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रामेश्वर का मेला - जनपद पिथौरागढ़


रामेश्वर जिला पिथौरागढ़ में सरयू और पूर्वी रामगंगा के संगम पर बसा है । यह स्थान शिव की आराधना करने के लिए भी इतिहास प्रसिद्ध रहा है । कभी यहाँ रामेश्वर गिरी नामक किसी साधु ने अपना आसन जमाया और यह स्थान रामेश्वर नाम से प्रसिद्ध हो गया । यह भी किवंदती है कि यहाँ किसी दक्षिणात्य पंडित ने यज्ञ द्वारा शिव को संतुष्ट किया था और सेतुबंध रामेश्वरम् के नाम पर उसका नामकरण किया । महाराज उद्योतचन्द्र ने १६०४ शाके में रामेश्वर के मंदिर को भूमिदान में दी थी । उन्होंने यहाँ की पूजा अर्चना को व्यवस्थित किया । मंदिर को सरयू से थोड़ा दूर बनाया गया है । उत्तरायण में इस संगम पर स्नान करने की परम्परा है । सरयू में दीप दान की भी यहाँ परम्परा थी ।

रामेश्वर का मेला रात्रि में लगता है । यह पूर्वोत्तर कुमाऊँ का सबसे बड़ा शमशान है । वर्षों पहले लगने वाले मेले में यहाँ ग्रामवासियों के समूह अपने अलग-अलग खेड़े का निर्माण कर लेते थे । निषिड़ रात्रि में अलाव जलाकर उसके चारों ओर महफिलें जमतीं । लोकगायक यहाँ नृत्यगीतों की महफिलें सजा देते थे । मंदिर के ऊपर के समतल मैदान में यह मेला लगता था । बैरियों के प्रश्नोत्तर होते थे । तब ब्रह्ममुहूर्त में स्नान होता था । बिल्व पत्रों से शिव को प्रसन्न किया जाता था ।

इस मेले में भी व्यापारिक खरीद फरोख्त की जाती थी । मेले का सांस्कृतिक पक्ष अधिक सशक्त नहीं रह गया है ।

 

 

 

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