगर में एक स्मॉल कॉज कोर्ट की स्थापना की गई और उसे ५०० रुपये तक के मुकदमों का फैसला करने का अधिकार दिया गया।

 

जुडीशल सुपरिण्टेण्डेण्ट और हाकिम

ई० स० १९२४ में जो ४ जुडीशल सुपरिण्टेण्डेण्ट थे, उन्हें दीवानी मामलों में २,००० रुपये तक, हाकिमों को ५०० रुपये तक और नायब-हाकिमों को २०० रुपये तक के दावे सुनने का अघिकार था और ये लोग फौजदारी मामलों के लिए क्रमशः फस्र्ट क्लास, सेकिण्ड क्लास और थर्ड क्लास मैजिस्ट्रेट समझे जाते थे।

ई० स० १९३२ में जुडीशल सुपरिण्टेण्डेण्टों को ४,००० और हाकिमों को १,००० रुपयों तक के दावे सुनने के इख्तियार दिए गए। इसी प्रकार फौजदारी मामलों में ये लोग क्रमशः डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट और फस्र्ट क्लास मैजिस्ट्रेट कर दिये गये।

ई० स० १९३६ में जुडीशल सुपरिण्टेण्डेण्टों को क्रिमिनल प्रोसी कोड की ३० वीं धारा के अधिकार भी दे दिये गये।

स्मॉल कॉज कोर्ट के जज, नगर-कोतवाल, रजिस्ट्रार-चीफ कोर्ट और सैक्रेटरी-म्यूनिसिपल कमेटी का दर्जा भी जुडीशल सुपरिण्टैण्डैण्टों के समान ही कर दिया गया है।

अदालतों के अधिकार  

ई० स० १९३२ से जागीरों के और जागीरदारों के गोद के मुकदमों का निर्णय इंतिजामी सींगे से होता था। इसी प्रकार ई० स० १९३३ से राजकीय कार्य के संपादन के कारण होने वाले राज-कर्मचारियों पर के दीवानी और फौजदारी दावों को स्वीकृत करने के पूर्व राज्य की आज्ञा ले लेना आवश्यक कर दिया गया।

कानून

ई० स० १९२७ में पहले - पहल कानून तैयार करने के लिए एक कमेटी बनाई गई थी। इसके बाद ई० स० १९३६ में लीगल रिमैबरैन्सर का दफ्तर कायम किया गया और १९३८ में कानून तैयार करने वाली कमेटी में राजकर्मचारियों के अलावा बार एसोसियेशन के और जागीरदारों और व्यापारियों के प्रतिनिधि भी सम्मिलित किए गए।

बार

ई० स० १९३३ से वकीलों के लिए बने कानून में सुधार किया गया। बार के नियम ब्रिटिश - भारत से मिलते हुए ही थे और उसके मेम्बर केवल लॉ ग्रेजुएट ही हो सकते थे।

लॉ रिपोट्र्स

ई० स० १९२९ से मारवाड़-लॉ रिपोट्र्स का प्रकाशन प्रारम्भ किया गया था। यह पहले सालाना निकलती थी। परन्तु ई० स० १९३७ से यह मासिक निकाली जाने लगी।

शिक्षा - विभाग
(Education Department)

ई० स० १९२३ (वि० सं० १९८०) में राजकीय काउंसिल ने प्राथमिक शिक्षा की वृद्धि का प्रस्ताव अंगीकार कर उसकी तरफ और भी अधिक ध्यान देना शुरु किया।

ई० स० १९२५ (वि० सं० १९८२) में मारवाड़ मिडल स्कूल परीक्षा कायम की गई, और ई० स० १९३५-३६ (वि० सं० १९९२) में इसे विशेष उपयोगी बनाने के लिए इसमें बैठनेवाले विद्यार्थियों के लिए बढ़ई का काम, दरजी का काम, ड्राइंग (नक्काशी) का काम, चमड़े का काम, जिल्दसाजी का काम, खेती का काम, स्वास्थ्य-रक्षा का काम और स्वयं सेवकी का काम जैसे उपयोगी विषयों में से किसी एक का जानना आवश्यक कर दिया गया।

इन स्कूलों में विद्यार्थियों की स्वास्थ्य-रक्षा पर भी पूरा ध्यान रखा जाता था और इसी से उनक अपने-अपने स्कूल में होने वाले नित्य के खेलों आदि में भाग लेना आवश्यक कर दिया गया। विद्याथिर्यों में स्वयं-सेवक बनने का भी प्रचार किया जाता है और उनकी संस्था के प्रधान का पद स्वयं जोधपुर-नरेश ने कृपाकर अंगीकार किया है।

म्यूनिसिपल कमेटी (नागरिक प्रबन्ध का महकमा)

यह महकमा पहले-पहल ई० स० १८८४ में कायम हुआ था और ई० स० १९१८ में नगर की सफाई के लिए एक हेल्थ आॅफीसर नियुक्त किया गया। इसके बाद ई० स० १९३७ में पहले-पहल जातियों की तरफ से दिए हुए कुछ नामों में से चुनकर इसके मेम्बर बनाने का नियम बनाया गया।

यह महकमा नगर में सफाई, पानी रौशनी और नए बननेवाले घरों का समुचित प्रबन्ध करता था। इसके सतत् परिश्रम से इन विभागों में अच्छी उन्नति हुई।

ई० स० १९२८ से नगर में बढ़ती हुई गलियों की संकीर्णता को रोकने के लिए जमीन के नए पट्टे इस महकमे की राय लेकर दिए जाने का नियम बना दिया गया है। म्यूनिसिपैलिटी के प्रबन्ध को और उन्नत करने के लिए दरबार की तरफ से एक कमेटी भी बिठाई गई।

नगर - म्यूनिसिपैलिटी के अलावा परगनों में भी कुछ म्यूनिसिपैलिटियां थी। उनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:

फलोदी, डीडवाना, बालोतरा, बाहडमेर, भीनमाल और लाडनू की म्यूनिसिपैलिटियां अपना खर्चे स्वयं चलाती थी। नागोर, जालोर और पाली की म्यूनिसिपैलिटियों को राज्य से मदद दी जाती थी। बाली, सोजत और मेड़ता की म्यूनिसिपैलिटियां अभी केवल सफाई का काम ही करती हैं।

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सेना -मंत्री (मिलिटरी सैक्रेटरी) के अधीन के महकमे

सेना विभाग

जोधपुर का सेना विभाग भी बराबर उन्नति करता रहा। इसने यहां के सरदार-रिसाले और सरार इनफैन्ट्री (पैदल सेना) का ब्रिटिश - भारत की सेनाओं के समान सुसज्जित और सुशिक्षित बनाने की पूरी-पूरी चेष्टा की गई। इसी सिलसिले में रिसाले और पलटन के सैनिकों के वेतन में वृद्धि की जाने के साथ ही उनकी पैन्शन आदि के नियमों में भी उचित परिवर्तन किए गए हैं, उनके रहने के स्थान आदि नए ढंग के बनवाए गए हैं और फौजी पशु-चिकित्सालय की भी अच्छी उन्नति की गई है।

राजकीय रिसाले और पैदल- सेना के पेंशन प्राप्त योग्य सैनिकों की एक दुर्ग रक्षक टुकड़ी तैयार की गई जिसे जोधपुर के किले पर पहरे का काम सौप दिया गया।

पहले खास तौर पर नियुक्त किए ब्रिटिश-सेना के अफसर ही दौरे के समय राजकीय सैन्य-विभाग की जांच किया करते थे। परन्तु ई० स० १९३६ के मार्च (वि० सं० १९९२ के फागुन) से जोधपुर-दरबार ने अपना सैनिक मंत्री नियुक्त कर लिया और इससे सैनिक कार्य में अच्छी उन्नति हुई।

 

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