उत्तरांचल

नंदादेवी मुखाकृतियाँ

 

अल्मोड़ा में नंदादेवी के मेले के अवसर पर बनने वाला नंदादेवी मुखाकृतियाँ निर्माण, तकनीक एवं शिल्प की दृष्टि से अनूठी हैं। प्रतिमाओं का निर्माण कदली स्तम्भों से किया जाता है।

प्रतिमाओं के निर्माण के लिए चार स्तम्भों का चयन किया जाता है। इसके अतिरिक्त बेंत, बाँस की खपच्चियाँ, सूति वस्र, पाग बनाने के लिए कपड़ा, लाल रंग, रोली, बिस्वार, कुमकुम, कला रंग, पूर्व में निर्मित चाँदी की आंखें तथा पाती नामक वनस्पति का प्रयोग किया जाता है।

उपकरणों के रुप में रुई तागा, ब्रुश, हथौड़ी आदि का प्रयोग किया जाता है।

सर्वप्रथम निश्चित आकार के केले के स्तम्भ काटकर उनमें ऊपर - नीचे की ओर खांचा जैसा बना लिया जाता है। केले के स्तम्भों के कुछ परतों को बाँस की खपच्चीनुमा कीलों की सहायता से मनोनुकूल आकार में काटकर पहले से तराशें गये कदली स्तम्भों पर ठोंक दिया जाता है। इससे आकृतियों उभारने में साहायता मिलती हैं। तत्पश्चातू बेंत की लकड़ी लेकर उसे कदली स्तम्भ में ऊपर से नीचे की ओर गोल आकृति बनाकर ठोंक दिया जाता है। बेंत की लकड़ी मुखाकृतियों के फ्रेम का कार्य करती है। कदली स्तम्भ के पृष्ठ में एक कील ठोंककर पीले रंग से रंगा कपड़ा प्रतिमा की मुखाकृति बनाने के लिए तानते हैं। यह करडा सूई तागे कि सहायता से बीच में बाँस की कील से कसा जाता है। इससे आकृति का आकार बन जाता है। पूर्व में कदली स्तम्भ पर जो खांचा बनाया जाता है उससे मुख का आकार उभरने लगता है। तब रंगों का प्रयोग कर प्रतिमा के होंठ, भौहें, लाल एवं श्वेत निषाण आदि बनाकर मनोंकूल रंगों में ढ़ालकर नंदादेवी पर्वत शिखर सा रुप दिया जाता है। रंगों से आभा विकसित की जाती है। अन्त में चाँदी से बने हुई आंखें लगाकर प्रतिमा को पूर्ण किया जाता है। पर्वतीय परम्परा सदृश मस्तष्क पर पाग कस दिया जाता है।

देवपूजन में काम में आनेवाली पाती की टहनियों को जोड़कर देवी प्रतिमाओं के हाथ पैर बनाये जाते हैं। इसकी पत्तियों को चारे की तरह काटकर प्रतिमाओं को बैठाने के लिए आसन तैयार किया जाता है।

आसन पर प्रतिस्थापित करने से पूर्व इन प्रतिमाओं को परिधान से आभूषित किया जाता है। घाघरा, पिछौड़ा, आंगड़ा जैसे कुमाऊँनी परिधानों से अलंकृत कर नाक के ऊपर से कुमकुम का बड़ा सा टीका लगाया जाता है।

प्रतिमा निर्माण का कार्य कलाकारों का दल प्रतिवर्ष करता है। ये कलाकार पेशेवर नहीं होते।

इनके अतिरिक्त भी शिवपूजन के विभिन्न अवसरों पर पार्थिव लिंग, आटे की विभिन्न आकृतियाँ (घुघुत्यार पर), समधी - समधिन (विवाह के अवसर पर) आदि भी बनाये जाते हैं।

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