Yugantar

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श्री गोविन्द झा

नाटकक पर्दा उठा दिऔ !

स्थान : कुमार बाबू गुणेश्वर सिंहक डीह... पार्श्वमे वाग्मतीक कछेड़। बुर्जूघाट : शुभंकरपुर । गोविन्दबाबूक भागिन पं. शशिनाथ झाक छोटछीन वासा । ग्रीलक गेट । पतियानी-जोड़मे झुमैत फूलक गाछ । बराम्दा । बराम्दा पर शीतलपाटी । शीतल पाटी पर मैथिलीक एकान्त साधक - शब्द-साधना आ अक्षर-चेतनाक प्रतीक पुरुष पण्डित गोविन्द झा एकटा पुरान पोथीमे निमग्न । घड़ीमे बजैत रहइक एगारह - जड़ाक भोर माने बितैत रहैक ... प्रणाम-पाती । कुशल-क्षेम ।

पं. गोविन्द झा - "" कत ' गप्प ? करब बराम्दामे .... एतहि आ कि कोठली.... कोठलीमे ? ''

-""रउद एतहि अछि ... एतहि बैसल जाय ।''

-""कोना की ? की सब भ ' रहल छैक ?''

-""जी आइ हम विशेष उद्देश्यसँ अपनेक दर्शनक हेतु उपस्थित भेल छी'' ।

-""से की ? से की अओ ?''

-""जी''..

-""अपनेसँ किछु पुछबाक छल .... अपनेक प्रसंग ... अपनेक संघर्ष ... मैथिली शब्दकोश ... नाटक ... कथा ... कविता ...''

गोविन्दझा किताबक पन्नाकें बन्द करैत निर्द्वेन्द्व भावें कहलनि- तँ एहिमे दुविधा कथीक ? संकोच केहन ? अवश्य पुछू... ''

हम साकांक्ष होइत पुछलियनि - ""अपनेक जन्म-स्थान ? अपनेक गाम ?''

-""हमर गाम आ जन्म-स्थान थिक इसहपुर-मौजे-सनकौर्थ .... पंचायत सनकौर्थ अथवा विशनपुर पदमौल-मौजे सनकौर्थ टोले रामनगर-प्रसिद्ध इसहपुर, नक्शामे इसुफपुर ।''

-""इसहपुरक की अर्थ ?''

-""असलमे इसहपुर ... इसुफपुरक अपभ्रंश थिक । इसुफअली जमीन्दार रहथि। हुनके जमीन्दारी- तें हुनकहि नाम पर इसुफपुर .... इसुफपुर सँ इसहपुर ! ''

-""अपनेक मूल ?''

-""हमर मूल ... हमर मूल भेल मरड़य सिहौलि - सिहौल ।''

-""अपनेक गोत्र''

-""काश्यप ... इसहपुर हमर पितामहक मात्रिक । हम सब दीप कही.... गोध-नपुर कही- बीचे बाधमे हमर डीह छल - दीप आ बेहटक बीचमे रघुवर झा चभच्चा । प्रख्यात.... हमर प्रपितामहक नाम पर .... रेलवी लाइनक उत्तर । हम एहि चभच्चामे स्नानो कएने छी।''

-""एहि चभच्चामे जाठि छैक ?''

-""नहि, जाठि नहि छैक । असलमे जाठिसँ विशेष अर्थ लक्षित होइत अछि.... साधारणतः इनार-जलाशय व्यक्तिगत सम्पत्ति । मुदा जखन पोखरिक जाग होइत छैक ... जाठिक स्थापना कएल जाइत छैक तँ ओ पोखरि सार्वजनिक उपयोगक हेतु मानल जाइत छैक । जाठि यज्ञ-स्तूप जकाँ जागक प्रतीक भेल ।'' 

-""सम्प्रति एहि चभच्चापर ककर अधिकार ?''

गोविन्दबाबू चिन्तनक मुद्रामे किछु पल विलमि बजैत छथि- "" आब सरकारी - गैरमजरुआ जकाँ .. ''.

-""सोति लोकनिमे श्रेणी होइत छनि ?''

-""हँ, से होइत छनि !''

-""अपनेक श्रेणी ?''

-""हमर ... हमर अऔ ?''

-""जी, अपनेक ?''

-""हमर पंचम श्रेणी ... हेमांगद राय लौकित ... राजग्रामवासी !''

-""एहि प्रकारक श्रेणी-विभाजनक की कारण ?''

-"" ई एक प्रकारक सामाजिक मूल्यांकन थिक । सामाजिक मूल्यांकनक आधार पर श्रेणी देल जाइत छलैक । मुदा एहि श्रेणीक कारणे सोति लोकनिमे बड्ड झगड़ा होइत छलना । विशेष रुपें सिद्धान्त  क्रमसे-होइत छलनि विशेष रुपें सिद्धान्तक क्रमसे- विवाहसँ पूर्व सिद्धान्त ... सिद्धान्त कत ' होएत ? वरपक्षक दिस - कन्यापक्षक दिस - की बीचोबीच - ई सब झगड़ा होइत छलैक। गोलैसी मचैत छलैक - कुकाव्य आदि बनैत छलैक .... आब सो सब की  महाराज महेश्वर सिंहक समयमे सोति लोकनिक श्रेणीक्रम आदि छपलैक .... एना आनो जातिमे देखल जाइत अछि । .... ''

-""जेना ....''

-""जेना कान्यकुब्ज .... सरयबपाणि । कान्यकुब्जमे ' विस्वा ' कहल जाइत अछि - श्रेणीकें विस्वा कहल जाइत अछि । कर्णकायस्थमे सेहो एकर प्रचलन अछि । दक्षिण अफ्रीका, बंगाल आदिमे सेहो एहि तरहक उदाहरण उपलब्ध अछि !''

-""स्वदेशी - बिलैती आन्दोलन की थिकैक ?''

-""देखू, सोति समाज खूजल नहि बन्द अछि .... बन्द समाज ... अहुना सनातन धर्ममे अनेक विधि-निषेध । अपन देशमे सबठामक यात्रा प्रशस्त नहि .... विदेशक कोन कथा ? तें महाराज कामेश्वर सिंह जखन १९३३ मे विदेश गेल रहथि तँ सम्पूर्ण श्रोत्रिय समाजे बबन्डर मचि गेल । अनर्थ भेल महारजकें बारल जाए । महाराजक वहिष्कार कएल जाए !''

-""एहिसँ पूर्वआनो महाराज विदेश जएबाक प्रयास कएने रहथि ?''

-""हँ, महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह । महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंहकें प्लूरिसी भ ' गेल रहनि । विचार भेलैक जे विदेशमे समुचित इलाज कराओल जाइनि .. झाँपि-तोपि महाराजकें विदेश ल ' जएबाक विचार भेलनि । मुदा बादमे महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंहक निर्णय बदलि गेलनि ... विदेश जाएब ... सेहो चोरा-नुकाक ' उचित नहि बूझल । मरि गेलाह से कबूल - मुदा विदेश नहि गेलाह ।''

-""अपनेक परिवार स्वदेशी ?''

-""हँ, हमर परिवार पूर्णतः स्वदेशी .... पिता महावैयाकरण दीनबन्धु झाक नेतृत्वमे अनेक दिन बैसक भेल । किछु गोटए नेपाल भागि गेलाह - हमरा लोकनि तीन बरख धरि नेपालमे रहलहुँ ।''

-""तकर बाद ?''

-""तकर बाद पुनः विरोध-वहिष्कार शिथिल पड़ ' लगलैक । सोति समाज राजसत्ता सँ बान्हल - सम्पोषित । धनि दड़िभङ्गा - दोहरी अंगा । महाराज कामेश्वर सिंह प्रगतिशील विचारक रहथि - अत्यन्त शालीनता आ संयमक परिचय देल !''

-""अपने पर केहन प्रतिक्रिया भेल? अपने जे नास्तिक भ ' गेलिऐक तकर यैह सब कारण भेल ?''

-"" नहि, एहि घटनाक हमरा पर कोनो विशेष प्रभाव नहि पड़ल । पिता हमर आदर्श रहथि । प्रेरणापुरुष । बहुत दिन धरि हुनकहि संरक्षणमे सन्ध्यावन्दन-गायत्री जाप एवं शालिग्राम पूजा करैत रही । मुदा जखन हम पटनामे अएलहुँ तँ हमर विचार, चिन्तन आ दृष्टिमे तीव्र परिवर्तन भेल । हम अपन एक रचनामे लिखने छिऐक :""

आब चलत नाहि काज 

ब्रह्म बनने अओ बाबू

रहए देत नहि लोक आब निर्लिप्त

लेपिए देत कोओ बलजोरी

चानन नहि, लिढिआही पोखरिक थाल !

हम शालिग्राम .... जनौ .... सन्ध्यावन्दन सबटा छोड़ि - छोड़ि मुक्त भ ' गेलहुँ । शालिग्राम जे संग रहैत छलाह - करिआ पाथर विष्णुक विराट पुरुष ... से एक दिन चुप्पे-चाप पटनाक हथुआ स्कूलक मन्दिरमे राखि अबैत रहलहुँ 

-"" एना किएक कएलिऐक ?""

-"" असलमे हम बुद्धिवादी छी । बौद्ध नहि बनलहुँ । ""

जी, अपने प्रबुद्ध मैथिल समाज जकाँ .... मुदा एहि प्रसंग मैथिलीक कविश्रेष्ठ व्यास जी रहस्य-उद्घाटन कएल जे प्रबुद्ध मैथिल समाजक सब क्यो आब खूब पूजा - पाठ करैत छथइ ...... "".

गोविन्दबाबू विहुँसैत कहलनि -"" हँ-हँ, ठीके- ठीके कहलनि । आब के सब रहथि से सुनू- परमानन्द बाबू, उमानाथबाबू, अनिरुद्धबाबू, शचीनाथबाबू, देवीनाथबाबू- फेर सनातनी होइत गेलाह । ""

हम उत्सुक होइत पुछलियनि - "" की अपने सेहो फेर शालिग्राम पूजा आरम्भ करबैक .... जनौ .... चानन ? ""

गोविन्दबाबूक मुखमुद्रापर अडिग संकल्पक रेखा, बजलाह - "" आब की बदलब ? साठि बरखसँ पहिने बदलल से बदलल - आब अस्सीक करीब भेल .... आब अइ पार की ओइ पार ... अब खाक मुसलम्मां होंगे ... ! ""

बहुमुखी प्रतिभाक धनी, मैथिली शब्दकोश आ भाषाशास्रक अद्वितीय विद्वान, कट्टर नास्तिक, उर्दू, नेपाली, नेबाड़ी, उड़िआ आ असमीक ज्ञाता पं. श्री गोविन्दझाक जीवन संघर्षपूर्ण रहलनि अछि ।

- "" अपनेक मूल संघर्ष ... जीवनमे संघर्षक मूल केन्द्र की रहल ? ""

गोविन्दबाबूक आकृति निमिष मात्रक लेल छटपटा उठलनि, बैचेन - "" स्टारभेसन ... अर्थ-संघर्ष । घोर अभाव । हमर व्यक्तित्व समझौता क ' नहि सकैत अछि । अपन शर्त पर जिबैत रहलहुँ सबदिन । ई प्रकृति हमरा पिताँस विरासतमे प्राप्त भेल अछि । हमर पिता अपमानजनक परिस्थितिक आभास होइतहिं पाठशालासँ त्यागपत्र दए किछु दिन गामहिमे कपड़ाक दोकान खोलि ले रहथि । दरभंगा महारजसँ विरोध मोल लेल । स्वदेशी -बिलौती ... नेपालमे महापलायन । घऽरक आर्थिक स्थिति क्षत-विक्षत भ ' गेल रहय । व्याकरणाचार्यक डिग्री प्राप्त भेलाक बाद हम जीविकाक तलाश आरम्भ कएल । विवाह वाल्यावस्थामे भ ' गेल रहय । प्रथम पुत्रीक जन्म । विशाल संसारक एकटा छोटछीन हिस्सामे हम संघर्ष आरम्भ कएल ... आब संघर्ष हमर जीवनक हिस्सा भ गेल अछि । अहाँकें बूझल अछि ?""

- "" जी, से की ? ""

- "" तखन सुनू ""

- "" जी .... "".

- "" सरिसवमे अखिल भारतीय मैथिली साहित्य परिषद्क अधिवेशन भेल रहइक। एहि अधिवेशनमे नाटक विभागक सेक्सनल प्रेसिडेन्टक रुपमे हमरा मनोनीत कएल गेल रहय । बूझल किने ... नाटक विभागक विभागीय अध्यक्ष  .... कतेक बड़का सम्मान भेलैक। मुदा हम ओहि अधिवेशनमे उपस्थित नहि भ सकलहुँ ।

- "" से किएक ? ""

गोविन्द बाबू दीर्घ नि :स्वास लैत छथि- पाइ नहि रहय .... कैंचाक अभाव । पटनासँ सरिसव जएबा-अएबाक खर्चा नहि जुटा सकलहुँ । कतेक दु:ख भेल । कतेक छटपटएलहुँ । पैंच हम ल ' नहि सकैत छलहुँ । ककरहु ल ' ग तरहत्थी पसारि सकैत नहि छलहुँ । स्टारभेसन - आर्थिक अभाव - अदम्य संघर्ष । हमर जीवनक केन्द्रमे रहल अछि अर्थ-संघर्ष .... अयाची आदर्श.... याचना नहि, कत्तहु नहि, किन्नहु नहि .... संघर्ष।""

- "" पैंच नहि लेबाक व्रत कहियो टूटल कि नहि ? ""

- "" हँ, से एक बेरि टूटल ... टूटल सैह कहू ! अपना लेल नहि, अनका निमित्त ! ""

- "" से कोना ?""

- "" एकबेर हड़ताल भेलैक । कोइलखक दयानन्द झा हमर सहकर्मी, कहलनि- बाप रे ! हम हड़ताल पर नहि जाएब । हमर परिवार विलटि जाएत । हम बोल-भरोस देलिएनि - संघर्षसँ फराक जुनि होउ । हम सब छी । देल जएजैत । हड़ताल लम्बा भ गेलैक । दयानन्द झा दउगल अएलाह ... चुल्हा चौकी बन्द अछि ... बच्चा सब बेलल्ल । ... बुन्द भरि दूध नहि ! हमर हाथ खाली । तखन हम परमानन्द बाबूसँ निवेदन कएलियनि । .... अपन गामक वकील साहेब परमानन्द बाबू । पटनाक हाइकोर्टमे रहथि .... यशस्वी । पैंच देलनि तखन दयानन्द झाक कष्टक निवारण भेलनि । ..... अहाँ जनैत छी - हमर केहन हाल छल ? कउखन कोनो वकीस साहेबक ओतऽ असिस्टेन्टक काज क ' रहल छी । हाइकोर्टक वकील रामचन्द्र सिंह - केससँ सम्बन्धित सबटा इन्डेक्स बना दिअनि । कागज-पत्र सरिआ दिअनि .... तखन मासमे 100 रुपया दैत छलाह । कतहु शब्दकोश बना रहल छी- कतहु कोनो लेखन .... आकाशवाणीक निमित्त कार्यक्रम ... ""

- "" आ खेत पथार ..... गाम ?""

- "" एक तँ जमीन्दारी उन्मूलनक बाद सबटा खेत-पाथर राइ-छित्ती भ ' गेल । जा धरि बाबू जीबैत छलाह - गाम अवलम्ब ! बादमे जेना होइत छैक नौकरिहाराकें - छोट भाइ माधव मैनेजर भ ' गेलाह । भातिज आबि पटनामे हमर डेरा पर रहि पढ़थि- मुदा कथी ले ' एकसेर चूड़ी गामक उपलब्ध होयत ?""

एकान्त-शान्त दुपहरिया । बुर्जूघाट ... वाग्मतीक कछेड़ । जटाधारी फूलक सोहनगर लय-बद्ध नृत्य - कात्मे गुलावक फूल । बुर्जूघाटमे हम मैथिलीक पुरोधा गोविन्दबाबूक संघर्षपूर्ण व्यक्तित्वक एक-एक कतराकें देखि आत्म-विस्मृत जकाँ भ गेल रही । शुभंकरपुरक बुर्जूघाट

- "" अपनेपर आरोप लगाओल जाइत अछि जे अपने महन्थ लोकनिक लेल पोथी पर पोथी लिखलहुँ - छद्म लेखन ... एहन कोन विवशता ?""

गोविन्दबाबू गम्भीर होइत कहलनि -"" हँ, ई आरोप हमरा पर लगाओल जाइत अछि । खिधांस भेल । परिचित मित्र, सम्बन्धी सब बजैत छथि । ""

-"" जी, एकाध ठाम लिखित आबि गेल अछि .. ""

-"" आबि गेल होएत । निम्नमध्यमवर्गीय परिवारक स्वाभिमानी संघर्षधर्मी व्यक्तिकें यैह सब सूनए पड़ैत छैक .... यैह नियति । मुदा अहाँ कहू तँ जे ई बात बजैत छथि- लिखैत छथि से कहियो ई पता लगौलनि जे हनर घरमे चुल्हा कोना जरैत अ ! हमर बच्चा कोना पढ़ैत रहल ? हम दु:ख आ कष्टमे कोना संघर्ष करैत रहलहुँ ? .... अहाँ जनैत छी, अर्थ अभावमे हमर बच्चा सबकें कतऽ पढ़ऽ पड़लैक ? हमरालोकनि सरकारी जमीन पर अपने सँ मिलि क ' फूसक झोपड़ीमे विद्यालय खोलल आ ताहिमे हमर बच्चा सब पढ़थि । हमर जेठ बच्चा अक्कू व्यंगमे ओहि विद्यलयक नाम हमर नाम पर राखि देने रहथि - फल्लाँ झा झोपड़ी महाविद्यालय । ""

-"" जी, महंथ लोकनिक लेल पोथीपर पोथी ? ""

-""हँ ... ई कुकर्म .... जँ ई कुकर्म थिक तँ हम कएने छी । .... हमरो अन्न चाही । दूध चाही, दबाइ चाही । आइ पाइ रहितय तँ हमहूँ नव धनाढ़य लोकनि जकाँ डोनेशन द ' ' अथवा बढियाँ स्कूल-कॉलेजमे पढ़ा'क' बच्चा सबकें इन्जीनियर-डाक्टर बना लेने रहितहुँ - मुदा से किएक नहि क ' सकलहुँ ? से हम बच्चाकें झोपड़ी विद्यालयमे पढ़बैत रहलहुँ ... महंथ लोकनिक ... हँ, महंथे लोकनि - व्यंग्य भेलैक ई ... बुझैत  छिऐक... स्टारभेशन । हम अपन एकटा कवितामे लीखि देने छिऐक ... बुझल किने श्रम हमर पूजी ... विद्या हमर साधन .... कवितामे लिखने छिऐक -

अर्चन नहि, हम करैत छी

स्वयं शक्ति केर सर्जन

भीख न मंगलहुँ कहियो, कएलहुँ

बाहुक बलसँ अर्जन

-"" अपनेक व्यक्तित्व पर स्वतंत्रता -आन्दोलनक केहन प्रभाव पड़ल ?""

गोविन्दबाबू हमरा दिस साकांक्ष होइत कहलनि ... "" अहाँके पं. मधुसूदन मिश्रक नाम सूनल अछि ... भट्टपुराक सुराजी गुरुश्रेष्ठ पं.मधुसूदन बाबू ... ""

-"" जी .. "".

गोविन्दबाबू पीठक आँखिसँ अतीतकें मोन पाड़ैत कहलनि - "" पं. मधुसूदन मिश्रक प्रभाव ... हुनक व्यक्तित्व, चिन्तन, संघर्ष- सभक प्रभाव हमरा उत्प्रेरित करैत रहल, झंकृत करैत रहल । ओ सुराजी छलाह । बनारससँ प्रकाशित ' आज ' ( साप्तहिक ) आ कलकत्तासँ प्रकाशित विश्वमित्र ( साप्तहिक ) हुनका ओतए नियमित रुपमे अबैत छलनि । ओ जखन भाषण करैत छलाह तँ उपस्थित जनसमुदायक हृदय आनदोलित भ' उठैत छलैक ... गंगौलीक पं. चेतनाथ मिश्र बड़का सुराजी रहथि । 'कर्मवीर आश्रम'क स्थापना भेल रहैक । खादीक प्रचार-प्रसार । असहयोग आन्दोलन, ४२क आन्दोलन आदिमे हमहूँ भाग लेने रहि । पिताक अनुशासन .... मुदा तइयो हम स्वराज-आन्दोलनमे भाग लैत रहलहुँ - हमर व्यक्तित्वक चिनगारी-सुराजी लोकनिक साहचर्यमे धधकि उठल ।एक बेरि भूमिगत सेहो रहय पड़ल ।

-"" अपनेक व्यक्तित्व अनेक घात-प्रत्याघातसँ दुर्धर्ष भेल अछि  ...ककरो प्रभाव ? ""

-"" ओना तँ हमर पिता आदर्श ... गुरु... प्ररेणा आ तकर बाद सुराजी गुरु मधुसूदन बाबू । अहाँ पुछलहुँ प्रभाव ... से तीन व्यक्तिक .... ""

-"" जी, नाम कहल जाए .. ""

-"" पहिल राहुल सांकृत्यायन ""

-"" किएक ? केहन प्रभाव ? ""

-"" संघर्षपूर्ण व्यक्तित्व । पाखण्ड पर प्रहार करबाक सामर्थ्य ।दिन-राति पढ़ैत-लिखैत रहबाक प्रवृत्ति । जन्मजात विद्रोही । हमरा लागल जेना हम जे आदर्श तकैत छलहुँ से राहुलजी मे भेटि रहल अछि ।.. "".

-"" जी, दोसर ?""

-"" दोसर दयानन्द सरस्वती । आडम्बर-चमत्कार सँ अलग ...... शान्त एकान्त स्निग्ध व्यक्तित्व । आर्यसमाजी नहि बनहलहुँ मुदा हुनक सत्यार्थ प्रकाश हमर संघर्ष-पथकँ आलोकित करैत रहल अछि ।.. "".

-"" आ, तेसर ? ""

-"" तेसर बर्ट्रेन्ड रसेल । ""

-"" हुनकासँ कोना परिचय  ?""

-"" हुनकासँ नहि ... हुनक पुस्तक ... हुनक विचार ... हुनक चिन्तनसँत परिचय। विशेष रुपसँ हुनक ""

-""अपने की बनऽ चाहैत रहिऐक ? की बनि गेलिऐक ?""

विशनपुर पदमौल-मौजे सनकौर्थ, टोले रामनगर, ईसुफपुर प्रसिद्ध इसहपुरमहावैयाकरण पण्डित दीनबन्धु झाक आत्मज व्याकरणाचार्य पं. श्री गोविन्द झाक प्रारम्भिक जीवन बक्र-सरल-त्रिज्या होइत ओझराइत रहलनि । पहिल नौकरी दरभंगा नर्थब्रुक जिला स्कूल दरभंगामे आरम्भ कएल । 15 फरवरी, 1949 कें  ई नौकरी छोड़ए पड़लनि- लालपुर- सरोपट्टी सिंहेश्वर स्थान एच.ई. स्कूलमे शिक्षकक कार्य ग्रहण कएल ।

-""हम .... हम बनऽ चाहैत रहिऐक शिक्षक ... सोझ- सरल शान्तिपूर्ण शिक्षण कार्य हमरा प्रिय रहय । चरित्रवान शिक्षक ... आदर्श विद्यार्थी । आश्रम । अधीतमध्यापित मर्जितं यश : मुदा से भेल नहि, पड़ि गेलिऐक झंझावातमे - आर्थिक अभाव ... जीवन संघर्ष - भूख ... स्टाभेशन !""

-""आ दबल महत्त्वाकांक्षा ? ""

-""हँ-हँ, सेहो कहि सकैत छी । लेखनक महत्त्वाकांक्षा ... अपना आपकें अभिव्यक्त करबाक आकंक्षा ! हम सिंहेश्वर स्थानक नौकरी मासाभ्यन्तरे छोड़ि पटना चल जाइत रहलहुँ । नोट करु ...  एखनो मोन अछि ओ दिन रहइक 8 मार्च 1950 प्रात : काल हम पटना पहुँचल रही । किछु दिन इण्डियन नेशन, आर्यावर्तमे नौकरी कएल - तकर बाद बिहार सरकारक अनुवाद विभागमे शब्दकोश सहायक पर हमर नियुक्ति भेल। 1978 धरि राज भाषा विभागमे विभिन्न पद पर रहलहुँ । 1978 सँ 1985 धरि मैथिली अकादमीमे उपनिदेशकक पद पर काज कएल ""

-""जी, कविश्रेष्ठ व्यासजीक आरोप छनि जे गोविन्दजी उखड़ि जाइत छथि ... से कोन बात पर उखड़ै छिऐ ? ... किएक उखड़ै छिऐ ?""

ई प्रश्न सूनि गोविन्दबाबू विचलित भ' उठलाह, भृकुटि तनि गेलनि शास्रार्थक मुद्रा मे ... फेर मुदा चित्तस्थिर करैत कहलनि -""हँ, उखड़ै छिऐ । ... आब सुनू किएक उखड़ै छिऐ । पटनामे मैथिली अकादमीमे विद्यापति जयन्तीक आयोजन रहइक । तत्कालीन मुख्यमंत्री भागवत झा ' आजाद ' सेहो उपस्थित रहथि । हुनको अवसर देल गेलनि । ओ हिन्दीमे कवितापाठ करब शुरु कएल । हमरासँ नहि रहल गेल - उठिक ' ठाढ़ भ ' गेलहुँ, कहलियनि - मैथिलीमे सेहो सुनाओल जाय । ... आब की छल ? चेतकर बाबूक आँखि रंगि गेलनि, जोरसँ बजलाह - हिन्दीमे किएक नहि पढ़ताह, विद्यापति कोन भाषाक कवि नहि छलाह ? हम विनम्रतापूर्वक कहलियनि- मुदा हम मैथिली अकादमीमे मैथिली कविता सुनबाक अभिलाषासँ उपस्थित भेल रही । ... हमर अभिलाषाक पूर्ति नहि भेल .. हम सभासँ जाइत छी । ... बादमे द्वारि धरि, बराम्दा धरि, सड़क धरि, व्यास ' जी हमरा बुझएबाक प्रयास कएल - मुदा हम साफ कहलियनि - राजसत्ताक लऽग अहाँ सब झुकैत जाउ, हमरा मैथिलीक पताका फहराब ' दिअ । ""

गोविन्द बाबू आन्तरिक पीड़ा, दु : ख आ अभिरोषसँ छटपटाइत कहलनि - ""सुनू तखन ... एकटा आर दृष्टान्त ...""

-""जी, कहल जाय .."".

-""मैथिली अकादेमी जे कोनो गोष्ठी होइक तँ हम कहियनि जे अध्यक्ष के ? ताहि पर तत्कालीन चेयरमैन मदनेश्वरबाबू बजाथि- हम तं छीहे । ... अरे पदेन चेयमैन छी । अध्यक्ष समारोहक के ? चेयरमैन अध्यक्ष भ' जयताह तँ स्वागताध्यक्ष के ? आब ताहि पर व्यास जी टोकथि - गोविन्द जी अहाँ अनेरे उखड़ि जाइत छी । ... एकटा आर दृष्टान्त लिअ ... चेतना समितिमे विचारगोष्ठीक आयोजन रहइक । खगेन्द्र ठाकु हिन्दीमे पढ़ए लगलाह । हमरासँ नहि रहल गेल - कहलियनि - मैथिलीमे पढ़ल जाए ... मैथिलीमे अपनेकें मैथिली अबैत अछि तखन चेतना समितिमे मैथिलीमे किएक नहि पढ़ब ? मुदा खगेन्द्र ठाकुर पढ़ैत रहलाह - हिन्दीमे पढ़ैत रहलाह - फलता : हम गोष्ठीक वहिष्कारक घोषणा ।

... आब कहू अपन मातृभाषाक सम्मान आ स्वाभिमानक रक्षाक निमित्त जँ हम बजलहुँ तँ उखड़ि गेलहुँ.... असलमे, एहन परिस्थितिमे हमरा निर्भीकता आबि जाइत अछि ... तकरा लोक उखड़ब कहैत छथि । ""   

बुर्जूघाटक एहि छोटछीन वासा पर महावैयाकरण पण्डित दीनबन्धुझाक सुपुत्र व्याकरणाचार्य पं. गोविन्द झा शीतलपाटी पर बैसल छथि ।

मूलत : कवि ...

-""अपने जे कविता लीखल से कोन दु : खसँ, सुखसँ, संघर्षसँ ? ""

-"" ने कोनो दु : ख, ने कोनो सुख, ने कोनो संघर्ष- हम जे कविता लिखलहुँ से प्रात :स्मरणीय सरसकवि ईशनाथ झाक साहचर्यसँ ... ओना कविताक आरम्भ समस्यापूर्तिसँ भेल । असलमे मैथिल महासभाक अधिवेशन भेल रहैक मधुबनी मे - समस्यापूर्ति क दंगल माइक पर - आर केओ ... आर केओ - हाथ उठाउ, मात्र तेरह बरखक हमर अवस्था- समस्या रहइक ' नीक कहाएब ' - हम ओतहि किछु पाँती जोड़ि सुनौलिऐक -

जँ निज उद्यमसँ दिनराति 

पहाड़हुकें लघु बूझि ढहाएब । 

तँ ध्रुव निश्चय सत्य सुनू अओ 

मैथिल बान्धव नीक कहाएब ।।

-""प्रतियोगितामे हारलहुँ कि जितलहुँ ?""

-""प्रथम स्थान प्राप्त भेल ।""

-""जी, तकर बाद ? ""

-""तकर बाद तँ नशा भ ' गेल । मधुबनी अधिवेशनक विवरणिकामे नाम छपल ... देखि मुग्ध भेलहुँ । .. आज  (साप्ताहिक) मे एक गोट कविता पठौलिऐक हिन्दीमे - जागरण - देशजागरसँ संबंधित - मुखपृष्ठपर छपि गेल - जाग रे ! चिरसुप्त चेतन जाग- मूल मैथिलीमे रहैक - बादमे ई कविता प्राय : पुरना मिथिलामिहिरमे छपलैक ।""

-""अपने कोन-कन कविसँ प्रभावित होइत रहलहसुँ अछि ? ""

-""देखू, सरसकवि ईशनाथबाबूक प्रभाव सर्वाधिक रहल ... तत्कालीन हिन्दी कविलोकनिक प्रभाव सेहो पड़ल ।""

-""जेना ......"".

-""जेना निराला, दिनकर, जयशंकर प्रसाद, सुमित्रा देवी चौहान, बच्चन । एहिमे बच्चनक कविता हमरा विशेष झंकृत कएलक । बच्चनक कविताक प्रसादगुण, शब्द-प्रभाव, लय छन्द हमरा झुमा जाइत छल । कतेको कविता हमरा स्मरण अछि औखन ... एकटा विदेशी कविताक अनुवाद कएने छथि बच्चनजी - केहन दिव्य छैक .."".

-""जी, से सुनाओल जाय .."".

-"" कतहु-कतहु विसरि गेल छी ... तथापि सूनू ...

मैंने पूछा मलयानिल 

से जो अनियन्त्रित रहता है 

जीवनमें सच्चे सुखका मैं 

कैसे पा सकता आनन्द 

और सुनो यह मूल समीरण 

कानों में क्या कहता है

बढ़े चले तुम, बढ़े चलो तुम 

जैसे बहता मैं स्वच्छन्द

मुदा मम मैथिली मे सर्वाधिक प्रभावित होइत रहलहुँ सरसकवि ईशनाथ बाबूसँ ! ..."".

-""से, केहन प्रभाव ?""

-""देखू ईशनाथबाबू ओहि समयमे सम्पूर्ण मैथिली काव्य-लहरिक केन्द्र भ ' गेल रहथि । भाव, भाषा, पदलालित्य, छन्द, संगीत आ सबसँ बेशी जखन ओ कविता सस्वर पढ़थि तँ सम्पूर्ण पंडाल थपड़ीसँ अनुगुंजित भ ' जाइक ।जखन ओ ' अन्तर मे हाहाकार भरल, नहि वाणी मे साहस ओ बल ' सस्वर पढ़य लागथि तँ हमरा सन-सन श्रोता रस मुग्ध ....... उन्मादक स्थितिमे पहुँचि जाइत छलाह ।""

-"" अपने कहल जे सरस कवि मैथिली काव्य-लहरिक केन्द्रमे छलाह, से कोना ?""

-""अधिकांश तत्कालीन कवि सरसकविक देखादेखी, कविता लिखैत छलाह ... आ जे हुनक लोकप्रियता सँ ईर्ष्या करैत छलाह से हुनका खसएबाक षड्यन्त्र मे लागल रहैत छलाह - तें कहलहुँ सरसकवि काव्य-लहरिक केन्द्रमे रहथि !""

-""अपनेकें ईशनाथबाबूसँ केहन सम्पर्क ?""

-""हमर ओ काव्य-गुरु छलाह .... संयोग एहन भेलैक जे बिठ्ठोक बदरी बाबू, हाटीक बल्लभबाबू आ नवटोलक ईशानाथबाबू निर्णय लेलनि जे संस्कृत नाटकक अनुवाद कएल जाए । ई गप थिक प्राय : 1945-46 क । तावत सरस कवि प्रोफेसर नहि भेल रहथि। इहो निर्णय भेलैक जे अनुवादक उपरान्त परस्पर देखाबी । हमरे ओतऽ हमर बाबूक अध्यक्षतामे गोष्ठी चलैत छलैक । भाइजी (कविवर जीवनाथबाबू) सेहो समय-समय पर सम्मिलित होइत छलाह - तातिल सबमे । अनुवादक क्रममे सरसकवि ईशनाथबाब सबसँ आगॉ बढि कालिदासक अभिज्ञान शाकुन्तलक अनुवाद मैथिलीमे कएल । जखन गोष्ठी चलैक हमरा ओतऽ ..... हमर बाबूक अध्यक्षतामे तँ हमहूँ मन्त्रमुग्ध भेल सूनल करी । बादमे हम अपन रचित कविता ल ' ' ईशनाथ बाबूक ओऽ नवटोल पहुँचि जाइ ... कविता सुनथि ... मात्सर्य आ करुणाक प्रतीक - साक्षात सरस्वतीक वरद पुत्र-अपराजेय शिक्षक .. हमर कविता-तरुकें सिंचित कएल .. हमरा अंगुरी पकड़ि-पकड़िक ' कविताक कलाक ज्ञान देल । ""

-""तँ ई कहल जाए सकैत अछि जे अपने ईशनाथ-दग्ध कवि छी !""

-""निश्चय । पूर्णतः सत्य । नाटक धरिमे हम हुनकासँ प्रभावित ।""

हमरा आश्चर्य होइत अछि । साहित्यक तीर्थ नवटोलक सरसकविक स्मृतिरक्षाक हेतु साहित्य अकादमी अथवा मैथिली अकादमीमे कोनो विशिष्ट लेखन- आयोजन, स्मृति-संध्या गोष्ठी आदि किएक ने भेल ? हम गोविन्दबाबू दिस अभिमुख होइत पुछलियनि - ""अपने तँ विभिन्न रुपमे साहित्य अकादमी आ मैथिली अकादमी आदिसँ सम्बन्धित रहलहुँ अछि, सरसकविक स्मृति-रक्षामे एहन उदासीनता किएक ? ""

गोविन्दबाबू व्यथित होइत कहलनि - "" हँ, ई भेलैक अछि ... ई उदासीनता आ उपेक्षा अनुचित । हमरा लगै-ए हुनक तिरोधानक बाद हुनक विरोधी सरसकविक मूर्तिभंजन मे लागि गेलाह अछि - ई नहि होएबाक चाही । ओना ओ कालजयी कवि -हुनक स्मृति निरन्तर बनल रहतैन्हि । ""

-"" अपने कवितामे लीखल ' नूतन स्वर ' लए अएलहुँ ... केहन नूतन स्वर ?""

-""नूतन स्वर अछि पुनर्जागरणक, साम्राज्यवादक विरोध आ परिवर्तनक नूतन स्वर.."".

-""परिवर्तन तँ विकास आ विनाश दुहूक सूचक थिक ।""

-"" नहि, हम व्यवस्था-परिवर्तनक स्वर लय अएलहुँ । हम लिखने छिऐ -

चमकल विद्रोहक वहिन प्रबल 

आन्दोलित भेल मही मण्डल

लए निज गण सब

रचइत ताण्डव

हम नचइत हर भए अएलहुँ

हम नूतन स्वर लए अएलहुँ

-""अपने बादमे ' यात्री ' जीक कवितासँ प्रभावित भ ' गेल रही ।""

-""नहि, किन्नहु नहि, कदापि नहि, कत्तहु नहि । सात्रीक कोनो प्रभाव नहि ।""

-""अपने पर आरोप लगाओल जाइत अछि जे मंच पर अपनेकें कविता पढ़ल नहि होइत अछि ?""

-""अओ, ई के आरोप लगौलनि अछि .... अच्छा जे बजैत-लिखैत छथि-बाजथु-लीखथु । ... असलमे कवितापाठमे जे अभिनय-कला चाही से हमरा नहि अछि । ... मुदा ई किएक आरोप लगबैत छथि जे हमरा मंच पर कविता पाठ नहि करए अबै-ए । हम जखन ' रुपलालबाबूक बड़का टरक ' आ उबर-खाभड़ सड़क ' अपन कविताक पाठ मंच पर करैत छी तँ सम्पूर्ण पंडाल थपड़ी सँ गुंजित होइत रहैत अछि। अनर्गल आरोप ... ईष्यापूर्ण अपलाप ... सर्वथा असत्य !  सर्वथा असत्य !!""

विश्नपुर पदमौल-मौजे सनकौर्थ, टोले रामनगर, ईसुफपुर प्रसिद्ध इसहपुर हेमांगदराय लौकित पंचम श्रेणीक श्रोत्रिय ब्राह्मण पं. श्री गोविन्द झा आब एहन-सहन आरोप सुनि मर्माहत भ ' उठैत छथि । हमरा दिस अभिमुख होइत कहलनि - "" साप-विच्छूक मंत्र पढ़ै बला ' कवि सबकें मंचपर कविता पढ़ ' अबैत छन्हि, गद्यकें कविता नामक बनाक ' रुग्ण स्वरसँ बाँच बला ' कें कविता पढ़ ' अबैत छनि आ हमरा कविता पढ़ ' नहि अबैत अचि- कहू  तँ केहन अनर्गल आरोप ... ई आरोप भेलैक .. आरोप ! ""

हमरा आभास भेल एहि वासामे गोविन्द बाबू एसकरे छथि ... "" अपनेक भोजन ? ""

-""भोजनतँ हम सब दिन जकाँ दस बजे क ' लेने छी । एकटा विद्यार्थी रहैत छथिन ... हँ, तखन चाह ... ?""

-"" जी, हम चाहक व्यवस्था क ' दैत छी  ।""

ज्ञात भेल गृहपति शशिनाथबाबू कोनो बल्लभाचार्यक अधिवेशनमे माण्डवी गेल छथि । गोविन्द बाबू कहलनि - "" हमरो आमन्त्रण छल । पाँचो आंगुर घीमे रहैत । ..से, दरभंगामे ' कल्याणी कोश ' क लोकापंण मे फँसि गेलहुँ । ""

हमर भगिनी श्रीमती पद्माझा दू कप गरम-गरम लीफक चाह द गेलीह तँ हमरालोकनिक सासमे सास आएल । ... नीरव, शान्त-एकान्त, शुभंकरपुरक बुर्जुघाटमे रौद आब क्रमश : पिरौंछ होब ' लागल रहैक । जड़कालामे दिन जल्दी-जल्दी बितैत छैक। दिन रहइक मंगल, तारीख रहइक 30 नवम्बर, सन् 1999

गोविन्दझाक दुइ गोट कथा संग्रह ' सामाक पौती ' नखदपंण प्रकाशित अछि। सामाक पौती चालीस बरखक अभ्यन्तरमे लिखल हिनक अठारह गोट कथाक संग्रह थिक .... नखदपंण मात्र पाँच बरखक अवधिमे रचल गेल हिनक तेरह गोट कथा सभक संग्रह अछि । ' सामाक पौती ' पर 1993 साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान कएल गेल छैन्हि ।

- "" अपने कें साहित्य अकादमी पुरस्कार विलम्बसँ प्राप्त भेल ... तकर की कारण ? ""

-""तकर तँ एक प्रमुख कारण जे बहुत दिन धरि हमर कोनो पोथी प्रकाशित नहि भेल ... हम सम्पादन ... अनुवाद ... शब्दकोश आदिमे लागल रहलहुँ  । सामाक पौती प्रकाशित भेल तँ ताहि पर पुरस्कार भेटल ।""

-""मुदा किछु गोटेक आरोप छन्हि जे पहिल खेप जे अपनेक पोथी रिजेक्ट भ ' गेल तँ अपनेकें क्रोध आ विरक्ति भ ' गेल रहय ।""

-""ई सब अफवाह थिक । केहन विरक्ति ? कथीक क्रोध ? .. हँ, तखन एक हिन्दी संस्थाक बैसकमे हम हिन्दीमे बजलहुँ तँ लोक गोलं मचा देलक जे गोविन्दबाबूकें पुरस्कार नहि भेटलनि तँ क्रोधमे छथि । एकटा बात आर भेलैक । एकटा मैथिली पत्रिकामे हमर इन्टरव्यू बहरायल । ओहिमे हम कहलिऐक किछु आ छपलकैक किछु । हमर बात सम्पूर्णतामे नहि छपल ताहिसँ लोककें भ्रम भ ' गेलैक । ओहि इन्टरव्यूक कारणे किछु गोटे छद्मनामसँ पोस्टकार्ड पर गारि लीखिक ' पठबैत गेलाह - कायरतापूर्ण आक्रमण करैत गेलाह ।""

-""अपने परिवार पुरस्कार ग्रहण करबाक हेतु दिल्ली गेल रहिऐक ? ""

-""नहि, हमर आंगनसँ ओहेन रुचि नहि ... रुगण ! चलब-फिरब कठिन तें एकसरे गेलिऐ. !""

-"" पुरस्कार ग्रहण करैत काल केहन अनुभव कएलिऐक ?""

-""रोमांच भ ' उठल ... भावाभिभूत ! अनुभव भेल जे धन्य मैथिली, मैथिलीभाखा जे आइ हम ई स्वर्गहुँ सँ बढि सुख प्राप्त कएल । दिल्लीक किमती होटलमे स्वागत-सत्कार ... सड़क परसॅ देखिऐक बड़का-बड़का होटल... पाँचसितारा संस्कृति ... होइत रहए एक बेरि एहिमे रहितहुँ .... से माइ मैथिलीक कृपासँ धन्य भ ' गेलहुँ ।""

-""सगर राति की थिकैक ? कथा-आन्दोलन ?""

-""देखू प्रारम्भमे हम सगर रातिकें लौल बुझैत रहिऐक । हमरा लोकनि नकलची भ ' गेल छी । पंजाबी सब जेना कएलनि ... तहिना करब कोन आवश्यक ? आन भाखामे कतहु देखलिऐक जे कोनो कवि अथवा मित्र कें समर्पित कए कथा - कविता पढ़ैत अछि तँ तकर अनुकरण मैथिलीमे चल ' लागल ... नकलची ... अपना सब लिखैत छी -बजैत छी - परमानन्द भाइ - भाइ बादमे लगबैत छिऐक ... कतहु देखलिऐक बश, लिख ' लगलहुँ भाइ परमानन्द ... नकलची !""

-"" जी, सगर राति .."".

-""हँ, सगर राति ... हमरा होइत रहय आरम्भमे जे की जाएब ... वैह नकलची, वैह अनुकरण - तें आरम्भक एक दू सगर रातिमे सम्मिलि नहि भ ' सकलहुँ । तकर बाद अनेक ' सगर राति मे ' भाग लैत रहलहुँ अछि । हम पैटघाटमे सम्मिलित भेलहुँ ।... उमानाथबाबू सेहो सम्मिलित भेल रहथि  ... अत्यन्त मार्मिक कथा पढ़ने रहथि ... स्वदेशी -विदेशी सुराजी-स्वतंत्रता आन्दोलन पर आधारित .... उमानाथ बाबू विचक्षण प्रतिभाक आ विशाल हृदयक साहित्यकार छथि ।""

-""अपनेक दृष्टिमे सगर राति की उपलब्धि ?""

-""उपलब्धि तँ बहुत छैक .. 700 सँ अधिक कथा पढ़ल - सुनल गेलैक अछि ... अनेक कथाक संकलन बहरयलैक अछि ... अनेक पोथीक लोकापंण भेलैक अ । मुदा हमरा जे सबसँ अधिक उपलब्धि बूझि पड़ैत अछि से थिक कथाकार - स्रोता बीचक संवाद । अपन कथा पर हमरा लोकक प्रतिक्रिया बुझबाक अवसर भेटल ... स्रोता बीचक संवाद । अपन कथा पर हमरा लोकक प्रतिक्रिया बुझबाक अवसर भेटल ... स्रोताक प्रतिक्रिया ..... नवीन लेखक-कथाकार लोकनिक दृष्टि आ अनुभवसँ परिचय भेटल । नव स्थान आ नव लोककें देखिक ' मोन उत्फुल्ल होइत रहल । ' सगर राति 'क सिद्धान्त रहलैक - खुलासा बाजू ... दुर्भावना नहि लिअ ! आरम्भमे प्रायः बूढ़ होएबाक काणे हम आलोचनाक अपात्र बूझल गेलहुँ ... परन्तु पछाति हमरहु पर आलोचनाक निर्मम प्रहार पड़य लागल । हम नाक चटिया जकाँ ओहि प्र हारकें पथ्य बुझैत रहलहुँ । ... हम अनेक सगर रातिक आयोजनमे सम्मिलित भेलहुँ । ... बोकारोमे सम्पूर्ण रुपें सफल सहभागिता रहलैक ।""

-""सगर राति 'क क्रममे कोन-कोन कथाकारसँ अपनेकें उम्मीद जागल अछि ... सम्भावना ? ""

-"" उम्मीद जागल अछि ... उम्मीद की आब तँ स्थापित भ गेल छथि । रमेश ... अंचलाधिकारी प्रायः, शिवसंकर श्रीनिवास, तारानन्द वियोगी इहो अंचलाधिकारी आ लोहनाक अशोक .... हिनका लोकनिकमे कथा-लेखन एवं मैथिलीक प्रति निष्ठा एवं समपंण भावना छैन्हि ।""

""किछु गोटेक आरोप छनि जे अपने सिंह तोड़ि पड़रु मे मिलल करैत छी....""

प्रश्न सूनि गोविन्दबाबू उद्वेलित भ ' उठलाह, किंचित विटलित होइत कहलनि- ""अपना समाजमे सब कथूमे व्यसक गणना करब आवश्यक - साहित्यमे वयसक कोन महत्त्व ? कालसँ ऊपर उठल लोक ... कालजयी साहित्यक रचनाकार लोकनि एहन आरोप नहि लगा सकैत छथि । एहि प्रसंग हम साफ-साफ शब्दमे लीखि देने छिऐक ...""

"" जी, से की लिखने छिऐक ?""

""हम नखदपंणक भूमिकामे लीखि देने छिऐक - एहि सगर रतिया कथा गोष्ठीमे हमरा बेरि-बेरि जाइत देखि हमर शुभचिन्तक एक प्रतिष्ठित साहित्यकार अयाचित सत्परामर्श देलनि, पण्डितजी, की अहाँ सींघ तोड़िके पड़रु मे मिलै छी । हुनक कहब फूसि नहि । गोष्ठीमे जे-जे सामान्यतः जाइत रहलाह अछि ताहिमे प्रायः सभ क्यो हमरासँ कम-सँ-कम पनरह बरखक छोट छथि । तें ठीके हमरा समक्ष पड़रु भेलाह । मुदा हमरा एहि पड़रु सबसँ ततेक स्नेह भ ' गेल जे ओ परामर्श एहि काने सूनल ओहि काने उड़ाय देल । वास्तवमे साहित्य-सर्जनामे वएसें ने केओ पड़रु होइत अछि, ने पाड़ा । ओकर आयुक निर्धारक होइत अछि ओकर आयुक निर्धारक होएत अछि ओकर दृष्टि आ सृष्टि ! एकटा बात बुझलहुँ किने ...."".

"" जी, से की ?""

"" हमरा तँ इहो कहबामे संकोच नहि होइत अछि जे वय : श्रेष्ठ आ समवयस्क रचनाकार हमरा ततेक प्रेरित-प्रभावित नहि कएलनि अछि जतेक एहि पड़रु वर्गक जीवकान्त जी, प्रभास कुमार चौधरी, राजमोहन झा आ रमेश कएलनि अछि ! ""

विशनपुर पदमौल मौजे सनकौर्थ, टोले रामनगर, ईसुफपुर प्रसिद्ध इसहपुर-काश्यप गोत्रीय हेमांगदराय लौकित पंचम श्रेणीक श्रोत्रिय कुलोद्भव श्री गोविन्द झाक आत्मामे शब्द ब्रह्म जकाँ विराजमान रहैत अयलनि । पिता महावैयाकरण पंडित दीनबन्धुझाक ' मिथिलाभाषा कोश ' क  पांडुलिपि-प्रकाशनक क्रममे जे शब्द-सागर मे डुबलाह, से एखन धरि शब्दक मोती चुनि रहल छथि । ... इण्डियन नेशन प्रेसक संस्कृत हिन्दी कोश आ हिन्दी संस्कृत कोश, बिहार सरकारक राजकीय प्रशासन शब्दावली ... बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्क विद्यापति-अवहट्ट कोश ( पांडुलिपि ) , मैथिली-अंग्रेजी शब्दकोश ... आ महाराजाधि राज कामेश्वर सिंह कल्याणी फाउन्डेशन, दरभंगा द्वारा सद्य :प्रकाशित मैथिलीसँ मैथिली आ अंग्रेजी-कल्याणी कोश ।

-"" एकटा आर अछि"" - गोविन्दबाबू कहलनि ।

"" जी, से कोन ?""

-""विज्ञान-परिभाषाकोश .... वाणी प्रकाशन, नई दिल्लीमे प्रकाशनक बाट जोहि रहल अछि ।""

-"" भाषाशास्रीय दृष्टिकोणसँ मैथिलीक विशिष्टता ... ? ""

-""देखू, मैथिली आर्यमूलक भाषा थिक - मैथिली प्राच्य भाषा भेल -मागधी मूल थिकैक - मैथिली व्याकरणमे क्रिया पदरुपावली जे अछि से वि केर कोनो भआषामे नहि अछि ... एहि क्रियापद रुपावलीकें मान्यता चन्दाझाक बाद प्राप्त भेल .....लिंग-वचन मैथिलीमे नहि - स्रीलिंग-पुलिंग ... का-कीक झमेला मैथिलीमे नहि । भोजपुरी तकमे वचन रहि गेलैक - किछु आभास मगहीमे सेहो- बंगला जकाँ मैथिली एहि झमेलासँ मुक्त!""

-"" पूर्वाञ्चलक कोन-कोन साहित्यकारसँ अपनेक सम्पर्क रहल ?""

-"" हमर जीवनमे उत्कल-यात्राक अविस्मरणीय महत्त्व अछि । साहित्य आकादमीक खर्च पर नवम्बर 1990 मे हम उत्कल यात्रा कएने रही । एहि यात्राक क्रममे ओड़ियाक लेखिका प्रतिभा रायक चिन्तन आ लेखनसँ मुग्ध रही । परिचय आ सामीप्य प्राप्त भेल । सम्बन्धक निर्वाह भ रहल अछि । साहित्यकार देवेन्द्र महन्ती आ रेखा महन्ती सँ उत्कलक भाषा, संस्कृति, कला साहित्यक सूचना प्राप्त कएल । एहिना मनोरंजनदास, जयन्त महापात्र, कुंजविहारी दास, सरोजकान्त महन्ती, विजय रमण सत्पथी आदिसँ सम्पर्क भेल । एहि प्रसंग एकटा आर घटना उलेलेखनीय अछि .... "".

-"" जी, से कोन ?""

-""बंगलाक लेखक लोकनिमे विमल मित्र हमर प्रिय लेखक ..हुनक अनेक उपन्यास हम पढ़ने छी ..... मोट-मोट उपन्यास । श्रीमती लिलीरेक मरीचिका सँ पैघ । 1977 मे बिहार सरकार द्वारा विमल मित्र एवं अखिलन आदि साहित्यकारकें सम्मानित कएल गेल रहनि । हमरा भार देल गेल रहय  ... विमलमित्र आ अखिलनकें घुमएबाक। विमल मित्र सपत्नीक आयल रहथि । ओहेन निस्पृह ... निसंग व्यक्ति देखल नहि - सहज आ सरल ! ""

कहलनि -""पटनामे गंगा स्नान करब । गंगा स्नान कएल- पूजा-पाठ । भगवतीक भक्त । अखिलन मुदा गंगाकतमे ठाढ़ रहलाह । हमरे जकाँ कट्टर नास्तिक !""

-"" अपनेकें भूत-प्रेतसँ पाला पड़ल अछि ? ""

शुभंरकपुरक बुर्जूघाट । एकान्त वासाक बराम्दापर पटिया पर पड़ल गोविन्द बाबूसँ पुछैत छियनि .. .- "" भूत-प्रेत ? ""

गोविन्दबाबू चकित होइत कलनि - नहि भूत-प्रेतसँ कहाँ भेंट भेल - अदृश्य, अगोचर ...अघट दृश्य - सेहो कहियो नहि देखल । हमरा गाममे एक जन महिलाकें भूत लगैत छलनि - सनकौर्थक विकलबाबू झाड़ैत छलथिन ।

-"" कोना झाड़ैत छलथनि ? ""

-""झाड़ैत की छलथिन ... ओ हमरा मनोवैज्ञानिक क्रिया-कलाप जकाँ लागल। बड़का कुश लेने, ललका फूल लेने ..... हुकूम .... भाग ! ... भाग !! ... भूत छुटला पर प्यास लगैत छैक ।""

एकाध खेप हमहूँ एक्सपेरिमेन्ट कएने छिऐक । एक आध मरीजकें भूत झाड़ने छिऐक ।

-"" मरीज महिला रहय कि मरद ? ""

-"" जुआन छौड़ी ! .. "".

-"" अपने पर आरोप लगाओल जाइत अछि जे विद्यापतिक आत्मकथाकें अपना ढंगें लीखि देने छिऐक ? ""

-""हँ, ई आरोप अछि ... । हम गछैत छी । किछु गोटए स्पष्ट रुपें नाम पताक संग पोस्टकार्ड लिखलनि, शराप सेहो देलनि - गोविन्द नीक नहि होएत । नाश भ ' जाएब । आदि-आदि । मुदा आरोप की अछि ? हम विद्यापतिकें मनुक्खक रुपमे चित्रित कएने छिऐन्हि - अन्धविश्वास, उगना, महादेवक नोकर बनब - एकरासबकें महिमामंडित नहि कएने छिऐक । पल्लव ... नेपालक पत्रिका पल्लवक सम्पादक पंकज एहि विषय-वस्तु पर लेख लीखल तँ किछु साम्प्रदायिक उग्रवादी तत्त्व पंकजक दुर्गति ... दुर्गन्जन क ' देलकनि - प्राय धक्का-मुक्की सेहो । मुदा हम तँ वैह लीखब जे तर्कपूर्ण होएत । मनुक्खकें मनुक्ख कहबैक देवता नहि !""

सरसकवि ईशनाथझाक चीनीक लड्डूसँ प्रभावित भए गोविन्द झा ' बसात ' नाटक लीखल ... प्रकाशित भेल 1954 मे । राजा शिवसिंह, अन्तिम प्रणाम, रुक्मिणीहरण आ अप्रकाशित लोढ़ानाथ हिनक प्रमुख नाट्य-रचना थिक ।

-"" अपनेक अग्रीम योजना ? .... लेखनक क्षेत्रमे ..... नाटकक क्षेत्रमे .....?""

-"" नहि नाटकक क्षेत्रमे नहि कोनो- मुदा हम अपन आत्मकथा लेखनमे लागल छी । ओना आत्मकथा बुढ़ारीमे नहि लिखबाक थिक । 50-55 धरि, 60 धरि आत्मकथा लेखनमे गर्मी रहैत छैक । हरिवंश राय ' बच्चन ' क आत्मकथा मुग्ध कएने अछि । मुदा हमरा भेल जे हम जे लीखब से पढ़त के ? समय ककरा छैक ? तखन किएक लीखब ? तखन हमरे अपन छवि हमर समक्ष प्रत्यक्ष भ उठल - सुनह गोविन्द ! चेतह ! हम  पुछलिऐक - तों के थिकह ? ओ गर्जन करैत बाजल - हमरा नहि चिन्हलहुँ गोविन्द ! हम तोरे प्रतिरुप -प्रतिच्छवि - तों लीखह ..... हम सुनबह - तें पोथीक नाम देलिऐक - आत्मालाप ! बूझल किने - आत्मालाप ! 160 पेज लिखा गेल ।""

तकर बाद मैथिलीक सभा-समिति, संस्था आदि पर गप्प होबए लागल । कल्याणी फाउन्डेशन्सँ नियमित मैथिली पत्रिकाक प्रकाशन ... चेतना समितिक प्रकाशन आदि विविध प्रसंग पर गप्प चलैत रहैल 

-""अपने एकटा लेख लिखने रहिऐक - मैथिली साहित्य परिषद्क शव-परीक्षा।""

एहि प्रश्न पर गोविन्दबाबू उखड़ि गेलाह - कहलनि - तँ कोन अपराध कएने रहिऐक ?..... जे छैक से लिखलिऐक । कत ' अछि परिषद् । कतऽ अछि ...... कहाँ अछि परिषद् .... की कऽ रहल अछि परिषद् । हमर पिताक दू गोट पोथी परिषद्सँ प्रकाशित - धातुपाठ आ मिथिलाभाषाविद्योतन - सबटा पोथीकें सड़ा-गला देल गेल । परिषद्क अधिवेशनमे एक बेरि दरभंगा गेलहुँ । मैथिलीक एक जन वयोवृद्ध साहित्यकार ककर-ककर ने नाम ल ' ' शोक संदेश पढ़लनि ... मुदा अपन बालसखा कविवर जीवनाथबाबूक उल्लेख कतहु नहि ..... हुनक निधन पर कोनो शोक नहि-और खुशी मनाउ ...... और खुशी मनाउ - यज्ञध्वंसक ! महावैयाकरणक नाम आ कृतिकें और मेटबैट जाउ - और मेटबैट जाउ - कालजयी कृति छैक ...... चमकैत रहतैक .... सब दिन मैथिलीक आंगनमे ! बूझल किने !""

हम दउगल गेलहुँ भीतर ..... एक गिलास पानि देलियनि, पानि पिउलनि, तखन कहलनि- और सवाल पुछू ...... जे पुछबाक हो से पुछू !

हमर मोनमे एकटा प्रश्न नचैत रहए बड़ीकालसँ, मुदा होइत रहय जे जँ पुछबनि तँ फेर ने उखडि जाथि- "" जँ अपनेक आज्ञा होइक तँ .... "".

-"" हँ-हँ, अवश्य ... अवश्य ... "".

-"" अपनेक प्रसंग किछु गोटेक कहब छनि जे... ""

-"" हँ-हँ, कहू की कहब छनि  ? ""

-"" कहब छनि जे He lacks team sprit   ... टीम स्प्रीट नहि अछि ।......... टीम भावनाक अभाव .... ""

गोविन्दबाबू अवसन्न आ विषादग्रस्त होइत कहलनि -चिन्तनशील मनुष्यक क्यो मित्र नहि होइत छैक । एकला चलो रे ...... हम सब दिन तपस्यामे लागल - शब्द-साध-नामे लागल । '

हमरा जोड़-तोड़, छौ-पाँच करबाक समय कहाँ ? क्यो संग देनिहार नहि, ककरहुमे संग रहबाक क्षमता नहि ..... आ हमरापर आरोप लगलैत छथि टीमस्प्रीट नहि। व्यासजीक संग, जगदीशचन्द्र झाक संग हम काज कएने छी । .... कहाँ कोनो बात  ?

हम अपनाकें ' रकत की लकीरे ' मानैत छी खून ...... रक्त ...... रक्तसँ अक्षर, रक्तसँ शब्द, रक्तसँ कविता, रक्तसँ नाटक, रक्तसँ आत्मालाप ....... बूझल किने ... मुदा अहाँ ई किएक ने पुछै छी  ? ""

-"" जी, कोन प्रश्न ?""

-" हमर स्टारभेशन, अर्थाभाव, संघर्ष, हाथ पर पइ नहि, पिताक कपड़ाक दोकान ... बेटाक अक्कू-मिक्कू स्टोर्स ! जेबी खाली ......निम्नमध्यम वर्गक अथाह-अविराम संघर्ष ......... "".

-"" जी, अपनेक ' अन्तिम एकन्नी ' ...... ""

-"" हँ, हमर कथा अन्तिम एकन्नी ...... हमरे सन-सन लोकक अक्षर-चिनगारी थिकैक- अहाँ से किएक ने पुछै छी ?

तहरथी पर पाइ नहि, खेत-पथार-अन्न-पानि - अन्नहीनं -निरवलम्ब ! अहाँ स्टारभेशन पर पूछू .. स्टारभेशन "".

-"" आब अपने ' अन्तिम एकन्नी 'क पीड़ासँ मुक्त भ' गेलिऐक ? ""

-"" ' अन्तिम एकन्नी ' क पीड़ा मात्र हमरे पीड़ा नहि थिक । हमर वर्गक थिक - जाकि वर्गक हम छी ..... ओहि वर्गक पीड़ा थिक ! डीजल .. पेट्रोल ... आलू ... प्याज .... ऐन ... डालर ... रुबल ... घोर अर्थसंघर्ष ... हाथ खाली ... जेबीमे लम्बा पुर्जा .... साँझ उदास दीप नहि, तेल नहि .. "".

से, तकर बाद साँझ खसल चल अबैत रहइक । वाग्मतीक कछेड़मे, बुर्जूघाटक एकान्त वासामे गोविन्दबाबू आ जटाधारी फूलकें एसकर छोड़ि हम विदा भ ' गेल रही ... विस्तीर्ण भूखण्ड, दउगल चल जाइत वाग्मत, झुकल चल अबैत आकाश - निरवधि काल आ रक्त अक्षर ... हमरा लागल सत्ये गोविन्दबाबू एसकरे छथि- एसकरे ..... महासागरमे एकटा द्वीप जकाँ .... एकला चलो रे ... एकला चलो रे !

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© आशुतोष कुमार, राहुल रंजन  

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