राम कथा की विदेश-यात्रा

Ram Katha Ki Videsh Yatra

  1. रामायण का अर्थ राम का यात्रा पथ
  2. रामायण के घटना स्थलों का विदेश में स्थानीकरण
  3. शिलालेखों से झांकती राम कथा
  4. शिला चित्रों में रुपादित रामायण
  5. भित्तियो पर उरेही गयी रामचरित-चित्रावली
  6. रामलीला: कितने रंग, कितने रुप
  7. रामकथा का विदेश भ्रमण
  8. इंडोनेशिया की रामकथा: रामायण का कावीन
  9. कंपूचिया की राम कथा: रामकेर्ति
  10. थाईलैंड की राम कथा: रामकियेन
  11. लाओस की रामकथा: राम जातक
  12. बर्मा की राम कथा और रामवत्थु
  13. मलयेशिया की राम कथा और हिकायत सेरी राम
  14. फिलिपींस की राम कथा: महालादिया लावन
  15. तिब्बत की राम कथा
  16. चीन की राम कथा
  17. खोतानी राम कथा
  18. मंगोलिया की राम कथा
  19. जापान की राम कथा
  20. श्रीलंका की राम कथा
  21. नेपाल की राम कथा: भानुभक्त कृत रामायण
  22. यात्रा की अनंतता

फिलिपींस की राम कथा: महालादिया लावन

इंडोनेशिया और मलयेशिया की तरह फिलिपींस के इस्लामीकरण के बाद वहाँ की राम कथा को नये रुप रंग में प्रस्तुत किया गया। ऐसी भी संभावना है कि इसे बौद्ध और जैनियों की तरह जानबूझ कर विकृत किया गया। डॉ. जॉन आर. फ्रुैंसिस्को ने फिलिपींस की मारनव भाषा में संकलित इक विकृत रामकथा की खोज की है जिसका नाम मसलादिया लाबन है। इसकी कथावस्तु पर सीता के स्वयंवर, विवाह, अपहरण, अन्वेषण और उद्धार की छाप स्पष्ट रुप से दृष्टिगत होता है।

महरादिया लावन बंदियार मसिर के सुल्तान का पुत्र है। उसके कुचक्र से बहुत लोगों की जान चली गयी। इसलिए सुल्तान उसे निर्वासित कर पुलूनगर द्वीप पर भेज दिया। वहाँ उसने उस वृश्र में आग लगा दी जिससे पृथ्वी बंधी हुई थी। देवदूत गैब्रियस के कहने पर तुहेन (ईश्वर) ने उसे अपना बलिदान करने से रोका और उसे वर दिया कि उसकी मृत्यु केवल उसके राजभवन में रखे काष्ट पर तीक्ष्ण किये अस्र से होगी।

आगम नियोग के सुल्तान को मंगंदिरी और मंगवर्ग नामक दो पुत्र थे। दोनों भाईयों को पुलूनवंदै के सुल्तान की पुत्री मलैला के अनुपम सौंदर्य की जानकारी मिली। वे लोग उसकी तलाश में समुद्र यात्रा पर निकल पड़े। रास्ते में उनका जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो गया। संयोगवश दोनों भाई पुलूनवंदै के किनारे लग गये। एक बूढ़ी औरत उन्हें उठाकर अपने घर ले गयी। होश में आने पर उन्हें संगीत की मधुर ध्वनि सुनाई पड़ी। बूढ़ी औरत का नाम कबैयन था। उससे उन्हें मलैला के स्वयंवर की जानकारी मिली।

राजकुमारी के स्वयंवर की शर्त के अनुसार जो कोई बेंत की बोंद को राजकुमीरी के कक्ष में फेकने में सफल होता, उसी से उसका विवाह होना था। दोनों भाईयों ने उस परीक्षा में भाग लिया, किंतु सफलता बड़े भाई को मिली। जब गेंद राजकुमारी के कक्ष में पहुँच गयी, तब उसने गेंद के साथ अपना रुमाल, सुपारी दान और अंगूठी नीचे गिरा दी। राजकुमार ने रुमाल, सुपारी दान और अंगूठी को अपने पास रख लिया और सुपारी को वहीं छितारा दिया।

दोनों राजकुमारों के चले जाने पर अन्य प्रत्याक्षी अपनी-अपनी जीत की घोषणा करने लगे, किंतु सुल्तान यह जानना चाहता था कि उसकी पुत्री की अंगूठी किसके पास गयी। वह कबैयन के घर गया जहाँ उसे मंगंदिरी के पास तीनों चीजे मिली। कुछ अन्य शताç को पूरा करने पर मंगंदिरी और मलैला का विवाह हो गया।

विवाहोपरांत दोनों भाई मलैला के साथ घर चल पड़े, किंतु रास्ते में ही एक रमणीक स्थल पर घर बनाकर रहने लगे। उसी ग्राम्य परिवेश में राजकुमारी ने एक दिन स्वर्ण श्रृंगों वाले हिरण को देखा। उसने अपने पति से उसे पकड़ने के लिए कहा। राजकुमारी की सुरक्षा का भार अपने अनुज को सौंपकर मंगंदिरी यह कहकर निकल पड़ा कि यदि वह स्वयं भी उसे सहायता के लिए पुकारे, तो भी वह वहाँ से नहीं हटे। उसके जाने के बाद राजकुमारी ने अपने पति की आवाज़ सुनी। उसने मंगवर्ण को अपने अग्रज की सहायता हेतु शीघ्र जाने को कहा। उसके मना करने पर वह बहुत उग्र हो गयी। मजबूर होकर मंगवर्ण को जाना पड़ा, किंतु जाते समय उसने मलैला को खिड़की बंद रखने के लिए कहा और खटखटाने पर भी उसे खोलने की मनाही की।

मंगवर्न के पहुँचते ही एक ही रंग के दो हिरण दिखाई पड़ने लगे। दोनों हिरण दो दिशाओं में भाग चले। दोनों भाई अलग-अलग दिशा में उनका पीछा करने लगे। निष्फल प्रयत्न के बाद छोटा भाई पहले अपने निवास पर पहुँचा। उसने देखा कि घर की दीवार टूटी हुई है और राजकुमारी गायब है। पड़ोसियों से पता चला कि महारादिया लावन ने मलैला का अपहरण कर लिया।

लावन के राजभवन पहुँचने पर दोनों भाईयों ने देखा कि लावन के निकट पहुँचते ही मलैला के चारों तरफ आग की लपटें सुरक्ष-वलय का रुप धारण कर लेती हैं।१ यहाँ यह उल्लेखनीय है कि मलैला की खोज-यात्रा में उनकी भेंट लक्ष्मण नामक बंदर से हुई जो हनुमान की भूमिका निभाने लगा। युद्ध आरंभ होने पर लावन बारी-बारी से दोनों भाईयों से युद्ध करने लगा। वह युद्ध में किसी प्रकार घायल नहीं होता था, क्योंकि उसका वध उसके राजभवन में रखे लकड़ी के टुकड़े पर तीक्ष्ण किये गये अस्र से ही होना था। लक्ष्मण मंदंगिरी के अस्र को लेकर लावन के राजभवन में प्रवेश कर गया और उसने वहाँ लकड़ी पर रगड़कर उसे तीक्ष्ण कर दिया। मंदंगिरी ने उसी अस्र से लावन पर प्रहार किया जिससे उसकी मृत्यु हो गई।

युद्ध समाप्त होने पर लक्ष्मण के आदेश से एक घड़ियाल मलैला के साथ दोनों भाईयों को पीठ पर चढ़ा कर आगम नियोग चल पड़ा। लक्ष्मण उनके साथ गया। आगम नियोग पहुँचने पर एक भव्य समारोह हुआ। इस अवसर पर लक्ष्मण सुंदर राजकुमार के रुप में परिवर्तित हो गया।२ चारों ओर उल्लास छा गया।



1. Francisco, Dr. Jnan R., The Ramayana in Philippines, The Ramayana Tradition in Asia, PP.163-64
2. Ibid, PP.167


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