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नंदादेवी मेला-नैनीताल


अल्मोड़ा की ही भांति नैनीताल में भी नंदादेवी मेला आस्था और विश्वास के साथ मनाया जाता है । कहा जाता है कि अल्मोड़ा से जाकर लोगों ने ही नैनीताल में भी इस मेले की शुरुआत की थी । वर्ष १९१८-१९ ई. में स्थानीय लोगों की पहल पर इस त्यौहार को नैनीताल में भी जातीय पर्व के रुप में मनाया जाने लगा । मेले को सुचारु रुप से संचालित करने के लिए श्री राम सेवक सभा द्वारा वर्ष १९३८ में व्यवस्था अपने हाथ में ले ली गयी । वर्तमान में भी इस संस्था के पास व्यवस्था का सारा कार्य है ।

नैनीताल में मेले के धार्मिक कार्य कार्यकलाप पंचमी से ही प्रारंभ होते हैं । यहाँ भी नंदा प्रतिमाओं को कदली स्तम्भों से ही निर्मित किया जाता है । मेले के लिए ब्राह्मण नैनीताल के पास बसे ज्योलीकोट से आते हैं । अल्मोड़ा की ही तरह कदली स्तम्भों का चयन विधिविधान से किया जाता है । मल्लीताल में स्थित धर्मशाला में तब विधि अनुसार चयनित किये गये कदली स्तम्भों के पूजन अर्चन के बाद मेले की गतिविधियाँ प्रारम्भ हो जाती है । तब स्थानीय शिल्पी अपनी प्रतिभा और प्रज्ञा से परम्परानुसार नंदामुखाकृतियाँ निर्मित करते हैं । मुखाकृतियों के आंगिक श्रंगार और उनके आभूषणों से अलंकृत करने के बाद उनका पूजन किया जाता है, प्राण प्रतिष्ठा की जाती है । 

मेले को चूँकि महोत्सव का रुप दे दिया गया है, इसलिए विसर्जन होने तक लगातार पूजन, अर्चन चलता है, साँस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं । 

मेले के अन्तिम दिन परम्परागत रुप से शोभा यात्रा निकाली जाती है । नन्दा माँ की जय जयकार करते हजारों लोग इस शोभायात्रा में सम्मिलित होते हैं । प्रतिमाओं पर अक्षत, पुष्प आदि अर्पित किये जाते हैं । अन्त में पाषाण देवी मंदिर के पास इन देवी विग्रहों को विसर्जित किया जाता है ।

मेले के दौरान दूर-दर से आये लोकगायक, नर्तक अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं ।

 

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