रुहेलखण्ड

Rohilkhand


मुस्लिम धार्मिक स्थल

रुहेलखण्ड क्षेत्र में ऐसे अनेक मुस्लिम धार्मिक स्थल देखने को मिलते हैं , जिनके प्रति मुस्लिम तथा अन्य समप्रदाय के लोगों में गहरी आस्था है।इनमें से प्रत्येक स्थल की पृथक विशेषताएँ हैं, जो उस स्थल को अन्य स्थलों से अलग करती हैं। इन धार्मिक स्थलों में अग्रलिखित विशेष रुप से उल्लेखनीय हैं --

i ) मजारे आला हजरत (बरेली)
ii ) हज़रत जमाल उल्लाह कादरी का मज़ार शरीफ (रामपुर)
iii ) हज़रत शाह महबूबे इलाही का मज़ार शरीफ (रामपुर)
iv ) हज़रत अब्दुल्लाह शाह बगदादी का मज़ार शरीफ (रामपुर)
v ) हज़रत शाह बुलाकी साहब की ज़ारत (मुरादाबाद)
vi ) हज़रत सुल्तान आफरीन साहब (बड़े सरकार) की ज़ारत (बदायूँ)
vii ) हज़रत बदरुद्दीन शाह (छोटे सरकार) की ज़ारत (बदायूँ)
viii ) ख़ानकाहे आलिया नियाज़िया (बरेली)
xi ) जामा मस्जिद (रामपुर)
x ) शाही जामा मस्जिद (पीलीभीत)
xi ) बारा बुजी मस्जिद (आॅवला जिला बरेली)

i ) मजारे आला हजरत (बरेली)

आला हज़रत बरेली नगर में हुए ऐसे व्यक्तित्व का नाम है ,जिसने ज्ञान और विद्वता का प्रकाश चारों ओर बिखेरा । लोकमान्यता के अनुसार आला हज़रत का ज्ञान रुपी दिव्य प्रकाश प्रत्यक्ष रुप से ईश्वर से प्राप्त हुआ था। आला हज़रत की पैदाइश 14 जून 1856 को बरेली के मुहल्ला जिसौली में हुई थी। बचपन से ही वह कुदरती ज्ञान से युक्त थे । आपने चार वर्ष की आयु में ही कुरान मज़ीद नाज़िरा का अध्ययन पूर्ण कर लिया था । तेरह वर्ष की आयु में आला हज़रत ने अपनी शिक्षा पूर्ण की और दस्तीर फ़जीलत से नवाजे गए। आला हज़रत के बारे में यह कहा जाता है कि अल्लाह ताला ने अपने फज़ल से आपका सीना दुनिया के हर उलूम से भर दिया था। इन्होंने हर विषय पर किताबें लिखीं , जिनकी संख्या हजारों में हैं । आला हज़रत ने अपनी सम्पूर्ण जिंदगी बेवाओं और जरुरत मंदों की सेवा में व्यतीत की। आपके सारे कार्य सिर्फ अल्लाहताला के लिए थे। आपको किसी की तारीफ़ से कोई लेना- देना नहीं था। आपने दो बार (सन् 1878 ई० तथा 1906 में) हज की यात्रा की।

आला हज़रत की मज़ार शरीफ के ऊपर निर्मित गुम्बद (बरेली) 

अपनी शिक्षाओं और उच्च विचारों के कारण आला हज़रत न केवल भारतवर्ष अपितु दूसरे देशओं में भी लोकप्रिय होने लगे। धीरे- धीरे आला हज़रत साहब के शिष्यों ओर अनुयायियों की संख्या बढ़ती जा रही थी। आपके शिष्यों में हज़रत मौलाना हसन रज़ा खाँ हज़रत मौलाना मुहम्मद रज़ा खाँ , मौलाना हामिद रज़ा खाँ, मौलाना सैय्यद अहमद, अशरफ कछौछवी, मौलाना सैय्यद जफरुद्दीन आदि केनाम प्रमुख हैं। अक्टूबर सन् 1921 में आला हज़रत ने इस दुनिया से विदा ली। लेकिन वह दुनिया के लिए ईमान और धर्म का सन्देश देकर गए, जो आज तक लोगों के हृदय में प्रकाशवन है। आपने आम आदमी के लिए सन्देश दिया था -

"ऐ लोगों तुम प्यारे मुस्तफा के भोले भेड़े हो। तुम्हारे चारों ओर भेड़िए हैं। वह चाहते हैं कि तुम्हें बहकाएं । तुम्हे फ़ितना में डाल दें। तुम्हें अपने साथ जहन्न्म में ले जाएं। इनसे बचो और दूर भागो। ये भेड़िए तुम्हारे ईमान की ताक में हैं। इनके हमलों से अपने ईमान को बचाओ। "

आला हज़रत में बहुत सारी खूबियां एक साथ थीं। आप एक ही वक्त में मफुस्सिर, मोहद्दिस, मुफ्ती, कारी, हाफिज़, शायर ,मुसननिफ ,अदीब, आलिम ,फाजिल, शैखतरीकत और मजुददि शरीयत थे। आला हज़रत में घमण्ड नाम की कोई चीज़ नहीं थी। यह आला हज़रत की बेमिसाल कोशिशों का नतीजा है कि आज सुन्नी आक़ाएद पर यकीन रखने वाले लोग सिर्फ बरेली में ही नहीं वरन् तमाम दुनिया में मौजूद हैं।

आला हज़रत का मज़ार शरीफ बरेली स्थित मोहल्ला सौदागरन की एक विशाल और सुन्दर इमारत में है। यह इमारत भव्य गुम्बदों और नक्काशी के कारण अत्यन्त सुन्दर और मनोहर प्रतीत होती है। आलाहजरत की मज़ार पर हिन्दू और मुसलमान समान रुप से इबादत करने आते हैं। लोगों की मान्यता है कि आला हज़रत साहब की आत्मा अमर है और इनकी मज़ार पर शीश नवाने से मुरादें पूर्ण होने के साथ -साथ हृदय में ज्ञान का प्रकाश जागृत होता है।

ii ) हज़रत जमाल उल्लाह कादरी का मज़ार शरीफ (रामपुर)

हज़रत हाफिज़ सैय्यद शाह ज़माल उल्लाह कादरी का जन्म लगभग 300 वर्ष पूर्व पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के गूजरवाला जिला में हुआ था।
रामपुर के नवाब फैजुल्ला खाँ इनके मुरीद थे। हज़रत साहब पहले नवाब फैजुल्ला खाँ की सेना में कार्यरत थे। हज़रत साहब स्वभाव से अत्यन्त विनम्र थे। आपके रहने का ढ़ंग सादगी से परिपूर्ण था। हज़रत साहब की दयालु प्रवृति को इस दृष्टान्त से ही समझा जा सकता है कि फौज में काम करने के बदले में प्राप्त वेतन को यह गरीबों में बाँट देते थे। हज़रत हाफिज सैय्यद शाह ने अपने जीवन के दौरान कभी भी हिन्दू और मुसलमानों में भेद नहीं माना । ये हिन्दू मुस्लिम एकता के पक्षधर थे। इनके बारे में लोक मान्यता है कि इन्हें विशेष ईश्वरीय शक्ति प्राप्त थी । एक लोक मान्यता के अनुसार --

"एक बार हज़रत सैय्यद शाह जमाल साहब कहीं जा रहे थे। कुछ शरारती लोगों ने हज़रत साहब को परेशान करने की योजना बनाई। योजना के अनुसार उन लोगों में से एक व्यक्ति धरती पर मृतक के समान लेट गया। उन लोगों ने मृतक समान लेटे हुए व्यक्ति के निकट बैठकर अल्लाह की इबादत करने हेतु हज़रत साहब से आग्रह किया। हज़रत साहब ने उन लोगों से पूछा कि मैं जिन्दा व्यक्ति के लिए इबादत कर्रूँ अथवा मृत व्यक्ति के लिए ? इस पर वह लोग बोले कि हमारा साथी मृत है , आप मृत व्यक्ति के लिए इबादत करें। यह सुनकर हज़रत साहब ने अल्लाह की इबादत की। इबादत के समाप्त होते ही मृतक के समान लेटा हुआ व्यक्ति वास्तव में मृत हो गया "।

हज़रत हाफिज सैय्यद शाह कादरी के जीवन के सम्बन्धित ऐसी अनेक कथाएं हैं जो उनकी दिव्यता को प्रमाणित करती है। हज़रत साहब की मजार रामपुर नगर में एक अत्यन्त खूबसूरत इमारत में स्थित है। इस जारत पर इबादत करने वालों में हिन्दू और मुसलमान दोनों समान रुप से आते हैं। लोगों की मान्यता है कि यहाँ माँगी गई हर मन्नत पूरी होती है। यदि सच्चे दिल से हज़रत साहब की ज़ारत पर सिर नवाया जाए, तो हर तकलीफ का अन्त होता है।

iii ) हज़रत शाह महबूबे इलाही का मज़ार शरीफ (रामपुर)

हज़रत शाह महबूबे इलाही, हज़रत हाफिज सैय्यद शाह कादरी के शिष्य थे। हज़रत शाह महबूबे इलाही ने भी लोगों को हिन्हू मुस्लिम एकता का संदेश दिया था।इनकी मज़ार रामपुर नगर में एक खूबसूरत इमारत के भीतर स्थित है। लोगों की मान्यता है कि यहाँ सच्चे दिल से माँगी हर मुराद पूर्ण होती है।लोक मान्यता है कि हज़रत शाह महबूबे इलाही की आत्मा अमर है और वह गरीब, आवश्यकतामन्द तथा तकलीफ से ग्रसित लोगों की फरियाद अवश्य सुनते हैं।

हज़रत शाह दरगाह महबूबे - इलाही मजार (रामपुर)

iv ) हज़रत अब्दुल्लाह शाह बगदादी का मज़ार शरीफ (रामपुर)

रामपुर नगर में लगभग 200 वर्ष पूर्व हज़रत अब्दुल्लाह शाह बगदादी नामक महापुरुष हुए। यह दिव्य शक्ति से युक्त थे तथा इन्होंने भी सदैव हिन्दू मुस्लिम एकता पर बल दिला। रामपुर नगर में स्थित इनकी ज़ारत पर बड़ी संख्या में लोग आते हैं। इन लोगों में हिन्हू तथा मुस्लिम दोनों ही सम्प्रदाय के लोग सम्मिलित होते हैं।

v ) हज़रत शाह बुलाकी साहब की ज़ारत (मुरादाबाद)

हज़रत शाह बुलाकी साहब का जन्म 1042 हिज़री संवत् में स्योहारा (जिला बिजनौर) में हुआ था। हज़रत साहब बचपन से ही बहुत प्रतिभाशाली थे। मदरसे में वह सदैव अपने सहपाठियों से अलग रहा करते थे। इनके सहपाठी इनको दीवाना और पागल कहकर चिढ़ाते थे। मदरसे में जब उनके उस्ताद ने जब इनसे विस्मिल्लाह शब्द बोलने को कहा , तब शाह बुलाकी साहब ने विस्मिल्लाह शब्द की व्याख्या अपने तरीके से की। इस पर उस्ताद चकित रह गए और उन्होंने समझ लिया कि यह बालक अत्यन्त असाधारण है तथा भविष्य में यह लोगों में ज्ञान का प्रकाश बिखेरेगा । हज़रत साहब ने मात्र सात वर्ष की आयु में कुरान का अध्ययन पूर्ण कर लिया था। आपको इस आयु में कुरान पूरा जुबानी याद था। शाह बुलाकी साहब को अपाहिजों , बेवाओं तथा निर्धनों की सहायता करने में बहुत संतुष्टि मिलती थी।

हज़रत शाह बुलाकी साहब की ज्यारत (मुरादाबाद)

वह अपनी आत्मिक शान्ति के लिए अपाहिजों , बेवाओं तथा निर्धनों के घरों में सफाई इत्यादि का कार्य किया करते थे। जब साथ के लोगों ने इनका विरोध किया , तब यह मुरादाबाद आकर रहने लगे। उन्होंने मुरादाबाद में एक मस्जिद का निर्माण कराया (मोहल्ला चक्कर का मिलाक में)। आज भी इसी मस्जिद के निकट हज़रत शाह बुलाकी साहब की ज़ारत मौजूद है।

vi ) हज़रत सुल्तान आफरीन साहब (बड़े सरकार) की ज़ारत (बदायूँ)

हज़रत सुल्तान आरफीन साहब का जन्म 1215 ई० में यमन में हुआ था। यह अरब के शाही शानदान से संबंधित थे। बचपन से ही इनकी रुचि धार्मिक विषयों में अधिक थी। उम्र बढ़ने के साथ - साथ धार्मिक क्षेत्र में हज़रत साहब की रुचि बढ़ती गई जिसका परिणाम यह हुआ कि उन्होंने घर त्याग दिया और फकीर का जीवन व्यतीत करने लगे। बाद में हज़रत साहब अरब से हिन्दुस्तान रवाना हुए और यहाँ आकर उन्होंने बदायूँ के निकट एक सूनसान स्थान पर रहना प्रारम्भ किया । लोक कहावत के अनुसार फ़कीर होने के उपरान्त हज़रत साहब में विशिष्ट प्रकार की दिव्य शक्ति विकसित हुई । इस दिव्य शक्ति के बल पर हज़रत साहब विभिन्न रोगों से ग्रसित मरीजों का इलाज करने लगे। शनै: शनै: उनके पास आने वाले मरीजों की संख्या में तीव्र गति से वृद्धि होने लगी।

बड़े सरकार की मज़ार शरीफ (बदायूँ)

लोकप्रियता के इस क्रम में लोग उन्हें बड़े सरकार के नाम से सम्भोधित करने लगे। बड़े सरकार के बारे में एक लोक मान्यता अत्यन्त प्रसिद्ध है। इसके अनुसार -- "एक बार एक ऐसा मरीज बड़े सरकार के पास आया , जिसका आधा जि पत्थर का हो गया था। बड़े सरकार ने उस मरीज के शरीर पर दृष्टि डाली। देखते ही देखते उसके शरीर का पत्थर मोम की तरह पिघलकर बह गया और वह मरीज दुरुस्त होकर वापस अपने घर चला गया।"बड़े सरकार का कहना था कि यदि कोई मरीज तीन दिनों में उनके इलाज से दुरुस्त नहीं होता, तो लोग उन्हें जिन्दा ही कब्र में दफन कर सकते हैं।

वर्तमान में बड़े सरकार की मज़ार बदायूँ में उसी स्थान पर मौजूद है जहाँ वह रहते थे और जहाँ बाद में उन्हें दफन किया गया था। आज के इस वैज्ञानिक युग में भी लोगों में यह धारणा अत्यन्त प्रबल है कि बड़े सरकार की ज़ारत पर इबादत करने वाले की बड़े और असाध्य रोगों के रोगी भी ठीक हो जाते हैं। यहाँ देश - विदेश से हजारों की संख्या में मरीज आते हैं और स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करते हैं।यहाँ आने वाले मरीजों में दिमागी मरीजो की संख्या ज्यादा होती है। इसके अतिरिक्त ऐसे व्यक्ति भी अपने इलाज के लिए यहाँ आते हैं दिन पर बुरी हवाओं का असर होता है । इस प्रकार के रोगियों का इलाज 40 दिन तक लगातार चलता है। इलाज की प्रक्रिया में मरीज को बड़े सरकार की मजार शरीफ से स्पर्श कराया जाता है। विभिन्न रोगों से ग्रस्त रोगी बड़े सरकार की ज़ारत के प्रांगण में बने स्थाई तथा अस्थाई आवासों में नि:शुल्क रहते हैं।पूर्णतया स्वस्थ हो जाने के उपरान्त यह रोगी अपने घरों को वापस चले जाते हैं।

vii ) हज़रत बदरुद्दीन शाह (छोटे सरकार) की ज़ारत (बदायूँ)

हज़रत बदरुद्दीन बड़े सरकार के छोटे भाई थे। इनको छोटे सरकार के नाम से प्रसिद्धि मिली। यह सुल्तान उल आरफीन के शिष्य थे। छोटे सरकार की रुचि भी बचपन से धार्मिक विषयों में थी। बड़े होकर यह भी अरब छोड़कर अपने भाई के भांति बदायूँ के निकट एक शान्त क्षेत्र में निवास करने लगे। छोटे सरकार को भी विशिष्ट दिव्य शक्ति प्राप्त थी। इन दिव्य शक्तियों के बारे में तरह- तरह की मान्यताएं प्रचलित है। एक मान्यता के अनुसार -- "एक बार चार व्यक्ति छोटे सरकार के पास आए और अपने गुरु से प्राप्त सोना उनको दिखाया जो उन्हें गुरु की सेवा करने के बदले में मिला था। छोटे सरकार ने उस सोने को कुँए में फेंक दिया। अब छोटे सरकार ने उन चारों व्यक्तियों को आदेश दिया कि वे बाल्टियों में उस कुएं का पानी भरकर लाएं। उन चारों ने ऐसा ही किया। अब छोटे सरकार ने अपनी दिव्य शक्ति का प्रयोग करते हुए चारों बाल्टियों में भरे पानी को सोने में परिवर्तित कर दिया । वे चारों व्यक्ति अत्यन्त प्रसन्न हुए और अपने घरों को लौट गए।"

छोटे सरकार की मज़ार शरीफ (बदायूँ)

छोटे सरकार की मृत्यु के पश्चात् उनके अनुयायियों ने उनकी मज़ार शरीफ का निर्माण कराया जो बदायूँ नगर के समीप स्थित है।एक मान्यता को अनुसार छोटे सरकार की मज़ार पर मुगल बादशाह अकबर भी आया था। अकबर ने यहाँ पुत्र प्राप्ति की मन्नत माँगी थी। यह मन्नत पूर्ण हुई और उसके यहाँ सलीम का जन्म हुआ। अकबर ने प्रसन्न होकर 700 बीघा जमान छोटे सरकार की दरगाह के नाम कर दी। आज भी देश विदेश से असंख्य लोग छोटे सरकार की दरगाह पर आते हैं और मनोकामनाएं माँगते हैं।इसके अतिरिक्त छोटे सरकार की दरगाह पर भी विभिन्न रोगों से ग्रसित रोगी अपने इलाज़ के लिए आते हैं । यहाँ मानसिक बीमारियों से ग्रस्त लोगों को विशेष लाभ मिलता है। छोटे सरकार की जारत पर बुरी हवाओं के प्रभाव से ग्रस्त लोग भी अपने इलाज के लिए आते हैं।

छोटे सरकार की ज़ारत पर इलाज कराने आये लोग (बदायूँ)

viii ) ख़ानकाहे आलिया नियाज़िया (बरेली)

खानकाहे आलिया नियाजिया चिश्तिया सिलसिले की एक अहम शाखा है। इस संस्था के पूर्ववर्ती सरकारों के बारे में यह मान्यता है कि वे सभी महान सूफी ख्वाज़ा गरीब नवाज़ अजमेरी के रुहानी उत्तराधिकारी थे। बरेली स्थित इस संस्था के संस्थापक कुतुबे आलम मदारे आज़म नियाज़ वेनियाज़ हज़रत शाह नियाज़ अहमद साहब थे। वह लगभग 275 वर्ष पूर्व बुखारा (पाकिस्तान) से अपने परिवार के सदस्यों के साथ बरेली आए थे। उन्होंने बरेली में सूफीवाद की शिक्षाओं का प्रचार - प्रसार किया।धीरे -धीरे उनकी शिक्षाएं देश -विदेश में फैलने लगी। हज़रत साहब मानवता और साम्प्रदायिक एकता के प्रबल समर्थक थे। वे न केवल धार्मिक विषयों के ज्ञाता थे , बल्कि उच्च कोटि के कवि और विभिन्न भाषाओं के ज्ञाता भी थे।

खानकाहे आलिया नियाजिया (बरेली)

कुतुबे आलम मदारे आज़म नियाज़ वेनियाज़ हज़रत शाह नियाज़ अहमद साहब की विद्वता का अनुमान एक दृष्टान्त से लगाया जा सकता है। 12 वर्ष की आयु में शिक्षा पूर्ण होने के उपरान्त जब आपको शिक्षा की उपाधि दी जाने लगी , जब आपने वह डिग्री लेने से मना कर दिया। हज़रत साहब ने कहा कि जब तक समस्त ज्ञानी बुजुर्ग मेरी परीक्षा नहीं लेते , तब तक मैं डिग्री स्वीकार नहीं कर्रूँगा। उनके ऐसा कहने पर विद्वान बुजुर्गों ने उनसे अत्यन्त गूढ़ प्रश्न पूछे । हज़रत शाह नियाज़ अहमद साहब ने सभी प्रश्नों का उत्तर अत्यन्त सहजता के साथ दिया। बुजुर्गों की सन्तुष्टि के उपरान्त ही आपने डिग्री स्वीकार की।

वर्तमान में हज़रत अहमद साहब की मज़ार बरेली के मोहल्ला ख्वाजा कुतुब में स्थित है। लोगों की मान्यता है कि हज़रत साहब की आत्मा अमर है और उनकी मज़ार पर इबादत करने से समस्त कष्टों से मुक्ति मिलती है। आपके मज़ार के बारे में एक आश्चर्यजनक लोक मान्यता यह है कि यहाँ आकर इबादत करने पर सपं , बिच्छू तथा अन्य विषैले जानवरों के काटने का असर स्वत: ही समाप्त हो जाता है। वर्तमान में प्रतिदिन इस तरह के असंख्य लोग आपकी मज़ार पर आते हैं। जिन्हें सपं या बिच्छू ने डसा है। आपकी मज़ार पर न केवल हिन्दुस्तान वरन् संसार के विभिन्न देशों से लोग आते हैं और इबादत करते हैं।

मुस्लिम धर्म में सूफीवाद ही एक ऐसी शाखा है जिसमें संगीत को रुहानी शुद्धी के माध्यम के रुप में अपनाया जाता है। कुतुबे आलम मदारे आज़म नियाज़ वेनियाज़ हज़रत शाह नियाज़ अहमद साहब की दरगाह पर प्रतिवर्ष (मार्च और नवम्बर माह में) भव्य संगीत सम्मोलनों का आयोजन किया जाता है। इन सम्मेलनों में शास्रीय संगीत की जानी - मानी हस्तियां शरीक होती हैं । अब तक लगभग 142 संगीतज्ञ यहाँ आ चुके हैं। इन संगीत सम्मेलनों में हज़ारों श्रोता रुहानी सुकून प्राप्त करते हैं।

ix ) जामा मस्जिद (रामपुर)

रामपुर नगर में स्थित जामा मस्जिद खुदा की इबादत के लिए एक अत्यन्त पवित्र एवं प्रसिद्ध स्थल है। इस मस्जिद का निर्माण 1180 हिज़री संवत् 1176 ई०) में रामपुर के नवाब फैजउल्लाह खाँ ने करवाया था। कालान्तर में नवाब कल्वेअली खाँ ने 1297 हिज़री संवत् (1874 ई०)में इस मस्जिद का जीर्णोद्धार करवाया । इसके बाद 1331 हिज़री संवत् (1913 ई०) में पुन: इस मस्जिद का जीर्णोद्धार करवाया गया , जिसका श्रेय तत्कालीन नवाब हामिद अली खाँ को जाता है।

यह मस्जिद एक ऊँचे धरातल पर अत्यन्त बड़े प्रांगण में स्थित हैं।मस्जिद की मुख्य इमारत के ऊपर तीन विशाल गुम्बद तथा चार मीनारें अवस्थित हैं।

जामा मस्जिदः रामपुर

तीनों गुम्बदों के ऊपर आलीशान कलश चढ़े हुए हैं।मस्जिद की मुख्य इमारत के द्वार पर एक दो रुखा घण्टा लगा हुआ है जिसे लन्दन से मँगवाया गया था। रामपुर के जामा मस्जिद के प्रति लोगों में अपार श्रद्धा है। विभिन्न मुस्लिम त्यौहारों के अवसर पर असंख्य यहाँ नमाज अदा करते हैं। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि यहाँ आकर सच्चे दिल से इबादत करने पर हर मुराद पूरी होती है।

x ) शाही जामा मस्जिद (पीलीभीत)

पीलीभीत नगर में स्थित शाही जामा मस्जिद का निर्माण 1767 ई० मे नवाबुल मलक हाफिज़ रहमत खाँ ने करवाया था। तब से आज तक पीलीभीत शहर में इस मस्जिद का विशेष धार्मिक महत्व है। मुस्लिम लोगों में यह विश्वास अत्यन्त दृढ़ है कि यहाँ आकर इबादत करने पर दिल की सारी इच्छाएं पूर्ण होती है। ईद के अवसर पर असंख्य लोग यहाँ नमाज अदा करते हैं।

xi ) बारा बुर्जी मस्जिद (आॅवला जिला बरेली)

आँवला तहसील में स्थित बारह बुर्जी मस्जिद मुसलमानों के लिए एक अहल महज़बी स्थान है। यह मस्जिद अपनी अनूठी वास्तुकला के कारण अत्यन्त आकर्षक व लोकप्रिय स्थान है। मस्जिद की मुख्य इमारत के ऊपर बने बारह विशाल गुम्बद इस मस्जिद की सुन्दरता में चार चाँद लगाते हैं। इन्हीं गुम्बदों के कारण इस मस्जिद का नाम बारह बुर्जी मस्जिद पड़ा ।

मुसलमान लोग बारह बुर्जी मस्जिद में गहरी श्रद्धा रखते हैं। ईद इत्यादि अवसरों पर न केवल स्थानीय वरन् आस पास के क्षेत्रों के मुसलमान भी बड़ी संख्या में आकर इस मस्जिद में नमाज अदा करते हैं।

बारह बुर्जी मस्जिद (आँवला, बरेली) 

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Content Prepared by Dr. Rajeev Pandey

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