टेसू और साँझी

Part - 3

- मुश्ताक खान


 

ग्वालियर में सांझी बनाने की प्रथा अत्यंत लोकप्रिय है। १९८५ के पितृपक्ष के दौरान ग्वालियर में सांझी से सम्बन्धित किवदन्ती और गीत जो मैनें एकत्रित किये वह इस प्रकार है। जानकी काछी द्वारा बताई किवदन्ती के अनुसार बहुत साल पहले किसी गांव में एक ब्राह्मण परिवार रहता था। परिवार में लगभग सत्तर साठ व्यक्ति थे जो सभी प्रकार से सम्पन्न थे। इनमें से छोटे भाई की पत्नी मर चुकी थी, उसे बड़े भाइयों की पत्नियां बहुत परेशान करती थी इससे दुखी होकर वह अपनी पुत्री को लेकर घर छोड़ कर दूसरे गांव चला गया यह गांव जंगल के किनारे एक सुन्दर गांव था। उस जंगल में एक राक्षस रहता था। ब्राह्मण की रुपवान कन्या जब एक दिन पानी भरने गई तब उस राक्षस ने उसे देख लिया और उस पर मोहित हो गया। उसने लड़की से उसका परिचय लिया और उसके पिता से मिलने की इच्छा प्रकट की तब लड़की ने कहा कि उसके पिता शाम के समय घर मिलते है। राक्षस शाम को ब्राह्मण बहुत घबराया उसने सोचा यह राक्षस मना करने पर मानने वाला नहीं इससे उसने राक्षस से कहा कि विवाह तो हो जायेगा। परन्तु कुछ रस्में पूरी करनी पड़ेगी इसलिये कुछ दिन का समय लगेगा। क्योंकि पहले मेरी लड़की सोलह दिन बाद आ इस बीच ब्राह्मण ने अपने परिवार के लोगों को सहायता के लिये बुलाने का पत्र लिख दिया। क्वांर माह के यह सोलह दिन सोलह श्राद्ध के दिन माने जाते है। और इन दिनों ब्राह्मण की लड़की जो खेल गोबर की थपलियों से खेली वह सांझी या चन्दा तरैयां कहलाया और तभी से सांझी खेलने की परम्परा का आरंभ हुआ। सोलह दिन बीतने पर राक्षस आया परन्तु ब्राह्मण के परिवार वाले नहीं पहुंच पाये इसलिये उसने फिर बहाना कि अब उसकी लड़की नौ दीन मिट्टी के गौर बनाकर खेलेगी। राक्षस नौ दिन बाद फिर वापिस आने का कह कर चला गया। तभी से यह नौ दिन नौरता कहलाये और इन दिनों सुअटा खेलने की प्रथा शुरु हुई। नौ दीन भी खत्म हो गये पर ब्राह्मण ने उससे कहा अब केवल आखिरी र रह गई है। अब पांच दीन तुम और मेरी बेटी घर घर भीख मांगोगे तब शरद पूर्णिमा के दीन तुम्हारी शादी हो सकेगी, राक्षस इस बात के लिये भी मान गया और तभी से दशहरे से पूर्णिमा तक उस राक्षस के नाम पर टेसू और ब्राह्मण की लड़की पर झांझी मांगने की प्रथा का आरंभ हुआ। इस प्रकार जब भीख मांगते पांच दिन बीत गये और ब्राह्मण के परिवार के लोग नहीं आये तो ब्राह्मण निराश हो गया और उसे अपनी पुत्री का विवाह राक्षस से करने के अलावा कोई रास्ता दिखाई नहीं दिया तो शरद पूर्णिमा के दिन उसने विवाह निशिचत कर दिया। लेकिन अभी विवाह के साढ़े तीन फेरे ही पड़े थे कि ब्राह्मण के परिवार के लोग आ गये और उन्होने उस राक्षस को मार डाला। चूंकि उनकी लड़की का आधा विवाह राक्षस से हो चुका था इसलिये उसे भ्रष्ट मान कर उन्होने उसे भी मार डाला इसलिये टेसू और झांझी का पूरा विवाह नहीं होने दिया जाता है। उन्हें बीच में फोड़ दिया जाता है। ब्राह्मण के भाइयों ने सोचा न उनका छोटा भाई पर छोड़ कर भागता और न हीं उनके कुल को इस प्रकार दाग लगता इसलिये सारी खंराबी का कारण वही है और उन्होने उस ब्राह्मण को भी मार डाला। इसीलिये नौरता में मिट्टी के गौर बनाकर खेला जाने वाला सुआटा टेसू के विवाह के बाद उस ब्राह्मण पिता के प्रतीक सुअटा के रुप में फोड़ दिया जाता है।

 

पहले चोदस दिन बालिकायें गोबर से दीवार लीप कर कोई सादा मोटिफ बनाती है। इन्हें अधिक विवरणात्मक एवं अलंकृत नहीं बनाया जाता यदि बालिकायें चाहें तो बना भी सकती हैं किन्तु आमतौर पर बाह्य रेखा के अन्दर कोई एक मोटिफ बनाया जाता है। ये मोटिफ हैं फूल, गमला, बीजना, चखरी, संतिया, अठकलिया चौक, खजूर, चिड़िया आदि।

 

 

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